दक्षिण भारत की यात्रा – 4
विजय भट्ट
साल दो हज़ार तेईस के अगस्त महीने की ग्यारह तारीख़ थी। केरल के वायनाड ज़िले में घुमक्कड़ी का हमारा यह तीसरा दिन था। आज एडक्कल गुफा को देखने का कार्यक्रम तय था। सुबह आठ बजे जीप हमें लेने घर पर आ गयी जिसको पहले ही कह दिया गया था। चाय नाश्ता कर हम सही समय पर घर से निकल गए। जीप चालक का नाम जोश था दो उसी गाँव का था जहां हम रुके हुए थे। हम कलपेट्टा होते हुए 9 बजे तक वहाँ पहुँच गए जहां गाड़ी पार्किंग की जानी थी। पहाड़ी के प्रवेश पर ही हमसे पार्किंग शुल्क वसूल कर लिया गया था और पार्किंग स्थल का नंबर भी बता दिया गया। गाड़ी पार्क कर हमने वहाँ सबसे पहले चाय सुड़की। फिर आगे की तरफ़ बढ़ चले।
आगे कठिन चढ़ाई वाला पैदल मार्ग है। रास्ते के दोनों तरफ़ दुकानें हैं। जहां दुकान वाले हमें अपना सामान ख़रीदने का आग्रह कर रहे हैं। हम भी वापसी में देखने का झूठा आश्वासन देते हुए आगे बढ़ रहे हैं। कुछ दूरी पर टिकट घर है, जहां से टिकट लेकर ही आगे ज़ाया जा सकता है। प्रति वयस्क का प्रवेश शुल्क पचास रूपये और बच्चों का तीस रूपये प्रति है। टिकट कटवाकर हम आगे की ओर बढ़ चले। यहाँ चढ़ाई और तीखी हो जाती है। सीढ़ियाँ बनी हुई है जहां चलने के लिए घुटनों का सही होना ज़रूरी है। हम सीढ़ियाँ चढ़ते हुए चल रहे थे कि हमारे साथ कुछ युवा भी हो लिए। ये सब चैन्नई से थे। चढ़ने में साँस फूल रही थी पर फिर भी हम आगे चले जा रहे थे। दो किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने के बाद हम एडक्कल गुफा में प्रवेश कर गये। वहाँ पहाड़ी चट्टानों पर पाषाण काल के मानव द्वारा उकेरी गयी आकृतियाँ आपका ध्यान अनायास ही आकर्षित कर लेती हैं। दांतों तले अंगुली दबा कर मन अचंभित सा हो उठता है। मानव ने सदा ही अपनी अभिव्यक्ति को प्रदर्शित करने का कोई न कोई तरीक़ा अवश्य ही ढूँढ निकाला। उसके प्रमाण यहाँ देखने को मिल जाते हैं। हमने पौन एक घंटा वहाँ गुज़ारा और फिर वहाँ से नीचे चले आए। इस तरह आज की यह घुमक्कड़ी शानदार रही।
मलयालम में एडक्कल का मतलब दो पहाड़ी चट्टानें से है। यह गुफा वायनाड ज़िले में अंबालावायल टाउन के पास अंबुकुथी नामक पहाड़ी पर बनी हैं। माना जाता है कि तीस हज़ार साल पहले किसी विनाश कारी भुकंप के कारण यह पहाड़ी चट्टान दो भागो में विभाजित हो गई थी। एडक्कल गुफा नव पाषाण काल के मानव द्वारा अभिव्यक्त अपने रेखांकन व चित्रों के लिए प्रसिद्ध है जो इस इलाक़े में किसी प्रागैतिहासिक सभ्यता की बसाहट का संकेत ज़रूर देता है।
एडक्कल नामक इन गुफाओं की खोज साल 1894 में सबसे पहले एक अंग्रेज पुलिस अधिकारी ने की थी। इस पुलिस अधिकारी का नाम फिरेड फासेट ने की थी जो मालाबार राज्य का पुलिस अधिकारी था। आज यह वायनाड में सबसे अधिक देखे जाने वाले पर्यटन स्थलों में से एक है। एडक्कल की ये गुफा जाने के लिए हमें पैंतीस चालीस किलोमीटर की दूरी तय करनी थी, वायनाड ज़िले के हैडक्वाटर कलपेट्टा से यहाँ की दूरी पच्चीस किलोमीटर की है। कालीकट से भी यहाँ लगभग एक सौ किलोमीटर की यात्रा कर तीन घंटे में पहुँचा जा सकता है।
यात्रा जारी है-