आवारगी – 3 -फतेह पर्वत की ओर
विजय भट्ट
राजशाही के दौरान पूरे रंवाई के इलाके में राजगढ़ी राजा के प्रशासन का मुख्य केन्द्र था जहां से टिहरी रियासत का राजा अपने ओहदेदारों के जरिये सीधा शासन करता था। कोटी बनाल से राजगढ़ी पास ही है। हम चल पड़े राजगढ़ी के लिये। कुछ ही देर मे हम राजगढ़ी पहुंच गये। यमुना के किनारे यह जगह उंचाई पर है जहां से पूरी घाटी नजर आती है। यहां बसाहट के साथ यहां कुछ दुकाने हैं और राजकीय इण्टर कालेज के साथ यहां पर एक केन्द्रीय विद्यालय भी है। जबकि यहां पर कोई केन्द्रीय कार्यालय भी नही है जहां केन्द्र सरकार के कर्मचारी काम करते हों, जिनके बच्चों के लिये सामान्यतया ये स्कूल होते है। मालुूम करने पर पता चला कि टिहरी संसदीय क्षेत्र के सांसद रहे मानवेन्द्र शाह के प्रयास से तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने यहां केन्द्रीय विद्यालय स्वीकृत हुआ था। मानवेन्द्र शाह टिहरी रियासत के राजपरिवार की नुमाईंदगी भी करते थे। आजाद भारत में भी इस रियासत के लोग उन्हें राजा ही कहा करते थे।
इस सुदूर इलाके में केन्द्रीय विद्यालय का होना एक सुखद अनुभव देता है। मैने अभी तक सांसद मानवेन्द्र शाह द्वारा किया गया एक यही काम देखा। इस स्कूल के पास से ही एक पैदल मार्ग उपर गढ़ की ओर जाता है। इस रास्ते होते हुये हम उपर राजा की गढ़ी देखने पहुंच गये। छोटी पर घनी बस्ती से होते हुये हम उपर मैदान पर पहुंच गये। वहां एक बडा सा समतल मैदान दिखाई दिया। ऐसे बड़े मैदान पहाड़ों में कम ही नजर आते हैं। इस मैदान के सामने टिन से कवर एक बड़ा सा मंच मौजूद था जिस पर राजगढ़ी सांस्कृतिक केन्द्र का बोर्ड लगा था। एक तरफ राजकीय इण्टर कालेज का भवन। इस मैदान से होते हुये हम राजा के उस पुराने गढ़ को ढूंढने लगे। ढूंढते हुये हमे एक खण्डरनुमा कोठी दिखाई दे जाती है। यही पुरानी गढ़ी है जो आज खण्डहर के रूप में तब्दील हो गई। इसके दलान पर कंडाली घास जमा है भीतर जानवर बैठे हैं। राज गढ़ी के खंडहर को देखकर लग रहा है कि कहा जा सकता है कि इमारत कभी बुलंद रही होगी। अच्छे खासे आंगन के साथ तिबारी युक्त दो मंजिला मध्य भवन के साथ दो भुजायें दाईं बायीं ओर हैं जिनमेे तिबारी बनी हुई हैं। दरवाजों की चोखटों पर नक्काशी नजर आती है। यह राज्य की विरासत का हिस्सा है जिसका संरक्षण होना चाहिये। इसको देखकर हम वहां से वापिस नौगांव के लिये चल दिये।
नौगांव से हम पुरोला-मोरी की तरफ चल पड़े। पूरोला से जरमोला धार के लिये चीड़ के घने जंगलो के बीच हमारी बाईक सरपट दौड़ रही थी। नीचे घाटी में रमासिरांई के खूबसूरत खेत नजर आते हैं। चीड़ के पेड़ पर चीरा लगा है लीसा निकालने के लिये। धीरे धीरे ठंड बढ़ रही है। हम जरमोला धार टाप पर पहुंच गये हैं। यहां जंगलात का बंगला है। एक चाय पानी की अच्छी सी दुकान है। यहां चाय पीने के बाद आगे के सफर शुरू हुआ। आगे ढलान वाला रास्ता है। शाम होते होते हम मोरी पहुंच गये। मोरी टोंस नदी के किनारे बसा एक कस्बा है जो उत्तरकाशी जिले की एक तहसील भी है। यहां से एक रास्ता हनोल त्यूनी के लिये जाता है और दूसरा उत्तर दिशा की ओर जाने वाला रास्ता नेटवाड़ सांकरी की ओर जाता है। हमें सांकरी जाना है इसलिये हम नेटवाड़ वाले रास्ते पर चल पड़े।
जब हम साल 1987 में पैदल यहां से होकर जा रहे थे तो हमने टोंस नदी के किनारे अपना टेंट लगाया था। उस समय नदी का किनारा एक खुला मैदान था। आज यहां बसाहट है। कालोनी का निर्माण हो गया है। यहां टोंस नदी पर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट का काम चल रहा है। इस प्रोजेक्ट के चलते यहां का दृश्य कुछ अजीब सा लग रहा है। बहती नदी और हरे भरे जंगल में मलवे के ढेर बदसूरत से धब्बे लग रहे थे। हमें आज सांकरी पहुंचना था। आगे का मार्ग चढ़ाई वाला है। रास्ता खराब है। सडक पर जगह जगह गड्ढे हैं। बरसात के कारण सडक पर कीचड़ भी हो गया है। बाईक हल्की गति से आगे बढ़ रही है। रास्ते मे अंधेरा हो गया। बारीश भी पड़ने लगी है। सांकरी से बार बार फोन भी आ रहे थे। हम धीरे धीरे आगे चलते रहे। नेटवाड़ से उपर सेब के बगीचे लगे हैं जो सन् 87 में नही थे। हिमाचल वालों ने यहां आकर बगीचे लगाये हैं। अब स्थानीय लोगों के भी हैं सेब के बगीचे।
रात आठ बजे के लगभग हम सांकरी पहुंच गये। वहां बाजार में बचन ने गर्मजोशी के साथ हमारा स्वागत किया। बचन सांकरी का ही रहने वाला है और इंद्रेश के साथ टूर ट्रेकिंग के व्यवसाय में काम करता है। आपको यहां बता दूं कि साथी इन्द्रेश उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों के लिये टूर ट्रेकिंग का काम व्यवसायिक रूप से करता है। हर की दून में प्रदेश के बाहर से विशेष रूप से महाराष्ट्र से बड़े बड़े ग्रुप को ट्रेकिंग करवाना इंद्रेश ने ही शुरू किया था। इसीलिये इस इलाके में उसे लगभग सभी जानते हैं। रात के खाने के लिये इंद्रेश ने कमल को रास्ते से ही फोन कर दिया था। कमल मूलतः तो नेपाल का रहने वाला है पर अब वह सांकरी में अपने परिवार के साथ रह रहा है। वह भी इंद्रेश के साथ ट्रेकिंग वाले व्यवसाय में रसोइये के रूप में जुड़ा रहा। अभी उसने यहां सेब के बगीचे भी लगाये हुये हैं। कमल का घर सांकरी के मुख्य बाजार में ही है। हमने बाईक को बाजार में सड़क के किनारे खड़ी कर दिया जहां बचन हमें मिला था। वहां से हम तीनो कमल के घर चले आये।
बाजार से कुछ सीढ़ियां उतरते हुये हम कमल के घर जा पहुंचे। यह कोई बहुत बड़ा घर नही था। हम सीधे नीचे रसोई में पहुंच गये जहां वह और उसका परिवार हमारा इंतजार कर रहा था। रामा रामी हुई और हम जमीन में बिछे गद दे पर पसर गये। रसोई के बीचोंबीच लोहे का बना धुम्र रहित च चुल्हा जल रहा था। बगल में उपर कुकिंग गैस भी रखी हुई थी। जलता हुआ यह चुल्हा मुझे बहुत भाया, कारण एक तो इसमें तवे के रूप में इस्तेमाल करने के लिये लोहे की मोटी सी प्लेट इन बिल्ट थी और उसके पीछे खाना पकाने के लिये एक पतीली रखी गई थी जिसमेे इस समय पानी गर्म हो रहा था, धुयें की निकासी के लिये टिन का एक पाइप छत से बहान निकला हुआ था, और खास बात यह थी कि यह चुल्हा बेमौसम बरसात की इस ठंडी रात में हमें गर्माहट दे रहा था। बस गप्प शप्प चल पड़ी। स्थानीय समुदाय द्वारा बनाई जाने वाली सुरा अब यहां नही मिलती। मालूम पड़ा कि जब से यहां पुलिस थाना खुला तभी से यहां वह सुरा नही मिलती, नेटवाड़ में अंग्रेजी का ठेका खुल गया है। हमारे पास अपना इंतजाम था। खाने पीने का दौर शुरू हो गया। कमल ने हमारे लिये चिकन बनाया था। चुल्हे से निकली तरोताजा गर्मागर्म रोटी और चिकन। क्या कहने। वहां से रात्री का भोज कर हम सोने के लिये निकल पड़े। बचन ने हमारे सोने के लिये सांकरी के सबसे अच्छे होटल ’’मेराकी’’ में हमारा सोने का प्रबन्ध करा हुआ था। यह होटल बाजार से लगभग दो सौ मीटर की दूरी पर तालुका जाने वाले रास्ते में पड़ता है। बचन सिंह हमें होटल में छोड़ कर अपने घर चला गया । हम अपने अपने बिस्तर पर सो गये।
यात्रा जारी है । शेष अगली बार।
(मैं विजय भट्ट साथ में इंद्रेश नौटियाल)
20-04-2023