दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के जनक प्रो. बी. के. जोशी
डॉ. अरुण कुकसाल
आने वाला समाज अपने आचरण, कार्यों और उपलब्धियों से और बेहतर हो, यह इच्छा सामान्यतया हर इंसान में रहती है। परन्तु, इस भावना को अमली-जामा पहनाने की जिम्मेदारी का वहन करने का दृड-संकल्प समाज में कुछ ही लोग ले पाते हैं। ऐसे लोग समाज में ‘कमियां खनकती हैं, काम खामोश रहता है’ की रीति-नीति के संवाहक होते हैं। तभी तो, आत्म-प्रचार की मुग्धता के शोर से परे वे अपने जीवनीय लक्ष्यों की ओर हर समय चुपचाप समर्पित भाव से सक्रिय रहते हैं। उनकी खामोशी, उस समय भी विराजमान रहती है, जब वे अपने जीवन के एक बड़े सपने को सार्वजनिक रूप में साकार होते देखते हैं। क्योंकि, उस आनंददाई क्षणों की अनुभूति की अभिव्यक्ति के लिए उनके गिने-चुने शब्द भी अपनी सिमटती सीमाओं को समझते हुए स्वतः ही मौन हो जाते हैं।
प्रख्यात समाज विज्ञानी प्रो. बी. के. जोशी और सोशियल एक्टिविस्ट श्रीमती वीणा जोशी जी को देहरादून के लैंसडोन चौक के निकट ‘दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र’ के नव-निर्मित शानदार परिसर में आयोजित 2 दिसम्बर, 2022 के हवन कार्यक्रम में उपस्थित होकर, ऐसे ही परम आनंद की अनुभूति हुई होगी। हो भी क्यों नहीं, सोलह साल पहले उनके मन-मस्तिष्क में विचारों का जो अंकुर प्रस्फुटित हुआ था वह अब पल्लवित हो कर नई सज-धज के साथ, उनके सामने ही सामाजिक दायित्वशीलता को निभाने का शुभारंभ करने जो लगा है।
‘दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, देहरादून’ की संकल्पना और उसको मूर्त रूप देने का श्रेय समाज विज्ञानी प्रो. बी. के. जोशी जी को है। प्रो. बी. के. जोशी ‘दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, देहरादून’ के संस्थापक सदस्य और निदेशक रहे हैं। पूर्व में वे कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति और गिरि विकास अध्ययन संस्थान, लखनऊ के निदेशक भी रहे हैं। समाज विज्ञानी के रूप में देश-दुनिया में ख्यातिप्राप्त प्रो. जोशी University Of Hawaii (USA) से राजनीतिक विज्ञान में पीएच. डी हैं।
प्रो. बी. के. जोशी ने यूनिसेफ और दक्षिण-मध्य एशिया के विभिन्न देशों में एक प्रखर शैक्षिक परामर्शदाता की पहचान के साथ सराहनीय कार्य किया है। विभिन्न समयों में केन्द्र सरकार, उत्तर-प्रदेश सरकार और उत्तराखण्ड सरकार द्वारा गठित समितियों और आयोगों के वे सदस्य और परामर्शदाता रहे हैं। प्रो. जोशी ‘चतुर्थ राज्य वित्त आयोग, उत्तराखण्ड’ के अध्यक्ष रहे हैं। उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के लिए गठित एवं चर्चित ‘रमाशंकर कौशिक समिति की रिपोर्ट (वर्ष-1994)’ को तैयार करने में उनका प्रमुख योगदान रहा है। वर्तमान में, वे ‘दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, देहरादून’ के अप्रैल, 2022 से मुख्य सलाहकार के रूप में अपना मार्गदर्शी योगदान दे रहे हैं।
उत्तर प्रदेश से 9 नवम्बर, 2000 को अलग होकर नये अस्तित्व में आये उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद से ही यह महसूस किया जाने लगा था कि एक राज्य स्तरीय पुस्तकालय और नीतिगत परामर्श के लिए एक शोध केन्द्र को संचालित किया जाना चाहिए। जहां देश-दुनिया और हिमालयी क्षेत्र के संपूर्ण परिवेश और जन-जीवन से संबंधित विशेषकर उत्तराखण्ड के भौगोलिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा अन्य विषयों पर प्रमाणिक संदर्भ पुस्तकें और साहित्य आम पाठकों एवं शोधार्थियों को आसानी से उपलब्धता हो सके।
समाज विज्ञानी प्रो. बी. के. जोशी जी ने उक्त विचार को एक वृहद एवं दीर्घकालिक कार्ययोजना के रूप में परिणित करके इस दिशा में अग्रणी भूमिका का निर्वहन करने की पहल की। संयोग से, उनको तत्कालीन मुख्य सचिव एम. रामचन्द्रन और उनके बाद एस. के. दास का इस कार्ययोजना को धरातल पर लाने के लिए भरपूर सहयोग मिला। सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी के क्षेत्र में हिमालयी परिदृश्य पर केन्द्रित ‘दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, देहरादून’ का अस्तित्व 16 मार्च, 2006 को एक स्वायत्तशासी संस्था के रूप में सामने आया। इस संस्था के पदेन अध्यक्ष मुख्य सचिव, उत्तराखण्ड सरकार हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा 8 दिसम्बर, 2006 को परेड ग्राउण्ड में स्थित इसके परिसर का लोकार्पण हुआ।
लगभग 16 वर्षों बाद विगत 2 दिसम्बर, 2022 से ‘दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, देहरादून ने लैंसडाउन चौक के निकट अपने नये परिसर से कार्य करना शुरू कर दिया है। ज्ञातव्य है कि, वर्ष- 2019 से इसके नवीन परिसर का निर्माण कार्य आरम्भ हुआ था। लगभग ₹ 13 करोड़ की लागत से बने इस भव्य भवन और परिसर के निर्माण में ‘इंडियन एयरपोर्ट आथॉरिटी’ और ‘स्मार्ट सिटी परियोजना’ का संयुक्त वित्तीय योगदान है। यह उल्लेखनीय है कि मात्र 3 वर्षों में बिना किसी विशेष विघ्न-बाधा के ‘दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, देहरादून’ के नये परिसर का निर्माण हुआ है। प्रो. बी. के. जोशी इसका श्रेय तत्कालीन मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह के सराहनीय आत्मीय सहयोग को प्रदान करते हैं।
वर्तमान में, हिमालयी पारिस्थिकीय और जन-जीवन पर केन्द्रित, संदर्भ पुस्तकों, पत्रिकाओं, रिपोर्ट, शोध ग्रन्थों, जर्नल्स के अलावा देश-दुनिया में साहित्य, विज्ञान और मानविकी में चर्चित और प्रमुख पुस्तकें ‘दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, देहरादून’ में उपलब्ध हैं। देश-समाज और विशेषकर हिमालय से जुड़े समसामयिक मुद्दों और प्रसंगों पर संगोष्ठी, सेमीनार, वर्कशाप, प्रर्दशनी, चर्चा-परिचर्चा, पत्रिका-पुस्तक लोकार्पण, साहित्यिक गोष्ठियां यहां नियमित रूप में आयोजित होती हैं। यही कारण है कि समाज के प्रबुद्व जन से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं और शोधार्थियों के अघ्ययन का यह सर्वोत्तम स्थल है।
संख्यात्मक दृष्टि से देखें तो वर्तमान में ‘दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, देहरादून’ में साहित्य और सामाजिक विज्ञान से संबंधित लगभग 35 हजार से अधिक पुस्तकें, 40 प्रतिष्ठित जर्नल्स तथा राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सभी प्रमुख समाचार पत्र यहां पढ़ने के लिए उपलब्ध हैं। दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, देहरादून’ ने अब तक उत्तराखण्ड राज्य के सर्वागींण विकास, आवश्यकता, अवसर और संभावनाओं, नीति-नियोजन, साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, कला, विज्ञान तथा अन्य विषयों से सम्बधित 45 से अधिक पुस्तकों को प्रकाशन किया है।
वर्तमान में, इस संस्था की सदस्य संख्या 5000 से अधिक है। आम पाठकों के लिए ‘दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, देहरादून’ प्रत्येक कार्यदिवस में प्रातः 8 बजे से सांय 8 बजे तक खुला रहता है। यह प्रसन्नता की बात है कि ‘दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द, देहरादून’ के नवीन आशियाने में हिमालयी अंचल के जन-जीवन विशेषकर उत्तराखण्ड राज्य की लोक विरासत, संस्कृति, इतिहास, कला, साहित्य, गीत-संगीत, फिल्मों से सम्बधित ऐतिहासिक संदर्भ साहित्य और पुरातात्विक प्राचीन दुर्लभ वस्तुओं और कलाकृतियों के लिए एक आकर्षक संग्रहालय का आकार गतिमान है।
यह उल्लेखनीय है कि आज जिस स्थल पर ‘दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द, देहरादून’ का नवीन भवन और परिसर है, वह पूर्व में कई दशकों से आम जनता का सरकारों को चेताने और उनके ध्यानाकर्षण के लिए धरना स्थल हुआ करता था। ये वो ऐतिहासिक जगह है जहां से आम नागरिकों ने अपने तीव्र विरोध से कई सरकारों की जन-विरोधी नीतियों को जन-कल्याण में बदलने में सफलता हासिल की थी।
नये परिदृश्य में यह जगह ‘दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द, देहरादून’ के माध्यम से राज्य के नागरिकों के एक गम्भीर चिन्तन-मनन केन्द्र के रूप में उभर रही है। आशा की जानी चाहिए कि इस संस्था के अध्येयता और पाठक उसी पूर्ववर्ती रूप में सरकार और समाज को सही दिशा-निर्धारण के लिए जागरूक सचेतक और परामर्शी बनेंगे। पुनः ‘दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द, देहरादून’ के रूप में एक ज्ञानमयी सौगात को उत्तराखण्डी समाज विशेषकर युवाओं को सर्वसुलभ कराने हेतु आदरणीय प्रो. बी. के. जोशी जी और उनकी टीम को आत्मीय बधाई और धन्यवाद।