November 23, 2024



कैसे बचेगा ब्रह्म कमल

Spread the love

महावीर सिंह जगवान 


जम्मू कश्मीर से अरूणाचल तक फैला हिमालय, हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड के भू क्षेत्र मे भी अत्यधिक जैवविवधता से सम्मन्न है।


यहाँ के रंग विरंगे फूलों और बहुमूल्य वनोषधियों से लकदक बुग्याल आकर्शक और सम्मपन्न हैं। इन मखमली बुग्यालों की रौनक को चार चाँद लगाने वाला राज्य पुष्प ब्रह्मकमल इकतरफा दोहन और संरक्षण के अभाव मे प्रचुर मात्रा मे पाये जाने वाले स्थलों से भी विलुप्त होता जा रहा है। ब्रह्मकमल औसतन उन दुर्गम क्षेत्रों मे होता है जहाँ चार से सात महीने बर्फ होती है, उच्च हिमालय मे बहुमूल्य दुर्लभ जड़ी बूटियों की पैदावार मृदा गुणवत्ता और तापमान पर निर्भर है। विकसित राष्ट्र रोटी कपड़ा और मकान पर ही समृद्ध नही हैं उनकी सोच और विजन इतना बड़ा है उनके पास उपलब्ध जलीय पर्यावरण, वानिकी, जीव जन्तु, और उच्च ग्लेशियरों की सेहत और जैवविवधता के संरक्षण और संवर्धन के शसक्त और समृद्ध भण्डार हैं। भारत के परिदृष्य मे प्रयास तो दिखता है लेकिन रिजल्ट आशानुरूप नही मिलते।


अभी हाल मे वन अनुसंधान वृत ने पहल की है उच्च हिमालय मे तीन हजार मीटर ऊँचाई पर मिलने वाली ब्रह्मकमल और अन्य बहुमूल्य औषधियों की नर्सरी और पौध तैयार कर इनका विस्तार और संरक्षण किया जायेगा। बड़ा सवाल उत्तराखण्ड के पास उच्च हिमालयी पादपकीय अध्ययन केन्द्र है, जी बी पन्त हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान है, वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान है, भारतीय वन आनुसंधान संस्थान है इसके वावजूद उच्च हिमालय मे बहुमूल्य पादपों, बुग्यालों की सम्मपन्नता मे ह्रास चिन्तनीय है। जब भी हिमालय को नजदीकी से देखने का अवसर मिलता है तो रास्तों मे शराब की बोतलें और बड़े समूह की उपस्थिति का अहसास होता है, आये दिन अखबारों मे पढने को मिलता है टैण्टो मे तस्करों के जमवाड़े लगे हैं। जड़ी बूटी का मै तो एक्सपर्ट नही हूँ लेकिन भारत के उस कोने मे रहने का सौभाग्य है जहाँ जड़ीबूटी की खेती से समृद्धि आई है वह क्षेत्र है कालिम्पोंग।

यदि दस बुद्धिजीवियों की एक टीम बने और यह जानकारी इकट्ठा की जाये उत्तराखण्ड मे वह कौन से क्षेत्र हैं जिन पर अभी तक काम नहीं हुआ आश्चर्य होगा ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं बचा हुआ है जिसे सहेजने की पहल न हुई हो बल्कि सहेजने वाली परियोजनाऔं ने स्थितियाँ और खराब की यह रिकार्ड है। इसलिये बहुत संवेदनशीलता के साथ लक्ष्य प्राप्त करने की शसक्त जरूरत है। स्पष्ट है विगत तीस वर्षों मे हिमालयी बुग्यालों मे स्थानीय चरवाहों की संख्या पिचानब्बे फीसदी घटी है और उच्च हिमालय के सम्मपन्न बुग्यालों की सुरक्षा पुख्ता नही है। बड़ा सवाल है आखिर समाधान के लिये कौन से मार्ग हैं ।औसतन सभी उच्च हिमालयी बुग्यालों से नजदीकी पर इन पारम्परिक भेड़ बकरी पशुपालकों के कच्चे पड़ाव हैं जो अब लग भग बंजर पड़ चुके हैं। इन्ही पड़ावों पर छोटे छोटे खेत भी हैं जहाँ दशकों पहले आलू की खेती होती थी।इन्हीं क्षेत्रों को चिन्हित कर स्थानीय सहभागिता के माध्यम से छोटी छोटी शुरूआत हो सकती है। इनका वैकल्पिक रोजगार क्षेत्र की निगरानी काफी फायदेमंद हो सकती है। हाँ सरकारों को पहल करने से पहले एक्सपर्ट और रिजल्ट देने वाले वैज्ञानिकों की उत्पादक और तय समय पर रिजल्ट देने वाली टीम गठित करनी चाहिये। इस एक्सपर्ट टीम और स्थानीय स्तर पर उपलब्ध ऐप्रोच से उच्च हिमालय की सम्मपन्नता को सहेजा जा सकता है।


ये लेखक के विचार हैं