हिमांचल यात्रा -१
दिव्या झिंकवान
हिमाचल प्रदेश, इस के शिमला, कुल्लू, मनाली बचपन और बड़े होते हुए मेरा रूमानी नोस्टाल्जिया का एक अच्छा खासा हिस्सा रहा है। जीवन के हर बेहतर लम्हे में यही सोचा होगा कि हिमाचल हो आना था। अक्सर वहां से वापस आए लोग कहते थे कि कुछ नहीं है वहां खास, अपने उत्तराखंड जैसा ही है, पर मैं कह सकती हूं कि हिमालय का हर एक पहाड़ और हर एक वादी बिलकुल अलग और खास है। (मेरे दोस्त सिर पीट लेंगे अब अगर मैं ये कहूं कि रिटायरमेंट के बाद हिमाचल चली जाऊंगी सेब के बागानों के बीच रहने, अगर हालात इजाजत दें तो।)
कई सालों की जद्दोजहद के बाद आखिरकार पिछले कुछ दिनों पहले लाहुल स्पीति जाने का ब्लूप्रिंट तैयार हो ही गया, जरूरत बस खुद को घर से धक्का मारने की थी क्योंकि मेरा इतिहास इस तरह के कार्यक्रमों को कैंसल करने का भी रहा ही है, पर इस बार सिर पर सवार मेरे बच्चे भी कैटेलिस्ट का काम कर रहे थे और मैं भी जाना ही चाहती थी ये खुद को आजमाने जैसा भी था।
फाइनली 6 जून की सुबह 5 बजे हम देहरादून से कूच कर ही गए, मैं और बच्चे, नाहन से आगे सराहन में अच्छा नाश्ता कर के दिन के लगभग 11 बजे शिमला पहुंचे, अच्छा खासा जाम था और फिर शिमला में कुछ देर मॉल रोड पर देव और अब्बू के शॉपिंग शॉपिंग वाले ट्रॉमा से जबरदस्त स्ट्रगल करते हुए शाम को हम मशोबरा, कुफरी, थिओग होते हुए नरकंडा पहुंचे। नाम का उच्चारण करने में अभी भी थोड़ा दिक्कत है सो जैसा गूगल कहे । कुल सफर लगभग 300 (236+63) किलोमीटर का रहा। वहां एक सौम्य परिवार के होटल कम होमस्टे में रुके। नारकंडा में ठीक ठाक ठंड थी। परिवार सा माहौल, घर का खाना और सुरक्षा और साथ में मिलीं दो पड़ोसनें कोलकाता से, सो तय हुआ कि सुबह हातू पीक जायेंगे समुद्र तल से लगभग 3400 मीटर की ऊंचाई पर, पूरे 360° पर दृश्यों के साथ सूर्योदय देखने।
सुबह 5 बजे हातू पीक पहुंच भी गए लेकिन बादलों ने हमें निराश किया और एकाध घंटे वहां प्रतीक्षा करने के बाद हम अपना सा मुंह ले कर लौट आए। बहरहाल रास्ता बेहद खूबसूरत था। जंगल में शायद मेला होता हो, तो मेले की चरखियां बीच जंगल में खूबसूरती और मजे का सबब थीं। सेब के बागानों से लदी हुई दूर तक फैली हुई घाटियों के दृश्य चारों तरफ, ये सब अविस्मरणीय था। वहां पर मंदिर था, जिसका निर्माण मुझे बौद्ध मठों की निर्माण शैली से प्रेरित लगा। भीम चूल्हा के नाम से प्रसिद्ध दो बड़ी समांतर चट्टानें और गुफा भी देखने को मिलीं। बहरहाल वापस आकर मेजबान परिवार को शुक्रिया कहकर और साथियों से विदा लेकर हम वहां से निकल गए, अगला स्टेशन काल्पा था ।