कालड़ी की माटी
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मुकेश नौटियाल
आद्य गुरु शंकर की धरती को प्रणाम। कालड़ी की माटी की एक-एक रज को प्रणाम। मां आर्यम्भा को प्रणाम जिसकी कोख से उस पुत्र ने जन्म लिया जो समंदर के इस सुदूर दक्षिण तट से उत्तर के हिमालयी प्रान्तर तक पहुंचा और अरण्य-प्रान्त को आज से तेरह सौ वर्ष पहले ही शेष दुनिया से जोड़ गया। आद्य गुरु ने जो चार खंभे गाड़े उन्ही से आज के भारत का नक्शा तामीर होता है। वह केवल धर्माचार्य भर नहीं, सांस्कृतिक दूत भी हैं और उद्भट विद्धान भी। सनातन धारा में पहले पहल तर्क को सिद्धि का प्रमाण स्थापित करने वाले शंकर के जन्म-स्थल पर पहुंचकर मुझे ऐसी तृप्ति मिली मानो मैंने अपने सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों को तर्पण अर्पित कर दिया हो। केरल-प्रदेश की इस पवित्र भूमि को नमन जिसने अपने गर्भ से आदि-गुरु जैसे चिरन्तन साधक और ज्ञात इतिहास के सबसे महान घुमक्कड़ को जन्म दिया।
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