दक्षिण भारत की यात्रा – 2
विजय भट्ट
हमारा स्टेशन आ गया “कन्नूर”। घड़ी रात के आठ बजकर तीस मिनट का समय बता रही थी। ट्रेन डेढ़ घंटा देरी से पहुँचीं थी।अपना सामान लेकर प्लेटफ़ॉर्म पर उतरे और चारों ओर नज़र दौड़ाई। सामने अंसर अली नज़र आ गये। अंसर भाई शाम से हमारा इंतज़ार कर रहे थे। गर्म जोशी से हमारा स्वागत हुआ। भाई अंसर अली की मेज़बानी में ही यह घुमक्कड़ी तय हुई थी।कामरेड अंसर अली केनरा बैंक से रिटायर हुए थे। वे बैंक कर्मचारी यूनियन के नेता भी रहे और Bank Employees Federation of India की केन्द्रीय कमेटी के सदस्य भी थे। कामरेड अंसर अली सरल मिलनसार स्वभाव ज़िंदादिल इंसान हैं। फटाफट बिना समय गँवाए स्टेशन से बाहर निकल कर वे हमें होटल ले गए जहां हमने खाना खाया और तुरंत कन्नूर बस स्टेशन आ गये। यहाँ से हमें लगभग 90 किलोमीटर दूर मानंदवाड़ी जाना था जो केरल के वायनाड ज़िले की एक तहसील है। कन्नूर से मानंतवाड़ी जाने के लिए आख़िरी बस चलने का समय रात के दस बजे का था।
तमिलनाडु राज्य की मैसूर की ओर जाने वाली बस समय पर आ गयी। हमें इसी बस से आगे का सफ़र तय करना था। बस जाने वाले काफ़ी संख्या में लोग मौजूद थे। हम फटाफट बस में चढ़ कर अपनी सीट पर बैठ गये। बस अपने समय पर ठीक दस बजे चल पड़ी। मेरी सीट के बग़ल में एक अधेड़ उम्र का मलयाली भाषी आदमी बैठा था। अगली सीट पर छोटे से बच्चे के साथ एक दम्पति बैठे हुए थे। बच्चा रो रो कर बेहाल हो रहा था। उसके माता-पिता उसे शांत करने का बड़ा प्रयास कर रहे थे। बस का कंडक्टर भी उनकी परेशानी को देखते हुए वहाँ तीसरी सवारी को न बैठाकर उनका सहयोग कर रहा था।
हमारी बग़ल में बैठा अधेड़ आदमी भी बच्चे को पुचकारते हुए शांत कराने की कोशिश कर रहा है। उसने हमारी तरफ देख हल्की सी मुस्कान दी।फिर बातचीत का दौर शुरू हुआ। मधुसूदन उसका नाम था और कन्नूर ज़िले का रहने वाला था। उसने टूटी फूटी मलयालम स्टाइल की हिंदी में कहा कि वह पहले सेना में सेवा कर चुका है और अब मैसूर के किसी नामी स्कूल में नौकरी करता है और इस बस से वह अपनी नौकरी पर ही जा रहा है। बस सुबह 6 बजे मैसूर पहुँचेंगी। मैंने पूछा “तुम्हारे स्कूल में किस राज्य के बच्चे पढ़ने को आते हैं“ मधुसूदन: “कई स्टेट का बच्चा रहता है स्कूल में पर गुजरात का जादा करके होता, गुजराती जादा पैसे वाला है न। ”दक्षिण भारत के लोग विशेषकर केरल के विनम्र, संवेदनशील, सरल स्वभाव के साथ सुशिक्षित होते हैं। ऐसा ही बस में बैठे आभास हुआ।
कुतुम्परम्ब होते हुए हमारी बस निडमपूंई बस स्टेशन पर रुक गई । यहाँ चाय पानी के लिए दस मिनट का हाल्ट था। सभी काली चाय पी रहे थे हमने भी पी ली। दस मिनट बाद बस आगे बढ़ी। यहाँ से पहाड़ी रास्ता शुरू हो जाता है जैसे हल्द्वानी से।आगे रास्ते में चाय के बाग़ान शुरू हो गये। एक खूबसूरत सा झरना भी दिखाई दिया। अंधेरा होने के कारण फ़ोटो न ले पाये। रात सवा एक बजे के क़रीब हम मानंदवाड़ी पहुँच गए। हम यहाँ बस से उतर गए। यहाँ से सात किलोमीटर आगे पय्यमपल्ली नामक गाँव में हमें जाना था, जहां अंसर अली का घर है। आटो पर बैठ कर हम वहाँ पहुँच गए। रात के दो बज रहे थे। ढाई दिन का लगातार सफर, थकान महसूस होना लाज़मी था। चादर तानकर हम नींद के आग़ोश में समा गए।
हमारा सफ़र जारी है…
(विजय भट्ट साथ में इन्द्रेश और सभी घुमक्कड़ साथी )