जलवायु परिवर्तन – COP27
डॉ. महेश भट्ट
जलवायु परिवर्तन (#climatechange ) पर पूरी दुनिया की चिंता एवं चिंतन का महासम्मेलन #COP27 का आज शर्म अल शेख़ ईजिप्ट में अंतिम दिन था, इस दो हफ़्ते के लम्बे सम्मेलन में मैं इसके दूसरे हफ़्ते में शामिल हुआ। यहाँ आ कर लगा कि जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों पर भी जहां पर कि पूरी मानवता का भविष्य दांव पर है वहाँ पर भी राजनीति अपना खेल बख़ूबी खेलती है। जलवायु परिवर्तन से वो तबका ज़्यादा प्रभावित होता है जिसका कि इसमें ना के बराबर हाथ होता है। अगर आप अपने आसपास देखें तो मज़दूर, सड़कों पर रहने वाले, झुग्गियों में रहने वाले लोगों की ऊर्जा की खपत लगभग नगण्य होती है उनके पास न तो ए सी होता है और न ही कार ज़्यादा से ज़्यादा ये लोग एक दो बल्ब से अपना काम चलाते हैं.
अतः इनके द्वारा कार्बन उत्सर्जन जो #जलवायुपरिवर्तन के लिए सबसे अहम है नगण्य होता है, वहीं हम अमीर लोगों को देखें तो उनकी गाड़ियाँ, बंगले, शानोशोकत सब ऊर्जा की खपत पर ही निर्भर है, अतः उनके द्वारा कार्बन उत्सर्जन कई गुना ज़्यादा होता है जो जलवायु परिवर्तन और #globalwarming का कारण बनता है और उसकी वजह से बेसमय बारिश, बाढ़, सूखा, कृषि का नुक़सान, प्राकृतिक आपदाएँ, बीमारी आदि होती हैं। ऐसे में अमीर जो इस समस्या को पैदा करते हैं उन पर इसका असर नगण्य होता है क्योंकि उनके पास बचने के संसाधन होते हैं जबकि गरीब जिनका कि इस समस्या को खड़ा करने में नगण्य का योगदान है उनके जीवन पर संकट आ जाता है क्योंकि उनके पास संसाधनों की कमी होती है।
बिलकुल यही वैश्विक स्तर पर विकसित और विकासशील देशों के परिप्रेक्ष्य में होता है, विकसित देशों का कार्बन उत्सर्जन विकासशील देशों की तुलना में कई गुना ज़्यादा है और जलवायु परिवर्तन के वे मुख्य कारण हैं, लेकिन इसकी मार गरीब देशों पर ज़्यादा पड़ती है क्योंकि उनके पास संसाधनों की कमी है, यहीं पर ये #climatejustice का मुद्दा बनता है और इसमें कई #equity इस्यूज आ जाते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए विकसित देशों ने वादा किया था कि वे हर साल 100 बिलियन डॉलर देंगे, लेकिन ये आज तक नहीं हो पाया मतलब कि वो लगभग मुकर गये।यहाँ पर हेल्थ कम्युनिटी कहती है कि आप लॉस और डैमेज के कॉनसेप्ट पर काम करिये और फोसिल फ़्यूल जैसे कोयला, डीज़ल, पेट्रोल आदि को ग्रेजुअली बंद करके ग्रीन एनर्जी की तरफ़ बढ़िये, लेकिन विकासशील देशों के पास आपके आसपास के गरीब की तरह संसाधन नहीं हैं कि वो ऐसा कर सकें और विकसित अमीर देश अपनी ज़िम्मेदारी से बच रहे हैं, यही सबसे बड़ा डेडलॉक है जहां वैश्विक राजनीति एक निहायत ही संगीन मुद्दे पर उलझी है। पिछला पूरा हफ़्ता मीटिंगों और एडवोकेसी में गुजरा, इसमें मुझे जो सबसे अच्छा लगा वो था पूरे विश्व से आये मेडिकल छात्रों के साथ ‘डियर वर्ल्ड लीडर्स’ में किया गया संवाद तथा हेल्थ कम्यूनिटी का प्रदर्शन।
लेखक वरिष्ठ चिकित्सक हैं.