उत्तराखण्ड के झील और ताल
महावीर सिंह जगवान
उत्तराखण्ड झील और तालों के लिये प्रसिद्ध तो है ही इनकी उपस्थिति उच्च हिमालय के ग्लैशियरों के मध्य से लेकर, सबट्रोपिकल क्षेत्रों तक फैले बुग्यालों के छोर तक देखने को मिलते हैं।
उच्च हिमालय में तीन ओर से घिरे या बड़े समतल क्षेत्रों मे इनकी उपस्थिति है। निष्चित रूप से या तो यह सभी ताल पहाड़ियों की ओट मे हैं या ढलान नुमा बुग्यालों में। इन तालों का सम्बन्ध दूर दूर स्थित प्राकृतिक श्रोतों के साथ साथ बहते जल और भूगर्भ मे स्थित जल भण्डारों से केशिकत्व बल के आधार पर तल पर स्थित जल का ताल मे अवतरण भी है। इन तालों के प्रति आस्था, सम्मान और भय भी है ताकि प्रकृति की इन अनमोल रचनाऔं का संरक्षण हो। उच्च हिमालय मे निरन्तर भूर्भीय हल चल है, वैज्ञानिकों का मानना है यह सबसे कम परिपक्व पर्वत श्रृँखला है। भूकम्प और मौसम के बदलाव ने यहाँ के पारिस्थितिकी तंत्र से लेकर भूगर्भीय स्थितियों के परिवर्तन ने धरातलीय बनावट को प्रभावित किया है। उच्च हिमालय मे स्थित यह बड़ी झील या ताल टैम्प्रेचर मैन्टेन के साथ वन्यजीव जन्तुऔं की जलापूर्ति के बड़े श्रोत तो हैं ही सबट्रोपिकल क्षेत्रों और प्राकृतिक श्रोतों की छुपे हुये श्रोत भी हैं।
उच्च हिमालय मे इन्हें भूकम्प प्रभावित कर रहा है, निरन्तर दो ओर या तीन छोरों से टूटते ग्लेशियर अपने साथ बड़ा मलबा लेकर इसमे समा रहें हैं, दूसरी ओर इन सरोवरों के आस पास भूक्षरण बढा है हल्की वर्षा जो पहले वनस्पतियों से छन कर ताल तक पहुँचती थी अब अपने साथ पत्थर और कंकण लेकर सीधे ताल तक पहुँचकर उसकी प्राकृतिक तलहटी की बनावट को प्रभावित कर रही हैं। अधिकतर सरोवर विपरीत दिशाऔं मे फैली पर्वत श्रृँखलाऔं की गोद मे स्थित हैं, यह स्थिति भूकंपीय हलचल मे सरोवर की तलहटी मे दरार की आशंकाऔं को प्रबल करती है यह प्रकृति प्रदत्त संकट हैं। दूसरी ओर मानवीय हस्तक्षेप ने संकट को अधिक बढा दिया है।
जैसे नैनीझील सदियों पहले प्रकृति के संग ही फली फूली लेकिन दशकों से मानवीय आकर्षण और विकास के दबाव मे सिकुड़ रही है। झील के जिन छोरों पर आज सड़क है वह कभी झील के किनारे हुआ करते थे, वर्षाऋतु मे वर्तमान झील वर्तमान क्षेत्रफल के डेढ दो गुना फैलती होगी। अंग्रेजों ने झील और पर्यावरण को मध्यनजर रखते हुये प्रकृति सम्मत विकास और वसासत को तवज्जो दी, झील के चारों ओर जलागमीय क्षेत्र चिन्हित कर उनसे मानवीय दूरियाँ बनायी ताकि प्राकृतिक तरीके से झील मे वर्फ और वर्षा के पानी की पहुँच सुगमता से बनी रहे। जिन स्थानों पर भवनों के लिये जगह चिन्हित की गई वह सभी आपस मे निश्चित दूरी पर थे, भवन शैली भी प्रकृति सम्मत ही थी। धीरे धीरे आबादी बढने लगी आज झील के चारों ओर बसे कस्बै महानगरीय लगते हैं, भवन शैली सौ फीसदी सीमेन्ट कंक्रीट पर निर्भर है वनाच्छादित क्षेत्र घटा है, जलागमीय क्षेत्रों पर अतिक्रमण है, मानव, भवन, परिवहन, पारिस्थितिकी तंत्र के परिवर्तन और पर्यावरणीय लापरवाहियों ने तापमान वृद्धि की अप्रत्यक्ष नुकसान देह भूमिका निभाई है।
इन पहाड़ी ढलानों पर मिट्टी की सतह मे भारी बदलाव देखे जा सकते हैं जैसे छोटे छोटे भू क्षरण, मिट्टी का लेवल कम होना, वनस्पतियों की उपलब्धता मे गिरावट मूल उपलब्ध प्रजातियों की जगह नई और कम मात्रा मे पाई जाने वाली वनस्पतियों की भरमार। स्पष्ट है साॅयल लेबल घटेगा तो जल अवशोषक क्षमता पर प्रभाव पड़ेगा, हल्की मृदा सतह पर तापमान का नुकसान देह प्रभाव पड़ेगा परिणति मूल वनस्पतियों अनुकूल वातावरण के अभाव मे विलुप्त हो जायेंगी। इसका अप्रत्यक्ष रूप से बड़ा प्रभाव क्षेत्र के जलागमीय केन्द्र को प्रभावित करेगा।
समय रहते झील के चारों छोरों के फैलाव की संभावना को तलाशना होगा। पर्वत श्रृँखलाऔं के जलागमीय क्षेत्रों को पुन:प्रकृति सम्मत तकनीकियों से सँवारना होगा ताकि बहते हुये साफ जल का विना बाधा के झील तक पहुँचना संभव हो, झील के जलीय जीवन को सँवारने के लिये झील मे गिरने वाले मलबे और गंदे नालों को ट्रीटमेन्ट और रिसाइकिल की जरूरत है, जलापूर्ति के बड़े विकल्प के तौर पर रैन वाटर हार्वेस्टिंग को बढा कर झील के जल पर निर्भरता घटानी होगी। नजदीकी वनों मे सघन वृक्षारोपण को वरीयता मिलनी चाहिये। हम सभी की पहल प्रकृति प्रदत्त धरोहर को सहेजने मे बड़ी भूमिका निभा सकती है, जिस नैनी झील के आकर्षण से नैनीताल सँवरा है उस नैनीताल का प्रथम दायित्व है नैनी झील की सेहत स्वस्थ और समृद्ध रहे।
एक सरोवर जनपद रूद्रप्रयाग के बदाणीताल मे भी है जिसकी सौन्दर्यता असीम है मानो प्रकृति ने खूब नेमतों से इस पावन सरोवर और गाँव को सजाया हो। पहली बार 1994 मे इस ताल को देखने का अवसर मिला, जखोली ब्लाॅक का दूरस्थ गाँव बदाणी जिसकी गोद मे स्थित है बदाणीताल। इस ताल की एक ओर सुन्दर रमणीक गाँव है तो दूसरी ओर मखमली बुग्याल मध्य मे स्थित पावन सरोवर। एक छोर अत्यअधिक गहरा और दूसरी ओर फैलाव सदृश। शुरूआत मे इसका क्षेत्रफल घटता बढता रहता था लेकिन कुछ वर्ष पहले इसे देखकर भीषण कष्ट हुआ वन विभाग ने इसका सौन्दर्यीकरण किया है इसके चारों ओर सीमेन्ट की दीवार देकर इसे तालाब नुमा आकार दिया है। काश इसके वर्तमान क्षेत्रफल से दुगने क्षेत्रफल मे इसकी सीमा चिन्हित कर इसे संवारा जाता इस ताल के तीन छोरों के बुग्याल को संरक्षित रखा जाता और इसमे पानी के आवागमन और निकासी का प्रबन्ध विकसित होता यह वर्तमान से कई गुना आकर्षक सरोवर होता।
पिछले वर्ष एक और सरोवर देखने का अवसर मिला यह मदमहेश्वर और तुंगनाथ के मध्य मे स्थित है और यहाँ से रूद्रनाथ की ओर भी बढ सकते हैं इसे विष्णु और विषुड़ी ताल भी कहते हैं यहाँ भैरवनाथ का प्राचीन मंदिर है। यह ताल भी दो ओर से पर्वतों की ओट मे है और दो छोर से मनमोहक बहुमूल्य वनस्पतियों और फूलों से लकदक बुग्याल हैं। यहाँ भी सीधे दरकती चट्टानों का मलबा पहुँच रहा है जो पवित्र जलाशय के लिये संकट है। बदलते पर्यावरण मे हिमालय के लिये जल की पर्याप्त उपलब्धता के बड़े श्रोत यह सरोवर जलाशय झीलें संकट के मुहाने पर हैं जरूरत है गम्भीरता से वैज्ञानिक तकनीकियों का समावेश कर इनकी सेहत का ख्याल रखा जाय ताकि सम्मपन्न समृद्ध हिमालय सदैव आकर्षक मनमोहक जीवन्त बना रहे।
ये लेखक के विचार हैं
फोटो सौजन्य – सत्या रावत