दक्षिण भारत की यात्रा – 1
विजय भट्ट
“धर्म- जाति और क्षेत्रवाद की संकीर्णता से दूर”
दक्षिण भारत में हमारी घुमक्कड़ी का यह कार्यक्रम पहले से ही तय था। पिछले महीने एक दो बार तो कैंसिल भी हुआ, पर अब पक्का हो गया था। देहरादून से चलकर सोमवार की सुबह तड़के ही हम हजरत निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर पहुँच गए थे। इस घुमक्कड़ी में इन्द्रेश नौटियाल, रोशन मोर्य और राकेश नवानी साथ में थे। ट्रेन समय पर थी मतलब पाँच बजे चलने को तैयार।
तिरुवनंतपुरम सुपर फ़ास्ट एक्सप्रेस के एस 07 बोगी में हम अपने नियत स्थानों पर बैठ गये। बोगी में बैठते समय काफ़ी शोर गुल मचा था। पहले जब भी मैंने केरल की यात्रा की थी तो ट्रेन में मलयाली भाषाई सरल स्वभाव के शिक्षित से लगने वाले यात्रियों की संख्या ज़्यादा होती थी। पर इस बार कुछ अलग सा माहौल नज़र आ रहा था। बोगी में बिहार के लोग ज़्यादा नज़र आ रहे थे। औरतों के साथ उनके बच्चे और मर्द भी। देखने में ग़रीबी कुपोषण साफ़ नज़र आ रहा था। हमने देखा और सोचा कि आस पास तक ही जा रहे होंगे। जा तो हम केरल की तरफ़ रहे थे पर बोगी देखकर लगा कि मानो हम बिहार जा रहे हैं। दिन भर ट्रेन चल कर बड़ोदरा सूरत होती हुई महाराष्ट्र में प्रवेश कर गई, पर बिहार राज्य के ये भाई अपनी अपनी सीटों पर जमें थे। रात हो गई और खाना खा पीकर हमने अपनी अपनी बर्थ पर चादर तान ली।
ट्रेन अपनी रफ़्तार पर चल रही थी। डिब्बे में कुछ शोरगुल सुनकर नींद टूटी। पता चला कि इन बिहारी भाईयों का फ़ोन किसी उचक्के ने उठा लिया है। जिसका फ़ोन ग़ायब हुआ था उस बेचारे को पता ही नहीं चला कि कब यह घटना घट गई। समय सुबह के साड़े चार बजे के लगभग का था। इन्द्रेश भी जाग गया था। फिर मेरी नींद भी टूट चुकी थी। मैंने टायलेट ख़ाली देख सुबह के काम से फ़ारिग हो गया।
मन में एक कौतूहल सा पैदा हो गया कि आख़िर ये लोग कौन हैं, कहाँ और क्यों जा रहे हैं।
मालूम करने की कोशिश की। झिझक के कारण पहले तो ये बात करने को सहज नहीं दिखाई दिए। जब हमने बात कर विश्वास सा हासिल कर लिया तब उसने अपना नाम रमन बताया। रमन ने बताया कि वे सभी बिहार से अररिया जिला के रहने वाले हैं।रमन बताते हैं कि वे सब मंगलोर में मछली काटने और पैक करने के काम से जा रहे हैं। मछली काटने और पैकिंग का काम हमारे लिए चौंकाने वाला था। जिज्ञासा वश हमने बात आगे बढ़ाई। पता चला कि वे मुसहर जाति से आते हैं। चार पाँच महीने यहाँ रहकर कुछ कमाई करेंगे। बच्चों को स्कूल भी भेजेंगे, हमारे पूछने पर उन्होंने कहा। ये चार पाँच महीने यहाँ काम करेंगे। ख़र्चा निकाल कर कुछ बचत भी हो जाती हैं जिनमें वे साल भर गुजर बसर कर लेते हैं।
बिहार में कटिहार ज़िले के शार्दूल रहमान भी इस बोगी में अपने साथियों के साथ यात्रा कर रहे हैं। उन्हें भी मंगलोर जाना है। वे मंगलोर में राजमिस्त्री का काम करते हैं। शार्दूल बताते हैं कि यहाँ के लोग बहुत अच्छे व्यवहार करने वाले हैं। यहाँ ठेकेदार का भी कोई झंझट नहीं इसलिए ध्याड़ी मजदूरी पूरी मिल जाती है जिससे गुजर करने लायक़ कमाई हो जाती है। ऐसे ही दूसरे बिहार के ही लोग हथकरघा वस्त्र उद्योग में विभिन्न क़िस्म के काम करने के लिए मंगलोर जा रहे हैं।
हम सोचते विचार करते रहे कि अपने घरों से लगभग तीन हज़ार किलोमीटर दूर निज़ामुद्दीन-त्रिवेंद्रम एक्सप्रेस से कर्नाटक राज्य के तटीय क्षेत्र मंगलोर में काम करने जा रहे ये कामगार, जाति धर्म और क्षेत्रवाद के ढकोसले से दूर असली भारत और भारतवासी का परिचय दे रहे हैं।
हमारा सफ़र जारी है ।
(विजय भट्ट साथ में इन्द्रेश और सभी घुमक्कड़ साथी )
आठ अगस्त दो हज़ार तेईस