January 18, 2025



इतिहास: खत कोरु

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भारत चौहान


इतिहास: खत कोरु कब और कैसे हुआ चालदा महाराज के मंदिर का निर्माण, जौनसार बावर में 358 गांव और 39 खते हैंl प्रत्येक गांव का अपना निश्चित इतिहास हैl ठीक इसी प्रकार प्रत्येक खत का भी अपना इतिहास है इसी श्रृंखला में खत कोरु का भी अपना गौरवशाली इतिहास है निचले जौनसार में खत कोरु चालदा महाराज की जेष्ठ खत होने के नाते इस खत का और भी महत्व बढ़ जाता है। इसलिए खत कोरु के कचटा गांव में सर्वप्रथम चालदा महाराज का मंदिर कब निर्मित हुआ और उसके बाद मंदिरों के स्वरूप में कैसे बदलाव होते गए इस संबंध में कुछ जानकारी साझा करने का प्रयास करेंगे।

विभिन्न जन श्रुति, लोकगीतों एवं ऐतिहासिकता के आधार पर 13 वी से 17 वीं सदी के मध्य चालदा महाराज ने प्रकट होकर बैराट गढ़ किले से सामुशाह के खात्मे के बाद चालदा महाराज कचटा में विराजित हुए। प्रारंभ में महाराज का मंदिर किस स्थान पर तथा मंदिर का स्वरूप क्या था इसके कोई चित्र व जानकारी प्राप्त नहीं हुई परंतु लगभग 1990 तक मंदिर का प्राचीन जो स्वरूप था यह अधिकांश लोगों ने देखा है और उसका एक हस्त निर्मित चित्र गागरोऊ निवासी श्याम सिंह चौहान ने बनाया है। महासू महाराज के कचटा में प्रकट होने के पश्चात कितने समय तक यहां रहे इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता, परंतु 109 वर्ष के कालखंड में चालदा महाराज वर्ष 1943 मे कचटा से रंगीयों मे एक रात बागड़ी के पश्चात कोटा तापलाड गए थे उसके बाद अन्य स्थानों से होते हुए 1957 मे पुणः महाराज की जिसोऊ से वापसी कचटा हुई।


मध्यकालीन मंदिर कचटा

30 वर्षों तक कचटा मंदिर में ही विराजित रहे। इसके पश्चात पुनः सन 1987 में चालदा महाराज ने कचटा से थैना के लिए अंतिम बार प्रवास यात्रा के लिए प्रस्थान किया और तब से अब महाराज निचले जौनसार के विभिन्न खातों में प्रवास यात्रा पर है। सन 1987 में जब चालदा महाराज का अंतिम बार कचटा से थैना के लिए प्रस्थान हुआ उस समय मंदिर का प्राचीन स्वरूप था। महासू मंदिर हनोल, शिव मन्दिर लाखामंडल आदि स्थानों के अलावा प्राचीन समय में महाराज के अधिकांश मंदिर निजी मकानों के तरह ही दिखाई देते थे चालदा महाराज का कचटा स्थित मंदिर भी एक निजी मकान की तरह ही दूर से दिखता था।


मंदिर में परिक्रमा के लिए चारों ओर गैलरी बनी हुई थी 1991 में पहली बार इस मंदिर के प्राचीन स्वरूप को आधुनिक रूप में परिवर्तित करने के लिए ₹ 40 हजार रुपये मे मरम्मत का कार्य प्रारंभ किया गया। जिस कार्य की जवाबदेही अतर सिंह टामटा ग्राम मुन्थान को दी गई थी। उन्होंने दो वर्ष के कालखंड में मंदिर की मरम्मत कर तैयार कर दिया था।

कोरू खतवासियों को उम्मीद थी कि मंदिर की मरम्मत करने के पश्चात थैना से चालदा देवता वापस अपने जेष्ठी खत कोरु में आएंगे परंतु ऐसा नहीं हो सका। 12 खतों की कई बैठकों के दौर चले परंतु चालदा महाराज निचले जौनसार में अपनी प्रवास यात्रा पर निकल पड़े और अब लगभग 40 वर्ष बाद पुनः अपने थान कचटा पहुंचेंगे। संपूर्ण जौनसार बावर में मंदिरों के नव निर्माण की आध्यात्मिक क्रांति प्रारंभ हुई लखवाड, लखस्यार, थैना, बिसोई, बुलहाड, टगरी, कोटा, खाटवा आदि स्थानों पर मंदिरों के नव निर्माण प्रारंभ हुए।


पूर्व में मंदिर समिति का संचालन देवता के कारिंदे (वजीर भण्डारी, मईथा एवं खत के स्याणा, कचटा गांव के स्याणा जी करते थे। परंतु 1999 मे विधिवत मंदिर समिति का गठन किया गया जिसके प्रथम अध्यक्ष बाढौ निवासी सीताराम चौहान को बनाया गया, जिसमें उपाध्यक्ष श्याम सिंह राठौर गडोल, सचिव पूरन सिंह खन्ना खुशियोऊ तथा कोषाध्यक्ष सूरत सिंह डाबरा को नियुक्त किया गया और इस समिति ने लंबे समय तक कार्य किया।

समस्त खत वासियों एवं मंदिर समिति ने पुनः निर्णय लिया है कि अब कचटा में चालदा महाराज का भव्य मंदिर निर्मित किया जाए। सन 1991 में हुई मरम्मत के ठीक 9 वर्ष के पश्चात प्राचीन मंदिर पूर्णतह ध्वस्त किया गया और 12 अक्टूबर 2000 को नए मंदिर का प्रातः 11:00 बजे विधिवत पूजा अर्चना के पश्चात शिलान्यास हुआ।




2 फरवरी 2002 को मंदिर का कार्य प्रारंभ हुआ जिसमें खत कोरु की 6 ग्राम पंचायतो के प्रधानो सहित समस्त खतवासियों ने आर्थिक सहयोग देकर 8 लाख 75 हजार 600 रुपये की लागत लगी। जिसमें गागरोऊ निवासी (पूर्व सैनिक) हाकम सिंह चौहान ने दो वर्ष तक श्रमदान देकर मंदिर निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, 12 नवंबर 2004 को नया मंदिर बनाकर तैयार हुआ। फिर खत वासियों को आस जगी कि अब नए मंदिर में चालदा महाराज पुणः वापस आकर विराजित होंगे परंतु 12 खतों की रणनीति पहले ही तय हो चुकी थी और चालदा महाराज का प्रवास विभिन्न खतों में प्रारंभ हो चुका था इसलिए ऐसा नहीं हो पाया।

विभिन्न खतों में मंदिरों के नव निर्माण कहीं निर्माणाधीन थे तो कहीं मंदिर बन कर तैयार हो चुके थे । खत कोरु की मंदिर समिति के निश्चित कार्यकाल पर चुनाव होते गए और कार्यकारिणी का कार्यकाल बढ़ता गया 20 वर्ष पश्चात मंदिर समिति ने अध्यक्ष पुणः सीताराम चौहान ग्राम बाढौ को निर्वाचित कर नवीन कार्यकारिणी का गठन किया गया।

इसी श्रृंखला में खत वासियों ने पुनः 2004 में तैयार हुए मंदिर को 15 वर्ष पश्चात 4 सितंबर 2019 में पूर्णता ध्वस्त कर दिया और पुनः 10 मार्च 2020 को मंदिर निर्माण की आधारशिला रखी जिसके निर्माण की अनुमानित लागत एक करोड़ से अधिक होगी। अब मंदिर का कार्य गतिमान है जो चालदा महाराज के कचटा वापस आने से पूर्व वर्ष 2024 तक बनकर तैयार हो जाएगा।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.