November 21, 2024



दक्षिण भारत की यात्रा – 5

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विजय भट्ट


डक्कल की गुफाओं को देखने के बाद हम पहुँच गए मिट्टी से बने भारत के सबसे बड़े और एशिया के दूसरे बड़े डैम को देखने।इस बांध को पत्थरों और चट्टानों के इस्तेमाल से बहुत मजबूत बनाया गया है। इस बांध का नाम है बणासुर सागर डैम। बणासुर सागर बांध वायनाड ज़िले के कलपेट शहर से लगभग बीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह हमारे वापसी के रास्ते में पड़ता था इसलिए समय का उपयोग करते हुए अंसर भाई ने आज ही के दिन वहाँ जाने की योजना बनाई थी। यह बणासुर बांध काबिनी नदी की एक सहायक नदी करमनथोडु  पर बनाया गया है। यह बांध केरल आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। पौराणिक कथाओं के अनुसार बणासुर राजा महाबली का वीर पराक्रमी पुत्र था जिसे केरल राज्य में सम्मान के साथ देखा जाता है। पश्चिमी घाट के वायनाड ज़िले में में वाणासुर नाम का पर्वत भी है जिसके शिखरों की ऊँचाई दो हज़ार मीटर तक की है। इन पहाड़ियों के मध्य में होने से इस बांध का नाम बाणासुर सागर बांध रखा गया है।

बाणासुर सागर बांध में दस रूपये प्रवेश शुल्क देकर हमने प्रवेश किया। मेरे कंधे पर निकोन का स्टिल कैमरा लटका हुआ था, टिकट जाँच करने वाले गार्ड ने कैमरा लेकर प्रवेश करने से इनकार किया क्योंकि यहाँ स्टिल कैमरे से फ़ोटो खींचने की मनाही थी। समझ से परे है यह नियम कि स्मार्ट फ़ोन से तो फ़ोटोग्राफ़ी कर सकते हैं पर स्टिल कैमरे से नहीं। पर कौन बहस करे और किससे ?  जाँच करने वाला तो बस कर्मचारी है जिसको पगार ही निर्देशों का पालन करवाने की मिलती है। मैंने अपना कैमरा बैग में रख दिया और भीतर चले गये। पर्यटकों की काफ़ी भीड़ थी। एक आध किलोमीटर पैदल चलकर हम डैम के उपर पहुँच गए। सामने पहाड़ियों के बीच मन को मोहित करने वाली विशाल झील के दर्शन हुए। यहाँ स्पीड बोट भी चल रही थी। पाँच सौ रुपये मोटर बोट का किराया था। हम नहीं गये। कुछ देर इस विशाल जलाशय को निहारा, चेहरे और शरीर को छूने वाली ठंडी हवाओं के झोंके सुखद अनुभूति का एहसास करा रहे थे। मोबाइल से फ़ोटो खींचकर संतोष किया। वाक़ई मिट्टी और पत्थरों के इस्तेमाल कर बनाया यह मज़बूत बांध एक अजूबा है साथ ही इंजीनियरिंग का बेहतरीन नमूना।


कुछ आगे चले तो विशाल वृक्षों पर झूले टंगे थे जिन पर पर्यटक झूलते नज़र आए। इस उम्र में हमने भी झूले में झूलने का लुत्फ़ उठाया। अंजीर जैसा पेड़ दिखाई दिया जिस पर बड़े आकार के अंजीर गुच्छे में लगे हुए थे जैसे हमारे पहाड़ में तिमले लगते हैं।कुछ समय वहाँ बिताने के बाद नीचे पार्किंग स्थल पर आ गये। काफ़ी संख्या में नौजवान बाईकर्स भी वहाँ दिखाई दिए। चाय पीकर हम वहाँ से अपने आधार शिविर अर्थात् साथी अंसर अली के पल्लमपल्ली आवास में आ गये।