आवारगी – २- फिर फतेह पर्वत की ओर
विजय भट्ट
पुरानी बाईक ने पिछली कई यात्राओं में पूरा साथ दिया था। अब इन्द्रेश की नई बाईक आ गई। तो नई वाली मोटर साईकिल टीवीएस की रोनिन 225 में लंबा जाने का मन काफी दिनों से बन रहा था। जहां मन आये वहां रूको फिर आगे बढ़ो वाली तर्ज पर, साल 1987 में की गई पद यात्रा वाले रास्ते में दोबारा जाने का मन काफी समय से था। आखिर उन्नीस अप्रेल की सुबह देहरादून से साथी इन्द्रेश के साथ मैं चल दिया। मसूरी पार करते करते बारिश ने दस्तक दे दी। बरसाती साथ में न ले जाकर गलती कर दी थी। कैम्टी के पास एक चाय के ढाबे में रूकना पड़ा। रोटी सब्जी हमारे टिफन में थी। समय का सदुपयोग करते हुये हमने वहां चाय का आर्डर दिया और घर से लाई रोटी सब्जी से नाश्ता किया। चाय भी पी ली पर बारिश थी कि रूकने का नाम ही नही ले रही थी। एक आध घंटा इन्तजार करने के बाद बारिश हल्की होने पर हम आगे यमुना पुल की तरफ बढ़े। घाटी की पहाड़ियों पर खिले हुये कचनार के फूल पहाड़ पहाड़ की सुन्दरता को बढ़ा रहे थे। कचनार एक औषधीय गुणों से युक्त पेड़ होता है जिसके फूलों से पहाड़ में पटुंगी (पकोड़ी) और कलियों की स्वादिष्ट सब्जी अचार आदि बनता है।
बारिश रूक गई थी। हमारी बाईक यमुनोत्री राज मार्ग पर आगे बढ़ रही थी। बाईं ओर यमुना नदी बह रही है। यमुनोत्री राज मार्ग आज भी संकरा है। कई जगह किनारे खड़े होकर बड़ी गाड़ी को रास्ता देना ही सुरक्षित सा लगता है। पता नही इस रास्ते को चौड़ा क्यों नही किया गया। शायद यमुनोत्री धाम में कम यात्रियों का आना इसका एक कारण हो सकता है। कुछ देर चलने के बाद मौसम फिर खराब होने लगा। हल्की हल्की बारिश शुरू हो गई। भीगते हुये आगे चलते रहे। नैन बाग आने पर एक दुकान में रूक गये और सबसे पहिले ओढ़ने के लिये हल्की सी प्लास्टिक की शीट खरीद ली। यह इतनी पतली थी कि इसका प्रयोग केवल एक ही बार किया जा सकता था। उतारने पर फट जाती। वहां बारिश रूकने का इंतजार किया और इसे सुरक्षित संभाल कर रख लिया गया कि आगे काम आयेगी।
बारिश रूकने पर फिर चल पड़े। बेमौसम की बारिश होने पर नदी नाले झरने आदि बह चले। इनका बहना पहाड़ों की खूबसूरती को बढ़ा देता है। डामटा पार कर लिया था। सुमन क्यारी पहुंचने ही वाले थे कि सामने से तेज बारिश आती दिखाई दे गई। हमने तुरंत बाईक वापिस मोड़ी और पास की के एक टिन शेड वाली दुकार पर जाकर रूक गये। बीस एक मिनट बाद बारिश रूक गई। हम सुमन क्यारी पहुंच गये। चाय पीने की इच्छा हो रही थी। बहते झरने के पास एक नौजवान की दुकान पर बाईक रोक दी और चाय बनाने के लिये कहा। कोरोना काल मेे नौकरी छूटने पर यह नौजवान लड़का बम्बई से वापिस अपने घर आ गया था। यहां उसने अपना ढाबा खोल दिया। उसने चाय अच्छी बनाई थी। हमने उससे यमुना की स्वादिष्ट मछली के बारे में चर्चा की तो उसने तपाक से बताया कि उसने मछली बना रखी है। दोपहर खाने का समय हो ही गया था तो सोचा कि क्यों न मछली खा ली जाय रोटी तो हमारे पास है ही। बस मछली शोरबे के साथ दोपहर का भोजन किया और आगे निकल पड़े।
खाने खाते खाते हमने तय कर लिया था कि पहले राजगढ़ी चलेंगे। पूरे रास्ते बारिश आंख मिचोली का खेल खेलती रही। दिन छिपने लगा था। बारिश भी आने वाली थी। राजगढ़ी अभी बीस किलोमीटर दूर था। रास्ते में दुकानों पर रात में रहने का ठौर ठिकाना मालूम करते हुये आगे चलते रहे। कुछ लोगों ने वापिस बढ़कोट लोट जाने की सलाह भी दी पर हम यह सोचकर आगे चलते रहे कि कोई न कोई भला आदमी हमें रूकने की जगह दे ही देगा। हम गढ़ोली बनाल पहुंच गये। रात पड़ गई थी। किसी ने आगे थोलघार में रूकने की जगह बतायी थी पर बारिश पड़ने लगी। आगे जाना मुश्किल लगा। वहीं रूकने की जगह तलाशने लगे। वहां अष्टम रावत जी से मुलाकात हो गई। अष्टम रावत चाय चाउमिन का ढाबा चलाते हैं। उन्होंने बताया कि उनका घर भी होम स्टे है। हमें क्या चाहिए था रात रूकने की जगह सो हमने तुरंत उसके घर रूकने के लिए हामी भर दी। रात रूकने की जगह तो मिल ही गई थी बस बारिश रूकने का इंतजार करने लगे। पर बारिश कहां रूकने वाली थी। बारिश मंें ही उनके घर की तरफ चल पड़े। अष्टम रावत का घर दुकान से दो ढाई किलोमीटर पहले पड़ता है। घर पहुंचने पर हम निश्चिंत हो गये। अष्टम के घर पर उसकी पत्नी एक बच्चा और उसके माता पिता रहते थे। उसकी पत्नि ने हमारे लिये खाना बनाया। खाना खाकर हम सो गये।
सुबह हो गई थी। हम घर के बाहर का नजारा देख रहे थे। घर के नीचे बनाल गाढ़ बह रही थी। पहाड़ी में छोटी नदी को गाढ़ कहा जाता है। अष्टम के पिता सुबह खेती के काम में लग गये और उसकी पत्नि हमारे लिये खाना बनाने में लग गई। नाश्ता कर हम आगे की यात्रा के लिये तैयार हो गये। घर के आंगन से अष्टम की पत्नि ने हमें सामने की ओर उंचाई पर अपना गांव दिखाया और हमसे वहां जाने के लिये कहा। अष्टम रावत भी हमारे साथ अपने पैतृक गांव जाने के लिये तैयार हो गया।
अब हम अष्टम रावत के साथ उसके गांव घूमने के लिये चल दिये। उसके गांव का नाम कोटी बनाल था, जो लकड़ी पत्थर से बने अपने पुराने त्रिपुरी पंचपुरी भवनो के लिये विख्यात था। यह उसका गांव है और आज हम उसके गांव को देखने जा रहे हैं यह सोचकर ही हमारी खुशी का ठिकाना नही रहा। बिना किसी पूर्व योजना के परिस्थितिवश अचानक की जाने वाली ऐसी घुमक्कड़ी का अपना अलग ही मजा होता है जहां पहले से जाने का कोई निश्चित कार्यक्रम नही बनाया जाता। हम सोचते कुछ हैं और हो कुछ अलग ही जाता है।
आखिर हम कोटी बनाल पहुंच ही गये। उत्तरकाशी जिले में बड़कोट तहसील में बनाल एक पट्टी है जिसका गांव कोट है। यहां ऐसी ही दूसरी पट्टी ठकराल है जिसमें भी कोट गांव है जिसे कोटी ठकराल कहते हैं। यहां भी इसी शैली के पुराने मकान मिलते हैं। दरअसल में इस इलाके के दो थोकदार हुये जिन्हें राजशाही के जमाने में थोकदारी मिली हुई थी। एक थोकदार के हिस्से ठकराल पट्टी के 26 गांव आये दूसरे थोकदार कि हिस्से बनाल पट्टी के 26 गांव। दोनो थोकदारों ने रहने के लिये शानोशौकत से अपने अपने गावं में पंचपुरा चोखट का निर्माण करवाया। कहते हैं कि साठी थोक के थोकदार रणजोर रौत दो भाई थे। जिन्होंने यहां कोट बनाल में पांच मंजिला पंचपुरा भवन तैयार करवाया था। इनकी गाथाओं के गीत आज भी इस इलाके में गाये जाते हैं। ये नीचे से चकोर होते हैं और उपरी आखरी मंजिल नीचे की चकोर आकृति से अधिक चौड़ी तीन चार फुट बहार की तरफ हवा में निकली बालकनी होती हैं। यह बालकनी और इस पर बनी लकड़ी की रैलिंग इन भवनों की खूबसूरती में चार चांद लगा दे देती है।
इनकी छत पहाड़ी स्टाइल की ढालूदार पठाल से बनी हैं। उपरी मंजिल में बहार की तरफ निकली बालकनी में नहाने धोने का स्थान भी बना हुआ है जिसे पसुवा कहा जाता है। हर मंजिल पर बनी छोटी छोटी खिड़कियां बेहद खूबसूरत सी लगती हैं। हवा रोशनी का पूरा इंतजाम किया गया है। इस प्रकार के मकानों को यहां चोखट कहा जाता हैं। यह पंचपुरा भूकंप विरोधी भवन अपनी पूरी शान के साथ मजबूती से आज भी खड़ा है। लगभग चार पांच सौ साल पहले बने इस प्रकार के मकान इस बात का सबूत हैं कि यहां के पूर्वजों को हर प्रकार की सुविधा युक्त भूकंपविरोधी भवन निर्माण कला का पूर्ण ज्ञान हासिल था। इसके साथ ही आज भी गांव में तीन मंजिला, चार मंजिला चोखट देखने को मिल जाती हैं। तीन मंजिल वाले मकान को तिपुरा और चार मंजिल वाले भवन को चौपुरा कहते हैं। गांव में रथ देवता का मंदिर भी है जिसका अच्छा खासा आंगन है। सामुहिक ओखल्यार है जहां अनाज आदि कूटने के लिये सात ओखली बनी हुई हैं। गांव के प्रवेश द्वार के पास ही पानी का प्राकृतिक स्रोत है जिसे बड़ी खूबसूरती के साथ बनाया गया है जिसमें बैठने नहाने, कपड़े धोने आदि की पर्याप्त व्यवस्था है। कोटी बनाल में एक होमस्टे भी है। उत्तराखंड का यह एक खूबसूरत ऐतिहासिक गांव है। गांव का भ्रमण किया, लोगों से मिले, बातें की और फिर अष्टम रावत जी से विदा लेते हुये आगे की ओर बढ़ चले।
विजय भट्ट साथ में इन्द्रेश नौटियाल
(यात्रा जारी है)
नोट:- इस यात्रा को मैने अपने यूट्यूब चैनल पर भी अपलोड किया है। कृपया इस को देखकर अपने कमेंट भी जरूर दें। मेरे यूट्यूब चैनल का नाम है ghumakkad chalda देखिएगा ज़रूर।