हिमांचल यात्रा – ४
दिव्या झिंकवान
कजा से निकलते हुए मन में कुछ आशंकाएं थीं, मसलन कुंजुम ला वाला रास्ता खुला होगा या नहीं, डोल्मा ने भी यही कहा था कि शायद बंद है, और भी कुछ लोगों ने, अब तो मैं और अवि भी मानसिक रूप से कल्पा वाले रास्ते से वापस जाने को तैयार नहीं थे, चाहे कजा रुकना पड़े। पर रात को मौसम ठीक था तो रास्ता भी ठीक ही था, सो निकल ही गए। अब हम कजा से लांगज़ा गांव, दुनिया के सबसे ऊंचे गांव कॉमिक, सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित पोस्ट ऑफिस हिक्किम का सर्किट पूरा करने जा रहे थे।
लांगजा गांव जाते हुए वाकई दुनिया की छत पर टहलने जैसा लग रहा था, बर्फीले पहाड़ एकदम सामने खड़े थे, बल्कि चारों ओर। लांगज़ा में एक बौद्ध मठ है जिसमे बुद्ध की बड़ी सी प्रतिमा स्थित है, उनको दूर से ही देखते हुए हम कॉमिक (4587 मीटर) गांव पहुंचे, सड़क एकदम ठीक है। कॉमिक गांव, जिसकी वर्तमान जनसंख्या 114 है, वहां पर एक प्राथमिक विद्यालय भी था, एक कैफे, एक मोनेस्ट्री, और एक सरायनुमा कुछ। वहां पर सबसे ऊंचे मोटरेबल रोड पर स्थित सबसे ऊंचे गांव का एक बोर्ड था, जिसके साथ हमारा तिरंगा गर्व से लहरा रहा था। ऊपर बर्फीले पहाड़ तैनात थे, पास, बहुत पास। हां ! मुझे ऐसी जगहों से बहुत ऊर्जा मिलती है। मैं खुश थी।
विश्व के सबसे ऊंचे पर स्थित पोस्ट ऑफिस हिक्किम (4440 मीटर) जाकर अपने प्रियजनों को कुछ पोस्टकार्ड लिखे और पोस्ट किए। हां! कई लोगों से बातचीत हुई इस बीच। सभी लोग सहृदय और सहयोगात्मक थे। इसके बाद ‘की मोनेस्ट्री’ देखते हुए एशिया के सबसे ऊंचाई पर स्थित चिचम ब्रिज (4132 मीटर) पहुंचे। उससे पहले किब्बर गांव को भी छू आए। चिचम ब्रिज जिस सांबा लांबा नाले पर बना था वो घाटी भी काफी गहरी थी, यह पुल किब्बर और चिचम गांव को जोड़ने के साथ ही आगे की तरफ जाने पर कुंजुम पास वाले रास्ते पर मिल जाता है, रांगरिक वापस नहीं जाना पड़ता, सो थोड़ी देर रुकने के बाद हम भी उधर ही निकल गए, वो भी कुछ हरियाली लिए हुए अच्छा रास्ता था। अब उस रास्ते पर जाने वाले लोग न के बराबर थे। लेकिन एक गाड़ी हमारे पीछे से आ रही थी, सो हम निकल ही गए।
कुंजुम ला जाने वाले रास्ते पर मिल जाने के बाद कुछ देर बाद ऊबड़ खाबड़ और ग्लेशियरों से भरे रास्ते शुरू हो गए। पुल अधिकतर लकड़ी के ही बने हुए थे। चारों तरफ बर्फ की पहाड़ियों ने घेर लिया था, क्या ही खूबसूरत लेकिन दुरूह सफर था। तस्वीरें खींचते खिंचवाते, रुकते चलते में ही कुंजुम ला भी पार कर लिया जिसे मैं अपनी व्यक्तिगत उपलब्धि मानना चाहूंगी, ये वाकई मेरे लिए चुनौतीपूर्ण था।
अब आगे चलते रहे तो चंद्रा नदी से भी मुलाकात हुई जिसका जिक्र गोपाल शर्मा जी के गीत में भी सुना था। कई किलोमीटर तक चंद्रा नदी के साथ चले, दोनों तरफ से ग्लेशियरों से भरे रास्तों पर मेरी आंखें अच्छी सड़क तलाशती रहीं जहां अवि की आंखें स्नो लेपर्ड को ढूंढ रही थीं। देव और अवि के बीच झगड़े मुझे मूवी “लाइफ ऑफ पाई” जैसा महसूस करवा रहा थे। मुझे उन बीहड़ रास्तों का सफर करना ही था, और चलना ही था, बिना थके और यथा संभव सुरक्षित।
लगभग 70 किलोमीटर के आस पास चलने के बाद रोहतांग की झलक दिखी, बच्चे भी तंग आ ही गए थे पर उन्होंने मुझे उसके लिए बेवजह परेशान नहीं किया। अटल टनल पार करने के बाद ज्यादा हिम्मत नहीं बची थी पर एक फोटो के लिए हम जैसे तैसे खड़े हो हो गए। इसके बाद मनाली की तरफ निकले। कुछ दूर बाद सोलंग से जो तीन से चार घंटे का जाम लगा तो रात के 10 बजे ही हम लोग अपने होटल पहुंच पाए।