November 24, 2024



रेतीले मारवाड़

Spread the love

मुकेश नौटियाल


रेतीले मारवाड़ में जब दुपहरी का सूरज चमकता है तो खोपड़ी जैसे चटखने लगती है. देर शाम जब रेतीली आंधियां चलती हैं तो लगता है कि क़यामत बस द्वार पर दस्तक देने लगी है. लेकिन जब मध्य रात्रि में आप रज़ाई ढूंढते हैं तो पता चलता है कि पारा खासा गिर गया है. मीलों तक यहां बस्तियों का नामों निशान नहीं. बसायतों के खण्डहरो से मारवाड़ अटा पड़ा है. खेती नहीं है, उद्योग नहीं तो मारवाड़ी समाज जन्मजात व्यापारी बन गया.

Photo Vargish Bamola

हमारे यहां बीसेक साल पहले एक मारवाड़ी ने किराए पर किसी के घर की चारदीवारी के बाहर चाय का एक ठेला लगाया था. बीस बरस हुए, वहाँ अब मारवाड़ी का विशाल भोजनालय है और उस समय किराए पर अपनी चारदीवारी चढाने वाला मालिक उसके होटल में बिल काटता है. वह घर मारवाड़ी ने खरीद लिया है . मारवाड़ी समाज को यह जिजीविषा इसी रेगिस्तान ने दी है. आज भारत भर में उनकी उपस्थिति देखी जा सकती है.


Photo- Gajendra Rawat

वरिष्ठ लेखक और कहानीकार