हिमाचल और लद्दाख की रोमांचक यात्रा – 3
सत्या रावत
पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा कि हम लोग केलांग से आगे चलकर जंस्कार घाटी के मुख्य बाजार पादुम तक पहुंच गए थे। पादुम में हमें एक तिब्बती रेस्टोरेंट में वहां के स्थानीय उत्पाद के साथ-साथ भारतीय व्यंजनों का भी खाने का मौका मिला। जैसा कि हम अक्सर अपनी यात्रा में करते हुए आते हैं और इस बार भी कर रहे थे कि सुबह उठकर चाय पीने के साथ और नहाने धोने के बाद अपने सफर पर आगे बढ़ जाना और सुबह सुबह ज्यादा से ज्यादा दूरी तय करने की कोशिश करना। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए आज भी हम बहुत सुबह अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर गए।
यह पहले से ही तय था कि हमें कारगिल वाले मार्ग से नहीं जाना है।अपितु अभी कुछ समय ही पहले खुले पादुम – लामायुरु लेह मोटरमार्ग पर आगे बढ़ना है यह मार्ग शुरुआत में करीब 40 किलोमीटर के आसपास बहुत शानदार बना हुआ है। खुले मैदान के साथ में चलते चलती हुई यह सड़क अपने दोनों और बेहतरीन दृश्य और खूबसूरत गांवों से होकर गुजरती है। ऊपर हिमालय के सूखे ऊंचे पहाड़ और नीचे जंस्कार नदी के साथ में फैलाव ली हुई यह घाटी ड्राइविंग करने वाले लोगों के लिए एक स्वर्ग की तरह है। यह मोटर मार्ग जंसकार नदी के साथ-साथ काफी दूर तक चलता जाता है लेकिन एक बार को जब पक्की सड़क खत्म होती है तो उसके बाद बेहद चुनौतीपूर्ण सड़क और सफर शुरू हो जाता है।
इस नदी के साथ में तमाम चट्टानों के बीच से गुजरती हुई पतली सी सड़क में गाड़ी को बहुत संभल संभल कर चलाना पड़ता है। नीचे साथ में बहती हुई नदी के आवाज आपको रोमांचित करने के साथ-साथ भयभीत भी करती है। संकरी घाटी में आगे बढ़ते हुए यह पता ही नहीं चल रहा था कि हम कब तक अपने गंतव्य तक पहुंचेंगे। इस मार्ग पर कहीं कहीं पर मौजूद छोटे-छोटे ढाबे आप का मनोबल बढ़ाते हैं और आपको उम्मीद दिलाते हैं कि आप सही सड़क पर चल रहे हैं लेकिन यहां की टूटी हुई वीरान सड़क आपके आत्मबल को बार बार हिलाती है और आप खुद से ही सवाल पूछते हैं कि हम सही जा भी रहे हैं या नहीं। यहां के लोग पूछने पर आपको सड़क की दूरी और इस पर लगने वाले समय के बारे में बताने की कोशिश करते हैं लेकिन यहां के अधिकतर लोगों को यह पता नहीं है कि हम मार्ग कुल कितने किलोमीटर का है। हम लोग जितनी बार यहां के बारे में पूछते उतनी बार अलग जवाब मिलते और हम पूरी तरह से कंफ्यूज हो जाते। लेकिन चूंकि आगे बढ़ना था और लेह तक पहुंचना था तो हम लगातार अपने सफर को आगे बढ़ाते रहे।
लगभग 70 किलोमीटर चलने के बाद हमें बताया गया कि हमें अब Janskar नदी को पार करने के बाद ऊपर को चढ़ना है और आगे जाने पर हमें दो महत्वपूर्ण दर्रे मिलेंगे। इसी आधार पर हम लोगों ने अपनी गाड़ी उस ओर मोड़ दी और आगे बढ़े। यहां पर मार्ग कुछ दूरी तक पक्का था लेकिन इसके साथ में इतने सारे मोड़ थे कि गाड़ी एक मोड़ को पार करती और दूसरा मोड़ सामने आ जाता और लगभग 25-30 मोड़ों को काटने के बाद अंत में हम लोग एक पहाड़ की चोटी पर पहुंचे। इस घाटी के दृश्य अपने आप में अद्भुत है और जिस मार्ग पर हम चल रहे थे इस मार्ग पर अभी तक बहुत ज्यादा यात्री नहीं चले हैं इसलिए यहां के अनदेखे दृश्यों को देखकर नवीनता का भी अहसास हुआ और लगातार आगे बढ़ते बढ़ते हम लोग इस मार्ग के सबसे ऊंचे दर्रे सिंगी ला तक पहुंच गए।
पिछले लगातार दो दिनों से हमारे साथी श्री सुधांशु घिल्डियाल अपने वाहन को चला रहे थे और कल की सड़क के बेहद खराब होने के कारण मैंने महसूस किया कि उन्हें अब आराम देना चाहिए इस कारण प्रातः ही मैंने उन्हें कहा कि आज वाहन को मैं चला लूंगा ताकि आपको आराम मिल सके और यह प्रयोग ठीक भी रहा। क्योंकि इसके बाद हमने जो आगे अपना सफर तय किया उसमें उन्होंने ही गाड़ी को ड्राइव किया। चूंकि वह एक एक्सपर्ट ड्राइवर है और अधिकतर गाड़ी को स्वयं ही चलाना पसंद करते हैं तथापि सफर के आखिर तक थकान उन पर हावी होने लगी थी।
सिंगी ला में आज मौसम खराब होने के कारण आसपास के दृश्य नहीं दिखाई दे रहे थे लेकिन जहां तक नजर जा रही थी यह महसूस हो रहा था कि यह स्थान कितना खूबसूरत है और यहां से आसपास के दृश्य कितने खूबसूरत दिखाई देते होंगे। यहां पर मौजूद बर्फ और यहां की ऊंचाई हमारी टीम को बहुत अच्छी तरह से रोमांचित कर रही थी किंतु मौसम के मिजाज और ठंड के कारण हम लोग यहां पर ज्यादा देर नहीं रुक पाए और यहां से नीचे को उतरने लगे।
यहां से नीचे को उतरते हुए विभिन्न किस्म की वनस्पतियों के दर्शन होते हैं जो उच्च हिमालय क्षेत्र में ही पाई जाती है यहां पर बहती हुई छोटी-छोटी जलधाराएं बहुत ही खूबसूरत लगती हैं और हम इस क्षेत्र में लगातार नीचे को उतरते चले गए। काफी आगे जाने पर हमें एक चाय का ढाबा दिखाई दिया लेकिन क्योंकि हमें आज अपने गंतव्य तक पहुंचने की जल्दी थी तो हम यहां पर ना रुकते हुए आगे को बढ़ चले और फिर एक बार चढ़ाई का सिलसिला आरंभ हो गया और मोड़ फिर से प्रारंभ हो गए। इन मोड़ों पर चढ़ते हुए हम लोग फिर से यहां के एक दर्रे शिर शिर ला में पहुंचे यह जगह भी अपने आप पर बहुत खूबसूरत है। यहां पर रुक कर हम लोगों ने इस जगह का अच्छे से अवलोकन किया और दृश्यों का मजा लेने और फोटो खींचने के बाद आगे बढ़ चले।
इसके बाद जो रास्ता था वह बहुत खराब हो चला था। चट्टान और गड्ढों से युक्त वह सड़क जिसको हम पिछले 2 दिन से झेल रहे थे फिर से सामने मौजूद थी। खैर किसी तरह हम धीरे-धीरे अपनी गाड़ी को बचाते हुए आगे बढ़ते गए और श्रीनगर – लेह राजमार्ग से चंद किलोमीटर पहले पहुंचे। यहां पर पतली लेकिन मजबूत पक्की सड़क हमारे सामने थी। लेकिन ये घाटी अपने आप में बहुत खूबसूरत थी और इसके साथ में चलता हुआ नदी का पानी बहुत अच्छा महसूस करा रहा था। जिस कारण हम लोग यहां रुक कर इस घाटी के दृश्यों को आत्मसात किया और फिर आगे बढ़े।
कुछ दूर जाने के पश्चात हमें श्रीनगर लेह हाईवे के दर्शन हो गए और हमने यहां से लेह की तरफ अपनी गाड़ी मोड़ दी। कुछ किलोमीटर जाने के बाद हमें इस मोटर मार्ग पर मौजूद खालसी नामक एक स्थान पर खाने के कुछ रेस्टोरेंट दिखाई दिए। जिस कारण हमने यहां पर मौजूद एक स्थान पर अपनी गाड़ी रोक दी और ठीक से अपना भोजन लिया। चूंकि आज आगे बढ़ने की अफरातफरी में हम लोग ठीक से खाना नहीं खा पाए थे। यहां से आगे बढ़ते हुए निम्मू बाजार, सिंधु नदी और जंस्कार नदियों के प्रयाग के दर्शन करते हुए मैग्नेटिक हिल और पत्थर साहिब गुरुद्वारा होते हुए हम लोग शाम तक लेह पहुंच गए।
आज के पूरे सफर में बारिश रिमझिम अपनी बौछारें करती रही लेकिन जैसा मैंने पहले भी कहा कि यह बारिश बहुत हल्की थी और इसने हमें किसी तरह से कोई नुकसान नहीं किया लेकिन लेह जाकर पता चला कि कुल्लू मनाली आदि क्षेत्रों में बहुत ज्यादा मात्रा में नदी ने नुकसान किया है और तमाम राजमार्ग बंद हो गए हैं। अब क्योंकि हमें इन्हीं मार्गों से लौटना था तो अब यहां से वापस कैसे जाएं इस बात की भी चिंता होने लगी और जो हमारे सफर का मजा आधा हो गया। लेकिन जब यहां पहुंच ही गए थे तो यहां घूमना भी बनता था और हमारी टीम ने आज के दिन स्थानीय मार्केट का भ्रमण किया। कुछ फोटो खींचे और फिर वापस होटल में आकर आराम करने चले गए।
जारी….
लेखक हिमालय प्रेमी घुमक्कड़ हैं.