November 22, 2024



हिमांचल यात्रा -३

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दिव्या झिंकवान


अगले दिन यानी 8 जून को कजा के लिए निकल गए, सतलज के साथ साथ चलते हुए खाब पुल मिला जहां पर सतलज और स्पीति को मिलते देखना भी अच्छा अहसास था। अब वहां से स्पीति घाटी की चढ़ाई शुरू हुई। लंबी कैंचीनुमा सड़कों और दुनिया की छत के नाम से मशहूर रेगिस्तानी पठार के एक छोटे से हिस्से की छाती पर गाड़ी दौड़ाते हुए एक अलग सा अहसास था। रहस्य, रोमांच और बाकी दुनिया से बेपरवाह उस खास जगह की खूबसूरती को महसूस करना। उस बीच रुक रुक कर तस्वीरें भी लेते रहे।हर बदलते हुए दृश्य में कुछ न कुछ अलग था, कुछ खास था, ये कुछ ऐसा था जिसे महसूस किया जा सकता है उसको ठीक ठीक कह पाना एक गूंगे के गुड के स्वाद जैसा था।

नाको गांव पहुंचे। वहां की छोटी सी झील, जिसमें आसमान, हिमालय और बादलों की परछाइयां बहुत सुंदर दृश्य बना रही थीं। इस झील में हमने बाकायदा नौका विहार किया, वहीं पर थोड़ा बहुत खाना खाने के बाद फिर हम आगे की ओर बढ़ गए। सुमदो, जहां पर स्पीति नदी पार्चा नदी से मिल रही थी, वहां पर फिर से अपनी सूचना दर्ज करवा कर आगे बढ़े, कुछ दूर जाकर गुए मठ के लिए 8 किलोमीटर का रास्ता कट जाता है, रास्ता पूरा कच्चा है, उबड़खाबड़ भी। हम गुए मोनेस्ट्री पहुंच गए। गुए मोनेस्ट्री में खास है, ममी! बेचारा देव डर के साथ साथ बुरी तरह कन्फ्यूज हो गया, पूछे, क्या आप भी “ममी” बन जाओगे ? कब तक बन जाओगे ?


600 साल पुरानी ममी

हालांकि मुझसे जितना हो सका, मैने उसको समझाने की कोशिश की। बहरहाल “ममी” को देखना दिलचस्प था कि वो लगभग 600 साल पुरानी थी और बकौल स्थानीय लोगों के, ममी के बाल और नाखून भी बढ़ते रहते हैं। “ममी” आईटीबीपी के बंकरों की खुदाई के दौरान 1981 में मिली और उम्र का पता कार्बन डेटिंग से चला। साथ में एक खूबसूरत मोनेस्ट्री थी जिस पर मरम्मत का काम चल रहा था। हम मुख्य रास्ते की ओर लौट आए। फिर ताबो से होते हुए आगे बढ़ते रहे। पूछते पूछते जाने के क्रम में कजा से 20 किलोमीटर पहले डोल्मा से मुलाकात हुई जो हमारे साथ कजा तक आईं। उन्होंने अपने कल्चर के बारे में काफी कुछ बताया, और बाकी डोलमा अपनी ही टीचर बिरादरी से निकलीं।


सतलुज और स्पिति का संगम

बहरहाल कज़ा में रुके, होटल की खिड़की आसमान, बादलों और चांद को खुद के फ्रेम में समेटे हुए थी। कजा का न्यूनतम तापमान – 3° था लेकिन सुबह धूप निकल आने से मौसम ठीक रहा। वहां पर भी एक मोनेस्ट्री थी। यहां सहित लगभग हर जगह का होटल स्टाफ हमारे लिए बहुत अच्छा और सहयोगपूर्ण रहा। एक और खास बात, हर जगह की तरह यहां भी खाने में हमने थुक्पा ढूंढा और मिला भी। खाकर आए और आराम किया अगले दिन के सफर की तैयारी जो करनी थी।

08/06/23


नाको झील

ग्यु मोनेस्ट्री