पहाड़ में आफ़त की रेल – सड़क
महावीर सिंह जगवाण
चार धाम यात्रा मार्ग मे ऑलवेदर प्रोजेक्ट की सर्वे और थ्रीडी मैपिंग के बाद भूमि अधिग्रहण की शुरूआत।
प्रधानमंत्री जी का ड्रीम प्रोजेक्ट ऑल वेदर रोड ने चार धाम यात्रा मार्गों पर बसे गाँवों, कृषि भूमि, छोटे छोटे कस्बों से लेकर बड़े बाजारों तक मे हड़कंप मचा दी है। हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड के तीन चौथाई पहाड़ी भूभाग मे बसा उत्तराखण्ड मुख्यत: जिन हिस्सों मे थोड़ा सम्मपन्न और विकासशील लगता है वह यही घाटियाँ हैं जिनसे गुजरता है ऑल वेदर रोड। 2013 की आपदा का सबसे अधिक प्रभाव और विनाश इन्हीं घाटियों मे हुआ। चंद वर्षों मे अपनी रौनक लौटा चुके यहाँ के गाँव खेत खलिहान कस्बे और बाजार पिछले दस महीने से ऊहापोह की स्थिति मे थे ही लेकिन पिछले दस दिनों मे अधिक ब्याकुल और हतोत्साहित हुये हैं।
ऑल वेदर का सभी स्वागत करते हैं लेकिन लेकिन सरकार की भूमि अधिग्रहण की कार्यवाहियों से असन्तुष्ट हैं। जनता यह समझ नहीं पा रही है कि मैदानों मे जब गाँव और कस्बै बाजार विकास के लिये उजड़ते हैं तो उनके हितों की रक्षा सर्वोपरि होती है। मुआवजे और अधिग्रहण की जाने वाली भूमि मे अत्यधिक विषमतायें हैं। प्रभावित लोग यह नही समझ पा रहे हैं यदि सड़क का चौड़ीकरण बारह मीटर है और बारह मीटर के भीतर प्रभावित भवन या भवन के हिस्से का मुआवजा बन रहा है तो चौबीस मीटर जमीन का अधिग्रहण क्यों हो रहा है. चौबीस मीटर भूमि यदि सरकार की हो जायेगी तो उस पर स्थित भवनो की स्थिति भविष्य के लिये क्या होगी।
रेल परियोजना और ऑल वेदर पर्वतीय जनपदों के विकास मे नई भूमिका और नये अवसरों का सृजन है जिसका स्वागत होना चाहिये लेकिन प्रभावितों के हितों की रक्षा भी सर्वोपरि है। आज बड़ी जरूरत है राज्य सरकार को आगे आकर अपने नागरिकों के हितों को सहेजते हुये, भूमि अधिग्रहण के बड़े नुकसान की शसक्त भरपाई हो ताकि प्रभावितों को कतई यह अहसास न हो उन्हें ठगा जा रहा है। राज्य सरकार अपनी कैबिनेट के फैसले से परियोजना प्रभावित क्षेत्रों सर्किल रेट बढाकर कृषि भूमि के प्रभावितों के हितों की रक्षा कर सकती है। ऑल वेदर परियोजना मे ऐसे भवन स्वामी जो मुआवजे के दायरे मे न आ रहे हों उन्हे अपनी ओर से अनुकम्पा के आधार पर उन्हें सहयोग दे।
भारत सरकार की दो महत्वपूर्ण परियोजनायें रेल और ऑल वेदर इनमे मुआवजे की समानता हो ।दोनो परियोजनाऔं मे भूमि भवनों का अधिग्रहण हो रहा है। समान और सम्मानजनक मुआवजे से ही समाधान निकलेंगे। प्रभावित भवन स्वामियों के साथ ब्यवसाइयों के हितों की भी रक्षा होनी चाहिये, स्वयं विकसित किये गये रोजगार के अवसर के छिनते ही वह सड़क पर आ जायेगा उसे ऐसे काॅम्पलैक्स का विकल्प हो जिस आधार पर वह पुन: खड़ा हो सके। राज्य सरकार के साथ उसके कैबिनैट और विधायकों एवं जन प्रतिनिधियों को प्रभावितों की समस्याऔं का मिलकर समाधान ढूँढना चाहिये, समय रहते प्रभावितों के संसय और समस्याऔं के समाधान से ही परियोजनाऔं को धरातल मिलेगा अन्यथा राज्य के हित को धक्का लगेगा।
बड़ी सोच बड़ा विजन आम जनमानस के हितों के प्रति उदारता से ही संभव है। राज्यों को अपने उन नागरिकों के हितों की रक्षा करनी चाहिये जो विकट भूक्षेत्र को सहज और सुलभ बनाने मे अपना सर्वस्य न्योछावर करते हैं, जो पलायन के बड़े ब्रेकर हैं, जिनके योगदान से विकट और दुरूह पहाड़ भी सुगम और आकर्षक बनते हैं। समस्या है तो उसका कई गुना बड़ा समाधान भी है, जरूरत है ईमानदारी से शसक्त पहल हो, सभी के हित सुरक्षित हो व तय समय पर परियोजनायें पूर्ण हों।
ये लेखक के अपने विचार हैं.