हिमांचल यात्रा -२
दिव्या झिंकवान
मेजबान परिवार को शुक्रिया कहकर और साथियों से विदा लेकर हम वहां से निकले, वही खूबसूरत प्रकृति के साथ चलते हुए शाम का हमारा डेस्टिनेशन काल्पा था, लगभग 200 किलोमीटर की दौड़ रही, इस बीच घाटी में केवल किताबों और गीतों के माध्यम से जानी हुई सतलज नदी से पहली मुलाकात हुई। रामपुर बुशहर, सराहन आया तो राहुल सांकृत्यायन और उनकी यात्रा याद आई बल्कि वो बार बार याद आते रहे। रामपुर बुशहर नदी के किनारे घाटी के सबसे निचले स्थान पर था तो वहां पर गर्मी महसूस हुई। नदी किनारे चलते रहे।
काल्पा जाने के लिए कजा वाले मुख्य मार्ग से लगभग 17 किलोमीटर अलग रूट पर गए, क्योंकि काल्पा भी रुकने के लिए एक अच्छी जगह है। काल्पा और रेकोंग पिओ के बीच दो बार आने जाने के बाद पिओ के ही एक होटल में रुके। एक अलग बात ये थी कि यहां के सेब के बगीचों पर वो जाली नहीं थी जो नारकंडा और उस के आसपास की घाटियों में थीं बकौल एक स्थानीय व्यक्ति, यहां ओले नहीं पड़ते हैं तो यहां जाली नहीं लगती।
सामने किन्नर कैलाश का विशालकाय पर्वत अपने साथियों के साथ खड़ा था। वहां पर मोनेस्टी गए और नाग नागिन मंदिर भी। मंदिर की निर्माण शैली देखने लायक थी। हम लोग काल्पा सुसाइड प्वाइंट नहीं जा पाए हालांकि इसका ज्यादा अफसोस नहीं है मुझे, क्योंकि सड़कें और रास्ते पर्याप्त खतरनाक थे, और बच्चों को ऐसी जगहों को दिखाना और समझाना भी मेरे कंफर्ट जोन से बाहर था। बाकी हमें काल्पा में गर्म कपड़े खरीदने पड़े, जिनमें हमने वहां के स्थानीय, ऊन से बुने हुए कपड़े खरीदे। शाम को फिर से थुक्पा ढूंढा और पेटपूजा कर के सो गए। अगले दिन कजा…