2023 में उत्तराखंड का प्रवेश
वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली
लचर प्रशासकीय विलम्बों व संवेदनहीनता, नये नये जन आक्रोशों, अनधुले दागों , शीर्ष स्तर से कच्ची पक्की सुशासन की चंद विरोधाभासी सीखें, निरंतर मिलते चरस, स्मैक्स, अवैद्य शराब के जखीरों, राज्य के लगभग एक करोड़ पहुंचते कर्जां के कैरी ओवर के साथ उत्तराखंड का 2023 में प्रवेश हो रहा है। बस्तियां वन्य जीवों से कितनी असुरक्षित हैं यह 29 दिसम्बर को देहरादून में परिसर में प्रवेश और एफ आर आई को बंद कर एक बाघ परिवार भी दिखा गया। आम जन को तो बाघ और बाघ जैसी समस्यायें निरंतर झपट्टा मारती ही रहीं हैं। साथ साथ हो रहा है।
आम जन के संदर्भ के तो कई हजार पोलिंग बूथ पहाड़ों मे बंद हुये हैं और हजार के करीब सरकारी स्कूल भी बंदी या मर्जर के कगार पर हैं, खस्ता हाल सड़कों पर वाहन दुर्घटनाओं से मौतें, जंगली जानवरों से खेतों और जीवन की क्षतियां हो रहीं हैं। राज्य के कुल खर्चे में से जनता के विकास कामों के लिये तीस प्रतिशत भी दे देने को सौगातों में वर्गीकृत कर दिया जाता है। इसमें सेभी बहुत कुछ आउट सोर्सिंग का भ्रस्टाचार लील जाता है। सौगातों में सरकारी सेवाओं में शराब पिये डाक्टर, अध्यापक, पुलिस कर्मी की दबंगी भी रहती है। हां मुख्यों के नये नये छवि सुधार कार्यक्रमों में कोई कम नहीं रहती है। एक साइकिल सवार के साथ साथ दस दस पैदली रहते हैं। फिर एक सी तस्वीरों एक से बयानों से कार्पेट बौम्बिग सभी साइटों पर लेसरी मुग्धता के साथ जब तक कोई अगला आयोजन न हो होती रहती है।
जमीन पर यह सब स्मार्ट सिटियों के ग्ढडे छोड़ भले ही जायें पर ये जन धन से किये गये खर्चिले प्रयास न दिल पर असर छोड़ते हैं न ही स्मृतियों में। कारण यह है कि दिन भर में इनकी एक ही मंहगाई से जूझते आम जन के लिये इन्हे देखने के लिये सोशल मीडिया में जाने की फुरसत ही कहां है। उसे लम्बे लम्बे झाड़ूओं व दास्तने पहने लोगों की सफाई करती तस्वीरों या मंइगे ट्रैक सूटों को पहने दौड़ते व चाय की सुस्की लेने वालों से क्या। वह तो अपने आस पास जाड़े में ठिठुरते स्कूल जाते बच्चों व असुरक्षा में काम करते सफाई कर्मियों को देखता है। उसको हेलीकोप्टरी सेवाओं के विस्तार से क्या वो तो रोज खतरनाक सड़कों पर ओवरलोडेड वाहनों पर सफर कर जान जोखिम में रख आता जाता है।
उसको बाबूओं को दी गई सीखों से क्या कि अपने पास पहुंची चिठिठयों में पहले आत्मा को पकड़ें तब नोटिंग करें। उन आम जन की बेचारगीयों का क्या जिनको काम करवाने के लिये ऐसा कुछ भी करना पड़े जिसके लिये उसकी आत्मा गवाही न देती हो। या उन माननीयों को पदों में बर्दाश्त करना हो जो खुद अपनी ही स्वीकारोक्तियों में युवाओं के रोजगार के हक मार चुके हों। ऐसे में आत्मा तो उसकी ढूंढी जानी चाहिये जिनको ग्लानिबोध ही न हो।
आम जन के ऐसे मुद्दे जिस विधान सभा में उठने थे उस विधान सभा में तो 2022 के अंतिम सत्र में लगभग हफ्ते का बैठकों को दो दिन में ही समेट दिया गया था। विपक्ष इसे के राज्य के विभिन्न काण्डों के अपराधियों पर बहस से कतराने की रणनीति मानता है। ये सवाल तो थे ही कि 8 अक्टूबर 2018 के संशोधनों को खत्म करने के विरोध में उठे जनआक्रोश के बाद गठित सुभाष कुमार भूकानून समिति की रिपोर्ट मिलने पर भी विधान सभा पटल में क्यों नहीं रखी गई थी। अंकिता काण्ड में चर्चा में आया वी आई पी व्यक्ति कौन था जिसको विशेष सेवा देने के लिये अंकिता पर दबाव डाला जा रहा था। करोड़ों रूपये के यूकेएसएसएससी पेपर लीक घेटाले का राजनैतिक कनेक्शन क्या था।
जो भी हो अध्यक्ष विधान सभा की प्रतिक्रिया थी कि जब सब सूचिबध्द काम निपट गये हों तो सत्र को लम्बा खिंचना जनता के धन का अपव्यय ही होता। ठीक, किन्तु जनता के पैसे की बेकद्री को रोकने के लिये मितव्ययी विधान सभा में ही एक शुरूआत और भी हो सकती है। खास कर निश्चित सत्रावधि में सब काम निपटाने के बाद भी समय बच जाने पर। ऐसे किफायत से बचे अवसरों में अवशेष समय में उन माननीय मंत्रीयों या विधायकों पर जो जनता के धन पर खेती,प र्यटन, आपदा प्रबंधन, डेयरी पशुपालन या शैक्ष्णिक विषयों पर ज्ञानार्जन के लिये सत्रों के बीच देश विदेश में घूम आये हों विधान सभा में यह प्रस्तुतीकरण करने का निर्देश हो कि वे आधिकारिक रूप से सदन को अपने सीखों, नोट्स का विवरण देते हुये ये भी बतायें कि वे अपनी देख रेख में कैसे व कब तक इनसे जनता को फायदा पहुंचायेंगे।
वर्तमान विदुषी अध्यक्ष से इसकी आपेक्षा तो की ही जा सकती है। निस्संदेह विधान सभा अधिकारियों से उनको नियमों की सीमायें भी इताई जायेंगी। परन्तु दिसम्बर 2022 के चिंतन शिविर का अधिकारियों के व मंत्रियों के साझा बैठकों में सुशासन के हित में एक गुरूज्ञान यह भी दिया गया था कि अधिकारियों को यदि काम करना हो तो नियमों को देख यह न कहें कि यह नहीं हो सकता है बल्कि ऐसा देखें कि नियमों में क्या कहीं यह लिखा है कि ऐसा काम नहीं हो सकता है। हांलांकि कुछ दिनों बाद का सचिवालय कर्मियों के बीच का विरोधाभासी गुरूज्ञान था कि फाइलों पर जब भी नोटिंग करें तो साथ में नियमों का भी हवाला दें। इसी क्रम में मसूरी चिंतन के पूरक के तौर पर साथ साथ ही देहरादून विधान सभा में भी सर्वदलीय चिंतन की योजना बन जाती तो अच्छा रहता। मालूम तो चलता कि माननीयों के पास राज्य की समस्याओं व इनके समाधान में स्टील फ्रेम की कामयाबियों व नाकामियों का लेखा जोखा क्या है।
निरंतर बनी एक चिंता तो रहती ही है कि अफसर उनकी नहीं सुनते हैं। कई बार प्रोटोकौलों के अंतर्गत उनके विधान सभा क्षेत्रों के आयेजनों में नहीं बुलाते हैं। परन्तु हालिया एक चिंता कैबिनेट मंत्री सतपाल महराज व उनके एक अधिकारी को लेकर है।उनका कहना है कि बिना उनकी सहमति के एक विदास्पद आला इंज्जीनियर को उच्चाधिकारी बना दिया गया है । हालांकि इस कथन से एक बड़ा वर्ग असहमत भी है। असहजता से बचने के लिये ऐसे मुद्दे पता नहीं साझा बैठकों में उठे भी होंगे या नहीं। अधि कारियों के संदर्भ में असहज व चिंतित होने के लिये यह मुद्दा भी छोटा नहीं है कि अंदेशा है कि दिल्ली में एक ख्यात होटल कारोबारी की आत्महत्या में किन्ही उतराखंड के आइ पी एस या आइ ए एस अधिकारी की भी संलिप्तता है जिसकी उद्यमी के साथ करोड़ो रूपये की साझेदारी थी। 2023 में अपराधी संदिग्ध अधिकारीयों का पर्दाफाश तो होना ही चाहिये। काले धन की करोड़ों की पार्टनरशीप करने के लिये धन भी तो राज्य से ही चूसा गया होगा। सात सालों से लोकायुक्त नियुक्ति पर उदासीनता न होती तो ऐसे मामलों में न्यायालयी निगरानी में आगे बढ़ना आसान होता।
अंतिम गांव प्रथम गांव का यथार्थ भी सामने आ रहा है। पिथौरागढ़ के अंतिम गांवों में नेपाली क्षेत्र से होती पत्थरबाजी इतनी बेरोकटोक हो गई है कि स्थानीय जनता असंतोष और आक्रोश में सीमा आर पार के जोड़ते झूला पुल को बंद करने के लिये भी लामबध्द हो जाती है। 2023 आते आते भी जन आक्रोश व परेशानियां इस संदर्भ में बनी हुई हैं। सीमांत के अंतिम बड़े नगर जोशीमठ में भी 2022 आखिर में शहर के भारी धंसाव रोकने में सरकारी शिथिलता पर भी जनआक्रोश बढ़ता जा रहा है।ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेलवे लाइन निर्माण व विभिन्न जल विद्युत्तीय परियोजनाओं व अवैज्ञानिक नदी खननों से भी भूधंसाव के क्षेत्र बढ़े हैं। मकान, खेतों व सड़कों पर भी दरारें आई हैं। 2023 में ऐसी समस्याओं व इनसे उपजे जन विरोधों का भी बढ़ना तय है। देहरादून जौलीग्रांट हवाई अड्डे के विस्तारीकरण के खिलाफ जनआक्रोश 2023 की दहलीज पर भी जारी है।
इस विस्तारीकरण से टिहरी बांध परियोजना से प्रभावित कई परिवार तीसरी बार विस्थापन के दर्द व त्रासदी से गुजरेंगे। 2023 तक पहुंचते पहुंचते गैरसैण के नागरिक भी इसलिये आंदोलित हैं कि नये कार्यालयों नई नियुक्तियों के बजाये वहां के लिये बने बने कार्यालयों व धोषित नियुक्त अधिकारियों तक को वापस बुलाया जा रहा है। राजधानी का अर्थ केवल विधान सभा सत्र चलाना नहीं होता है। यदि ऐसा ही राजधानी होने का संकेतक होता तो इस बार कुल दो दिन में सत्र क्यों खत्म हुआ।
2022 के अंत में एक बार फिर शक्तिमान अश्व मौत के मामला उभर नैनीताल उच्च न्यायालय में बहस में आया हुआ है। कांग्रेस की सरकार के विरूध्द बीजेपी के प्रदर्शन में 14 मार्च को2016 घायल शक्तिमान का पैर भी काटा गया था। 20 अप्रैल को उसकी मौत हुई थी। 14 वर्षीय घोड़ा। राजनीति भी बहुत हुई थी। आरोप तत्कालिन भजपा विधायक और अब के मंत्री गणेश जोशी पर भी लगे थे। इस पर विधान सभा में तकरार भी हुई थी। कई पुलिस वालों के बयान भी हुये थे। पुलिस अधिकारी गमगीन व भावुक भी हुये थे। देश विदेश के मीडिया मे यह मामला चर्चित हुआ था। शक्तिमान के पांव कई जगह टूट गया था। तत्कालिन केन्द्रिय मंत्री मेनका गांधी ने तो यहो तक कहा था कि श्क्तिक्तमान एक डयूटी करता अधिकारी था जिस किसी ने भी ऐसा किया उसको सजा होनी चाहिए। गणेश जोशी पर भी केस भी दर्ज हुआ था। इसे बाद में भाजपा सरकार आने पर खत्म कर दिया गया था। 2023 में भी यह प्रकरण सुर्खियों में रहेगा क्योंकि इसमें निचली अदालतों से गणेश जोशी को दोषमुक्त किये लाने को चुनौती दी गई है।
नकली दवा उद्योग उत्तराखंड में बहुत जड़ें जमा चुका है। इस उद्योग में संलिप्त अपराधियें का देश के अन्य राज्यों से यहां आना जाना बढ़ रहा है। साल जाते जाते इसी संदर्भ में राज्य पर एक बदनुमा दाग और लगा। 26 दिसम्बर को पंजाब पुलिस यह पक्का कर कि उसके राज्य में कई प्रतिबंधित दवायें उत्तराखंड से पहुंच रहीं हैं, देहरादून की एक अवैद्य दवा निर्माता कारखाने पर छापा मार चार लाख पांच हजार नशे की व लती बनाने वाली गोलिया भी पाई जिन्हे पंजाब भेजा जाना था। पंजाब पुलिस कारखाने के मालिक को अपने साथ अमृतसर ले जाने के बाद ही उत्तराखंड प्रशासन ने कारखानें को सील कर जांच शुरू की थी। कोरोना संक्रमण के चरम भी कोरोना किटों व दवाइयों को लेकर ऐसा हुआ था। सारे संदर्भों में एक चेतावनी तो है ही। रिसोर्ट कल्चर ने जैसे दु़खद अंकिता काण्ड पनपाया यदि समय रहते न चेते तो ऐसा ही अचानक की क्षोभनीय स्थितियां यहां फिल्म निर्माण व कलाकारों को लेकर आ सकती है। अण्डर वर्ल्ड के फिल्म जगत से सबंध कई कई परतों में कई कई बार खुलते रहे हैं। चरस गांजे ड्रग्स की कुल जमा करोड़ी तस्करीयां जो अभी ही बेकाबू हैं तब और बेकाबू हो जायेंगी।
ये सवाल 2023 में भी शांत न होंगे कि हेलेंग काण्ड में महिलाओं से दुर्व्यवहार करने वाले आरोपियों को सजा कब दी जायेगी। महिलाओं व बच्चे की प्रताड़नाओं व मानहानि का मुआवजा उन्हे कब मिलेगा। राज्य बनने के बाद से ही विधान सभा बैकडोर भर्तियों में संलिप्त मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों व विधान सभा अध्यक्षों पर कानूनी कार्यवाही कब होगी। इन गलत नियुक्तियों के लिये कितना लेन देन हुआ यह पाप की कमाई कहां कहां तक पहुंची यह कब सार्वजनिक होगा। मीड डे मिल्स के लिये बच्चों की पंक्तियां कब तक अलग अलग बनेंगीं।
लेखक सामाजिक कार्यकर्ता व पर्यावरण वैज्ञानिक हैं