November 21, 2024



हिमाचल और लद्दाख की रोमांचक यात्रा – 5

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सत्या रावत


और…. दो दिन 15000 फीट की ऊंचाई पर काटने के बाद हम लोग सुरक्षित वापस लौट आए, एपिसोड- 5.

भारी बारिश और बर्फबारी की विपरीत परिस्थितियों के बीच हमारी टीम लेह – मनाली राजमार्ग में सर्चू नामक स्थान पर आकर अटक गई थी। मौसम लगातार खराब हो रहा था और बारिश के साथ-साथ सामने की पहाड़ियों पर बर्फबारी स्पष्ट रूप से नजर आ रही थी। समझ ही नहीं आ रहा था क्या किया जाए। अगली सुबह उठकर चारों तरफ जहां भी नजर फैलाई सब तरफ बारिश और बर्फबारी के अलावा कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। यहां पर नेटवर्क की सीमित उपलब्धता के कारण आपके पास बहुत ज्यादा जानकारी भी नहीं पहुंच पाती है बस आस पास उपलब्ध लोगों से पूछ कर ही समझ में आ रहा था कि क्या हो रहा है। लेकिन यहां पर हकीकत कम और अफवाहैं ज्यादा फैल रही थी और सबसे बड़ी अफवाह यह कि अब रास्ता कई दिनों तक नहीं खुलेगा। समुद्र तल से 4000 मीटर से ऊपर की ऊंचाई पर मौजूद ऐसी जगह जहां पर ऑक्सीजन बेहद कम हो वनस्पतियां ना के बराबर हों और मौसम कभी भी किसी भी करवट बैठ सकता हो ऐसी जगह पर ज्यादा दिनों तक रुक पाना संभव नहीं था लेकिन चुपचाप बैठने के अलावा कुछ किया भी नहीं जा सकता था।


थोड़ा बहुत जानकारी लेने के पश्चात हमारी टीम ने तय किया कि हम सरचू से 25 किलोमीटर मनाली की तरफ भरतपुर तक देख कर आएं कि यहां पर रोड की क्या स्थिति है। यहां पर पहुंचने पर मालूम हुआ कि खराब मौसम के कारण बारालाचा दर्रा पूरी तरह बंद है और बीआरओ द्वारा इसे खोलने का कोई विशेष प्रयास भी नहीं किया जा रहा था। भरतपुर जो की समुद्र तल से 15000 फीट के आसपास की ऊंचाई पर मौजूद है और यहां से बारालाचा दर्रा बेहद नजदीक है। हमने सरचू के बजाय इस स्थान पर रुकने का फैसला किया ताकि यहां से आगे के सड़क का स्थिति ठीक ठीक से पता चल सके और हम आगे को बढ़ सकें। आज के दिन हमने महसूस किया की बीआरओ द्वारा इतनी आपात स्थिति में भी दो दिन तक सड़क खोलने की कोई विशेष कोशिश नहीं की गई है।  यह देखकर बेहद अफसोस और दुख भी हुआ कि इतना महत्वपूर्ण मार्ग जिसमें हजारों की संख्या में लोग जगह-जगह पर विपरीत परिस्थितियों में रुके हुए थे। बीआरओ जैसे संगठन द्वारा इस मार्ग को खोलने के लिए कोई  प्रयास नहीं किए जा रहे थे। इस दिन इनका एकमात्र जेसीबी थोड़ी दूर तक सड़क से बर्फ हटाने का काम करने के बाद 2 घंटे में ही वापस लौट गया जबकि इनके पास तमाम तरह के संसाधन उपलब्ध थे। हजारों की संख्या में मौजूद इनके श्रमिक बिना काम इधर से उधर टहलने में व्यस्त थे और इनका जेसीबी भी 8 – 9 घंटे काम करके मार्ग को थोड़ा खोल सकता था।


खैर, हमने यहां पहुंच कर तय किया कि वापस सर्चू जाने से बेहतर है यही न्यू भरतपुर नामक एक जगह पर स्टे किया जाय। बारिश के मौसम में भूस्खलन का दर था और आगे बढ़ते रहना हमारी मजबूरी।आज का दिन हल्की बर्फबारी का दिन था और यहां पर  हवा के साथ गिरती हुई बर्फ ठंड को लगातार बढ़ा रही थी। इस जगह पर ऑक्सीजन की कमी होने के कारण आप बहुत ज्यादा शारीरिक गतिविधियां नहीं कर सकते। इसलिए आज के दिन हम लोगों ने टेंट के अंदर रहना ही ज्यादा उचित समझा और बेहद सीमित मात्रा में बाहर निकले। तथापि बाहर बर्फबारी के कारण चारों तरफ सुंदर नजारे दिखाई दे रहे थे और सामने मौजूद एक छोटी झील में पानी बर्फ के साथ जम गया था जो बहुत सुंदर दिखाई दे रहा था। जिस टेंट में हम रुके थे वह काफी बड़ा था जिसमें कई सारे बिस्तर एक साथ में लगे हुए थे और यहां मौजूद साथ में ही किचन से गरम गरम खाना, चाय आदि हम को तुरंत मिल जा रहे थे जो सरचू में मौजूद टेंट की अपेक्षा बेहतर अहसास करा रहे थे। चूंकि यहां पर एक साथ ही कई लोग आपके साथ होते हैं और आप आपस में बात करते हुए अपना समय अच्छे से गुजार सकते हैं। लेकिन अभी सड़क खुलने में हो रही देरी के कारण लगातार बेचैनी महसूस हो रही थी क्योंकि पीछे कई महत्त्वपूर्ण काम इस कारण अटक गए थे।

अगले दिन सुबह मौसम कुछ साफ हो गया  और हमें उम्मीद थी कि बीआरओ जल्दी आ कर सड़क खोलने का काम शुरू करेगा लेकिन दुर्भाग्य से आज के दिन भी लगभग 12 बजे के आसपास उनका एकमात्र जेसीबी हमारे सामने से गुजरा और इस प्रत्याशा में कि शायद सड़क खुल जाएगी हम लोग भी थोड़ी देर बाद उसके पीछे-पीछे चल दिए। आगे बढ़ते बढ़ते बर्फ की मात्रा ज्यादा हो गई  जिस कारण जेसीबी को इसे हटाने में काफी वक्त लगने लगा और हम उसे आगे बढ़ते हुए इस आशा के साथ देख रहे थे कि यह देवदूत बनकर इस मार्ग को आज खोल देगा और हम आगे निकल पड़ेंगे। लेकिन कुछ दूरी तक ही साफ करने के बाद हमें बताया गया कि आज मार्ग नहीं खुलेगा और बाकी का कल खोला जाएगा। इस कारण हम लोग देर शाम तक वापस पुनः उसी जगह पर वापस आ गए जहां पर हम कल रात रूके थे। लेकिन फिर हमें इसी दिन पता चला कि बीआरओ के किसी जूनियर इंजीनियर को भी आज वापस लौटना है जिस कारण आज जेसीबी ज्यादा से ज्यादा सड़क को खोलने का काम करेगी। यह जान के संतोष हुआ कि यदि आज ज्यादा से ज्यादा बर्फ हटा ली जाती है तो कल हम आगे बढ़ पाएंगे लेकिन यह देखकर दुख भी हुआ की एकमात्र जूनियर इंजीनियर के लिए इनकी पूरी मशीनरी सड़क खोलने के लिए लग गई थी जबकि कई विपरीत परिस्थितियों में रुके हुए हजारों लोगों के लिए इनके द्वारा कोई विशेष प्रयास नहीं किए जा रहे थे। मेरा मानना है कि इस मार्ग को जो कि अब काफी चहल पहल वाला मार्ग बन गया है इसे राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को दे दिया जाना चाहिए और बीआरओ को यहां से हटा कर बॉर्डर की रोड की तरफ ही रखना चाहिए।


अगले सुबह हम लोग को पता चला कि पिछली रात बीआरओ द्वारा अपने जूनियर इंजीनियर को छोड़ने के लिए देर रात तक काम किया गया था जिस कारण मार्ग काफी हद तक खुल गया था। इसलिए हम लोगों ने सुबह नाश्ता लेने के बाद आगे को प्रस्थान किया क्योंकि यहां पर अभी भी कुछ बर्फ मौजूद थी और गाड़ियां जगह जगह पर फिसल रही थी या अटक जा रही थी। इसलिए हमारे साथ मौजूद तमाम वाहनों के लोगों द्वारा सामूहिक रूप से इन वाहनों को धक्का मारकर या रस्सी से खींचकर आगे बढ़ाया जाता रहा।

 आगे बढ़ने पर सूरज ताल के पास हमें बीआरओ के कई ट्रक दिखाई दिए अब चूंकि बस सिर्फ एक लीक में ही काटी गई थी और उसे बाहर निकलना संभव नहीं था।ऐसी स्थिति में हमने बीआरओ वालों से गुजारिश की कि आप अपने मौजूद जेसीबी से डबल लीक काटकर अपने ट्रकों को एक साइड करने के बाद हमें आगे बढ़ने दें। लेकिन इन लोगों ने हमें लगभग 2 घंटे तक आगे नहीं जाने दिया और इनके ट्रकों को निकालने के बाद ही हमें आगे बढ़ने का मौका मिला। मुझे इन लोगों का इस तरह का व्यवहार बिल्कुल भी समझ से परे था और इनकी अनप्रोफेशनल सोच को देखकर बहुत क्षोभ भी हुआ। एक वर्दीधारी संगठन होने के कारण मैं इनका बहुत सम्मान करता था लेकिन ये देख के दुख हुआ कि इनके श्रमिक भी बहुत बदतमीजी से बात कर रहे थे। लेकिन ये सोचकर कि मूर्खों के मुंह लगना अपने लिए ही ठीक नहीं होता और हम लोग काफी दिनों से वैसे ही परेशान थे इसलिए हमने इन्हें कुछ ना बोलते हुए जितनी हो सके झेला  और उसके बाद फिर आगे बढ़े। आगे भी काफी बर्फ मौजूद थी और लेकिन यहां पर आज धूप आने के कारण परिस्थितियां बदलने लगी थी और अब रास्ता थोड़ा आसान सा लगने लगा था। आगे बढ़कर हमने यहां सूरज ताल को पार किया और हम यहां से नीचे उतरते हुए  आगे बढ़े।




आगे का रास्ता भी कई जगह पर बारिश के कारण क्षतिग्रस्त हो रखा था और इसे पार करने में हमें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। हमारा काफी समय टूटी और क्षतिग्रस्त सड़कों को पार  करने में खर्च हो गया तथापि संयम बनाते हुए हम लोग धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ते रहे। आगे अटल टनल से पहले भी पूरा मार्ग क्षतिग्रस्त हो रखा था जिस कारण हमें एक पतली सी सड़क पर कई किमी अतिरिक्त जाकर इसे पार करना पड़ा। मनाली पहुंचने के बाद देखा कि यहां के मुख्य राजमार्ग से क्षतिग्रस्त हो गए थे और पुलिस द्वारा हमें पतली पतली सड़कों पर जाने हेतु कहा गया। इन से गुजरते हुए हम लोग आगे बढ़ते रहे और धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए घर वापसी करते रहे।  आगे कुल्लू से मंडी की ओर जाने वाली सड़क भी पूरी तरह क्षतिग्रस्त थी इस कारण यहां से एक पतले दूसरे मार्ग पर होकर हम  गुजरे और इसमें भी हमारा काफी समय व्यतीत हो गया। लेकिन जैसा भी हो हम लोग आखिर में एक लंबे थकाऊ सफर के बाद अपने घरों तक सुरक्षित पहुंच गए। इस तरह ये सफर एक कभी न भूलने वाले सफर बनकर रह गया जिसकी यादें हमेशा स्मृतिपटल पर अंकित रहेंगी।

आप सभी मित्रों  इस पूरे सफर पर हमारा साथ देने के लिए धन्यवाद। आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।

लेखक हिमालय प्रेमी घुमक्कड़ हैं.