उत्तराखंड – ढ़ाक के तीन पात
जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
आखिरकार वही हुआ जिसे कहते है ढ़ाक के तीन पाथ. घडी की सुई घूमकर फिर वहीँ अटक गयी जिसकी सुरु से संभावनाएं जताई जा रही थी. बड़े जोर शोर से जिस तरह विधानसभा अध्यक्ष ने पूर्व नौकरशाहों की एक तथाकथित क्षदम कमेटी (जिसका कोई क़ानूनी सर पैर नहीं है) की अनुसंशा पर एक झटके मैं चोर दरवाजे से नियुक्त किये गए कर्मियों को हटाया, वह चंद दिनों मैं पानी के बुलबुले की तरह फट पड़ा. कोर्ट ने अध्यक्ष के आदेश पर स्टे लगा दिया है. बेचारे कर्मियों पर तो तुरंत एक्शन ले लिया गया, पर जिन विधानसभा अध्यक्ष्यों के कार्यकाल मैं उत्तराखंड के युवाओं के साथ ऐसा धोखा किया गया, उन पर कोई कार्यवाही न होना या करना एक तरह की जनता के साथ बेईमानी का सबब ही माना जायेगा.
लगातार भ्रस्टाचार पर लीपापोती कर उत्तराखंड सरकार समझ रही है कि जनता को यूँ ही बरगलाया जा सकता है लेकिन कब तक? उत्तराखंड मैं भाजपा का यह दूसरा कार्यकाल है. नौकरियों मैं लगातार घोटाले पर घोटाले निकलने, फिर उनको निरस्त करने, नयी भरती, नयी नियुक्तियों की जोर शोर से बात करने मैं ही नयी सरकार का एक साल गुजर गया. पिछले कार्यकाल के अंतिम दिनों मैं जब पुष्कर धामी को बागडोर सौपी गयी थी, तब चुनावी फायदा लेने के लिए 24 हजार नियुक्तियों को निकालने की घोषणा की गयी थी. युवाओं ने कुछ नियुक्तियों के लिए फॉर्म भी भरे थे, लेकिन इनकी आज तक परीक्षा नहीं हो पायी.
अभी कुछ दिन पहले फिर मुख्य सेवक ने इसी बात को दोहराया, क्या सरकार इस मुगालते मैं है की जनता की याददास्त क्षणिक होती है. भर्ती घोटाले में तथाकथित रूप से शामिल कुछ अधिकारीयों को जेल की सलाखों के अन्दर कर सरकार दिखावे की कार्यवाही कर गाल बजा रही हैं, लेकिन इतने बड़े घोटाले मैं अभी तक कोई सफ़ेद पोश को अन्दर नहीं कर पायी. विपक्ष लगातार सी. बी. आई. जाँच की मान कर रही, पर उसे कोर्ट ने मना कर दिया. आखिर सरकार को किस बात का डर बैठा हुआ हैं, इससे सरकार की मंशा पर ही संदेह के बादल मंडराते नजर आते है. अब भले वह कहे की यह कोर्ट का आदेश है? सरकार पूरी तरह कोर्ट की आड़ में एक के बाद एक निर्णय से बचने का जाल फैलाकर जनता को खुले आम बेवकूफ बना रही है और दुर्भाग्य जनता को भी बेवकूफ बनने मैं अब मजा आने लगा है.
जिस तरह के कांड इस राज्य मैं पिछले एक साल मैं हो चुके है, अब तक तो जनता को सड़कों पर आ जाना चाहिए था. लेकिन उत्तराखंड की जनता ने लगता है अपना ज़मीर बेच दिया है. उत्तराखंड की जनता अपनी जमीनों, नौकरियों यहाँ तक की अपनी इज्ज़त आबरू से भी हाथ धो बैठी है. जब से धामी सरकार ने सत्ता संभाली है तब से एक के बाद एक कांड उछल रहे है. धामी की चुनौतियाँ कम होने के बजाय बढ़ती जा रही हैं. इसमें धामी की कार्यशैली के बजाय भाजपा की करतूतों की बड़ी भूमिका है, धामी अपने पुर्ववर्तियों व अपने लोगों के कुकर्मों पर पर्दा डालने व मैनेज करने के ही काम मैं पिछले एक साल से उलझी हुई है. धामी इन कुचक्रों से बाहर नहीं निकल पा रहे है. और इस वजह से वे कोई ठोस निर्णय अभी तक नहीं ले पाए है.
भले ही अभी धामी को वरदहस्त प्राप्त हो, है भी जिस तरह भारी बहुमत लेने के बावजूद खुद अपनी सीट हारने पर भी उनको मुख्यमंत्री का दायित्व दिया गया, वह एक चमत्कार तो है ही. लेकिन धामी को अब ये समझना होगा की बकरी की अम्मा कब तक खैर मनाएगी. धामी को खुद को साबित करना होगा, जो की वे अभी तक नहीं कर पाए है? जब – जब सरकारों पर संकट आता है तो नेतृत्व की मजबूरी होती है कि मुख्य नेतृत्व की तरफ आँख मूंद लें. जिस तरह भर्ती घोटाले, विधानसभा भर्ती प्रकरण, भर्तियों में संघ के नेताओं की भूमिका, अंकिता प्रकरण में बुलडोजर चलाकर सबूतों को नस्ट करने का मामला, लॉ एंड आर्डर की बुरी स्थिति, नयी भर्तियों में लेट लतीफी जैसे मामले धामी के गले की आफत बने हुए है, जिससे वह पार नहीं पा रहे है.
ऐसी स्थिति में केन्द्रीय नेतृत्व आखिर कब तक हाथ पर हाथ धरे बैठेगा, यह धामी की किस्मत पर निर्भर करेगा. पिछले एक साल से राज्य मैं घपलों, घोटालों, कांडों का महा कुम्भ मेला चल रहा है, यह ओलोम्पिक खेल धामी कब ख़त्म करेंगे अभी कुछ पता नहीं चल रहा. जनता पूरी तरह असमंजस की स्थिति मैं है. यह धामी का राजयोग ही कहा जायेगा की जब से उन्होंने सत्ता संभाली है, तब से एक के बाद एक कांड होने पर भी उनकी कुर्सी पर कोई आंच नहीं आई है. दरअसल इसके पीछे धामी की एक ही चतुराई है की वह सरकार के प्रबंधक / सी. ई. ओ. की तरह काम कर, हर पल की खबरों से केन्द्रीय नेतृत्व को अवगत करवाती रही है. अब ऐसी स्थिति मैं वह कोई स्व निर्णय ले या नहीं कोई फर्क नहीं पड़ता. जनता जाये भाड़ मैं वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. लेकिन मुख्य सेवक को पता होगा ही कि हिमांचल व गुजरात चुनाओं के रहते फिलहाल, केन्द्रीय नेतृत्व को उत्तराखंड सरकार की परफोरमेस देखने का वक़्त नहीं है. लेकिन यह दौर भी दो महीनों मैं गुजरने वाला है. फिर एक नया दौर शुरू होगा जब जनता के साथ – साथ खुद पार्टी भी पूछेगी कि अभी तक सरकार की क्या उपलब्धियां है?
केन्द्रीय विकास योजनाओं को अलग कर उत्तराखंड राज्य की सरकार को इसका जवाब देना होगा कि उत्तराखंड सरकार ने कौन सी ठोस विकास कार्यक्रमों की शुरुआत की है. तब मुख्य सेवक / सी. ई. ओ. साहब जवाबदेही से पीछे नहीं हट सकते. केन्द्रीय नेतृत्व का विश्वास हासिल करना ही सफलता की गारंटी नहीं है, जब धरातल पर कुछ दिखेगा नहीं तो विश्वास टूटने मैं ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा. असल बात यह है कि पिछले एक साल में धामी सरकार धरातल पर कहीं दिखाई नहीं दी. वह शुरू से ही क्राइसिस मैनेजमेंट मैं फंश चुकी थी व अभी तक उभर नहीं पायी है.
पिछले महीने केदारनाथ के पीछे तीन बार बर्फीले तूफ़ान आये. इन तूफानों को हलके में लिया गया, जबकि ठीक उसी दौरान केदारनाथ के ग्लेशियर इलाके के पृष्ठ भाग में उत्तरकाशी के द्रौपदी के डांडा, जहा निम के पर्वतारोहियों का प्रशिक्षण चल रहा था, में एक जलजला आया और दर्जनों पर्वतारोहियों को अपने आगोश मैं मौत की नींद सुला गया. दोनों बर्फीले तूफानों का समयकाल एक ही था. यानि की दोनों एक ही परिस्थिति से उपजे हादसे हैं. यही आपदा केदारनाथ की तरफ भी हो सकती था? बैज्ञानिकों को इन सब बातों का पता रहता है, लेकिन वे परिस्थितिवस चुप रहने के लिए मजबूर रहते है. केदारनाथ मैं हेलीकॉप्टरों की गडगडाहट से ग्लेशियर कमजोर होते है यह बात भी बैज्ञानिक जानते है, पर फिर भी चुप्पी ओढ़नी पड़ती है. हेलिकोप्टरों के धंदे पर फर्क न पड़े, बेमौसम मैं भी यात्रियों व पायलटों की जान जोखिम मैं डालकर उड़ान भरनी पड़ती है. क्युकी उपलब्धि के नाम पर घोषणा जो करनी हैं कि, केदारनाथ मैं यात्रा का रिकॉर्ड बना है. अब भले इसमें किसी की जान जाये या रहे, सब बाबा की कृपा पर निर्भर चल रहा है. इस बार चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रधालुओं की मौत का भी नया रिकॉर्ड बना है. आगे फिर अगले साल.
जिस तरह उत्तराखंड की यात्रा ब्यवस्था मैं आमूल चूल परिवर्तन हुए है, उससे नयी ब्यवस्था की दरकार महसूस होती है. सड़कों की चौड़ाई बढ़ने से यात्री एक ही दिन मैं चारधाम पहुँच जा रहे है, इससे ब्यवस्थायें गडमड हो गयी है. चारधाम यात्रा के शुरुआत मैं जिस तरह भीड़ उमड़ी थी, उसने सारी ब्यवस्थाएं चौपट कर दी थी. अब आने वाले समय मैं केदारनाथ में, रोपवे लगने पर भीड़ को नियंत्रित करना चुनौती होगा. ऋषिकेश – हरिद्वार से सीधे धामों तक पहुँचने वाले यात्रियों से यात्रा पर निर्भर रहने वाले होटलों, ढाबों, दुकानदारों को कोई खास धंदा नहीं मिलने वाला है. रेल यात्रा शुरू होने से यात्रा मार्गों पर धंधे करने वालों का भी धंदा प्रभावित होने जा रहा है. इस ओर सरकारों का बिलकुल भी ध्यान नहीं है. यात्रियों को चारधाम से इतर किस तरह अधिकतम समय राज्य के अन्य पर्यटन व तीर्थ स्थलों पर रोका जा सके, इसकी योजना व पैकेज अभी से बने तो आने वाले समय के लिए अच्छा सन्देश जायेगा.
उत्तराखंड राज्य को 22 साल पूरे हो रहे है. राज्य ने अभूतपूर्व विकास किया है, आधारभूत संरचनाये बनी है (नाम के लिए ही सही), बहुत कुछ खोया है, बहुत कुछ पाया भी है, लेकिन राज्य की स्थानीयता का ढांचा चरमरा गया है. ऐसा लगता है की हजारों लांसों के ढेर पर महल पर महल बनाने की सनक ने, राज्य की परिकल्पना की हत्या कर दी है. बाहर से चमचमाता दिखने की होड़ में आम उत्तराखंडी धरातल पर धंसता जा रहा है. और चोर, दलालों, भूमाफियाओं, बलात्कारियों, भ्रस्टाचारियों का सम्राज्य फलता फूलता जा रहा है. इस उहापोह से बहार निकलने की जरुरत बार – बार आन पड़ी है. अभी भी जाग जाओ उत्तराखंडियों??? नहीं तो मरते रहो, घुटते रहो, सड़ते रहो…उठो हिम्मत करो और जोर से बोलो जय उत्तराखंड.