यात्रा का फैलाव जरुरी
जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
चार धाम यात्रा को लेकर इस बार सरकार बहु प्रचारित कर रही है कि इस बार यात्रा का पुराना रिकॉर्ड टूट सकता है. इस लेख के लिखने तक 16 लाख से अधिक स्रधालुओं ने ऑनलाइन पंजीकरण कर लिया था. स्वास्थ्य, पेयजल, शौचालय, आवास, पार्किंग, बिजली, यातायात सुविधायें, वाहनों की ब्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती सरकार के सामने है. जिस तरह से अभी तक तैयारियां दिख रही हैं अगर वह धरातल पर उतर जाती हैं तो यह सरकार के लिए राहत की बात होगी और यदि यह फार्मूला सफल हो जाता है, तो यह भविष्य के लिए एक नया रास्ता भी बनाएगा. अभी सरकार का फोकस केवल चार धाम यात्रा पर है. राज्य बने 22 हो चुके हैं और अभी तक चार धाम की कोई परिपक्व ठोस योजना तैयार नहीं कर पा रहे है. हर साल नियम बनते है फिर टूट जाते है और अचानक धामों में क्षमता से अधिक यात्री पहुँच जाते हैं.
कुछ हफ़्तों पहले जब सरकार ने घोषणा की कि हर धाम में प्रतिदिन कितने यात्री जायेंगे, उतनों को ही अनुमति मिलेगी. यह प्रबंधन की दृष्टी से एक अच्छा कदम है. इस पर होटल एसोसिएशन ने हड़ताल कर दी कि यात्रियों की सीमा तय होने से उनके रोजगार पर असर पड़ेगा और सरकार ने फिर यहाँ ढुलमुल रवेया अपना लिया. सरकार व होटल एसोसिएशन वालों को यह पता होगा कि उनके पास कितने यात्रियों के रहने खाने की ब्यवस्था है. और अब ऑनलाइन बुकिंग से भी काफी अंदाज लग जाता है. ऐसी स्थिति में सरकार को अपने उस फोर्मुले पर टिका रहना चाहिये कि उतने ही यात्रियों को अनुमति प्रदान करे जितनी धामों में ब्यवस्था है.
मैंने पूर्व में इसी कॉलम में लिखा था कि सड़क चौड़ीकरण से यात्री एक ही दिन में धामों में पहुंचना चाहता है. इससे धामों में अनावश्यक दबाब बन जाता है. इसलिए मध्य मार्ग के शहरों कस्बों जहाँ यात्रियों के ठहरने की सुविधाएं हैं, उनको वहां अनिवार्य रूप से रुकने का निवेदन व नियम बनाये जाएँ. जैसा की पूर्व के दसकों में किया जाता रहा है. यात्री इस दौरान नजदीकी पर्यटन स्थलों का भ्रमण कर सके, इसका पैकेज यात्रिओं के सामने रखा जाये तो वे सहर्ष इसको स्वीकार कर सकते हैं. इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा व राज्य की आर्थिकी को बड़ा फायदा मिलेगा. पुराने अनुभव यह भी बताते हैं कि कई यात्री बसों ट्रकों में भोजन बनाने की सामग्री लेकर चलते है व जहाँ रास्ते में पानी मिले वहीँ सड़क किनारे भोजन बनाते है. इस परंपरा को भी तोड़ना होगा. उत्तराखंड में चाहे कोई यात्री हो या पर्यटक वह यहाँ सिर्फ झूठे पत्तल, रैपर, प्लास्टिक बोतले, खुले में शौच व गन्दगी छोड़ने न आये, बल्कि वह उत्तराखंड का भोजन खाये या अपनी मनपसंद का जो भी यहाँ के होटल व ढाबों में उपलब्ध है. यहाँ के होटल, आवासों, होमस्टे में रहकर कुछ आर्थिक योगदान दे.
बद्रीनाथ व केदारनाथ धामों के रास्तों में पड़ने वाले इन पड़ावों में देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, तिलवाडा, अगस्तमुनी, गुप्तकाशी, उखीमठ, कर्णप्रयाग, पीपलकोटी, जोशीमठ अनिवार्य होल्टिंग प्लेस बनायें जायें. इन सभी स्थलों के आसपास यात्रिओं को घुमाया जा सकता है. इस हेतु लोकल युवाओं को गाइड बनाया जा सकता है. इसी प्रकार यमुनोत्री मार्ग में लाखामंडल, विकासनगर, नैनबाग, नौगांव, बड़कोट व गंगोत्री मार्ग में टिहरी, चंबा, चिन्यालीसौड़, उत्तरकाशी, नैताला, हरसिल आदि अनिवार्य होल्टिंग प्लेस बन सकते है. इस हेतु सरकार को इसे उत्तराखंड की पर्यटन नीति का अनिवार्य हिस्सा बनाना होगा, जिससे किसी को भी कोई आपत्ति न हो. कुल मिलाकर चारधाम यात्रा को विस्तारित किये जाने की जरुरत है. हर शहर का अपना स्थानीय भ्रमण पैकेज, यात्री सुविधाएं, धार्मिक व पर्यटन स्थलों की जानकारी आदि जरुरी सूचनाओं को पैकेज से जोड़ा जाये तो यह उत्तराखंड के पर्यटन की बुनियाद को मजबूत करेगा.
इस हेतु सरकार को अपनी पर्यटन ब्यवस्थाओं का एकीकृत ऑटोमेसन करना होगा. जिसमें एक क्लिक पर हर तरह की जानकारी उपलब्ध हो, बुकिंग व परचेजिंग भी की जा सके. यह ऑटोमेसन लगभग अमेज़न की तरह काम करे. ऊपर उल्लेखित शहरों में कहीं कहीं हेलिपैड की ब्यवस्था है, जहाँ नहीं हैं, वहां भी हैलीपैड बनायें जायें. इसी प्रकार इन शहरों में ज्यादा क्षमता के सार्वजनिक शौचालयों की जरुरत है. इस बार हेली सेवा का भी बूम रहने वाला है. जिस तरह की एडवांस बुकिंग हो चुकी है, उस लिहाज से अतिरिक्त हैलीपैड की भी जरुरत रहेगी. एक और महत्वपूर्ण बात ये है कि चारों धाम उच्च शिखरिय इलाकों में अवस्थित है. जहाँ प्राणवायु यानि ओक्सिजन की कमी रहती है. इसका कभी भी आकलन सामने नहीं आया है कि, किस धाम में कितने यात्रियों के लिए कितनी ओक्सिजन की आवश्यकता होगी. जिससे की वहां उतने ही यात्रियों के जाने की अनुमति दी जा सके.
अभी तक यात्रियों की आवास व भोजन ब्यवस्था को आधार बनाकर ही सरकार योजना बना रही है. इसमें ओक्सिजन लेबल व अन्य बैज्ञानिक सूचनाओं को भी शामिल किया जाना चाहिये. निष्कर्षतः देवस्थानम बोर्ड को वापस लेना भाजपा सरकार की सबसे बड़ी भूल है. यह चार धाम की नीति नियम, ढांचागत विकास, आर्थिक उत्थान, व अन्य विकास को सदा प्रभावित करेगा. यही वह कारण है कि हर साल सरकारों को यात्रा के मुद्दों पर अनावश्यक रूप से जूझना पड़ रहा है और आगे भी यही हाल होंगे. यह वही प्रक्रिया है कि हर साल टेंट लगेंगे और हर साल टेंट उजड़ेंगे. चारधाम यात्रा का यह सर्कश कब तक जारी रहेगा कुछ कहा नहीं जा सकता. कुछ मुट्ठीभर लोगों के स्वार्थों की प्रतिपूर्ति का खामियाजा पूरे पर्यटन ब्यवसाय व राज्य के राजस्व को भुगतना पड़ रहा है.
सीमान्त पर्यटन
चारधाम के साथ-साथ सरकार का फोकस अब सीमान्त पर्यटन स्थलों की ओर भी है. वाइब्रेंट विलेज की कल्पना को लेकर सरकार उन उजड़े गावों को फिर बसाना चाहती है, जहाँ नाम मात्र के लोग ही गावों में रह गए है. अगर यहाँ होमस्टे विकसित हो जाएँ तो दूरस्त सीमाओं के गावों मैं भी पर्यटन गतिविधियाँ व रोजगार बढ़ सकेगा. अभी हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने केंद्र को ऐसे सीमान्त गावों का प्रस्ताव भेजा था कि, इन इलाकों के भ्रमण के दौरान कुछ ऐसे नियम आड़े आ रहे है जिससे पर्यटक आने से कतरा रहे है. खासकर भ्रमण की अनुमति प्राप्त करने के लिए पर्यटकों को बहुत जूझना पड़ता है. पर्यटकों को सीमान्त पर्यटन स्थलों पर ही जाने व रहने की अनुमति मिले. सरकार के इस प्रस्ताव को केंद्र ने फिर वापस भेज दिया है व कहा है कि, उत्तराखंड सरकार ऐसे सभी सीमान्त पर्यटन स्थलों का एकीकृत प्रस्ताव भेजे. पर्यटक व प्रकृति प्रेमी ऐसे सीमान्त इलाकों के भ्रमण के लिए आतुर है, लेकिन अनुमति की नौकरशाही व प्रक्रिया को आसान बनाना जरुरी है.