November 21, 2024



साहित्य का अनुवाद जरुरी

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ब्यूरो 
 
राज्यपाल डाॅ. कृष्ण कांत पाल ने कहा है कि बच्चों में किताबें पढ़ने की आदत विकसित करने के लिए साहित्य को रोचक बनाते हुए कम कीमत पर इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी।

हिन्दी साहित्य को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए इसका अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया जाए। राज्यपाल, देहरादून में आयोजित तीन दिवसीय कला व साहित्य के अंतर्राष्ट्रीय उत्सव ‘‘वैली आॅफ वर्ड्स’’ के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे। राज्यपाल डाॅ. पाल ने कहा कि उत्तराखण्ड हमेशा सहित्यकारों व कला मर्मज्ञों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। इंद्रघनुष में सात रंग होते हैं। इनमें से हरा रंग सबसे बीच में होता है। यह संतुलन का प्रतीक होता है। यही कारण है कि हरियाली साहित्य सृजकों को प्रेरित करती है। यहां की प्राकृतिक दैवीय सुन्दरता ही थी, जो महात्मा गांधी, गुरूदेव रवींद्र नाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद, श्री अरविंदो को उत्तराखण्ड में खींच लाई। देवभूमि उत्तराखण्ड महान हिंदी कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्म स्थली है। गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘‘गीतांजलि’’ की रचना कुमायूं की पहाड़ियों में ही शुरू की थी।
राज्यपाल ने कहा कि युवा पीढ़ी को साहित्य से जोड़ना है तो इसे रोचक बनाना होगा। साथ ही इसकी कम कीमत पर उपलब्धता भी होनी चाहिए। बच्चों में किताबों के प्रति लगाव व पढ़ने की आदत विकसित करने के लिए विशेष प्रयास करने होंगे। आज इंटरनेट पर बहुत सी पुस्तकें पीडीएफ व अन्य फारमेट में उपलब्ध हैं परंतु जो प्रामाणिकता, ज्ञान, दर्शन, विचार, तर्क, सृजनात्मकता किताबों में मिल सकती है वो इंटरनेट पर सम्भव नहीं है। 
 
राज्यपाल ने कहा कि हिंदी लेखकों व साहित्यकारों को वैश्विक पहचान मिल सके, इसके लिए जरूरी है कि हिंदी साहित्य व पुस्तकों का अनुवाद अंग्रेजी में किया जाए। रवींद्र नाथ टैगोर ने ‘गीतांजलि’ की रचना मूल रूप से बंगाली में की थी। जब वे जहाज से इंग्लैंड जा रहे थे तो उन्होंने इसके कुछ भाग का अनुवाद अंग्रेजी में किया। जिसे कि उनके मित्र जी.एच. हार्डि ने वहां प्रकाशित कराया। अगले ही वर्ष टैगोर को नोबेल पुरस्कार मिल गया। यदि मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं का अंगे्रजी अनुवाद होता तो उस समय पूरी दुनिया उनके साहित्य से परिचित हो पाती। राज्यपाल ने कहा कि आज हमारी जिंदगी आॅटोमैटिक व डिजीटाईज्ड हो गई है। किसी के पास जीवन के आनंददायक पहलुओं के बारे में सोचने का वक्त नहीं है। यहां तक की कविताओं व फिल्मों में भी कृत्रिमता – सी आ रही है। गालिब ने आज से 150 वर्ष पूर्व लिखा, ‘‘दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन’’।
राज्यपाल ने कहा कि भारत में वर्तमान मे संकर्मण दौर चल रहा है। यहां के सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक जीवन में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। जैस – जैसे समाज भौतिकवादी व मशीनी होता जा रहा है, कला व साहित्य की भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है। ‘‘वैली आॅफ वर्ड्स’ कार्यक्रम की सराहना करते हुए राज्यपाल ने आशा व्यक्त की कि इस तरह के आयोजनों से लेखन व पाठन के प्रति लोगों विशेष तौर पर युवाओं की रूचि फिर से बढ़ने लगेगी। राज्यपाल ने डाक – टिकिट संग्रह दीर्घा का भी औपचारिक रूप से उद्घाटन किया। डाक-टिकिट दीर्घा में राज्यपाल द्वारा संग्रहित दुर्लभ डाक टिकिट भी प्रदर्शित किए गए हैं। इस अवसर पर मेनेजमेंट गुरू श्री गुरूचरण दास, मुख्य सचिव श्री उत्पल कुमार, एफ. आर. आई. की निदेशक डाॅ. सविता, नेशनल बुक ट्रस्ट के चेयरपर्सन डाॅ. बलदेव भाई, श्री रोबिन गुप्ता, श्री नवीन चोपड़ा सहित कला व साहित्य से जुड़ी अनेक जानी मानी हस्तियां मौजूद थीं।