यह शापित कुलधरा है
मुकेश नौटियाल
यह शापित कुलधरा है…अतीत में पालीवाल ब्राह्मणों का एक समृद्ध गांव, जो कभी सिल्क रूट का बड़ा व्यापारिक केंद्र होता था। यहां छः सौ से ज़्यादा परिवार बसते थे। राजस्थान के पाली ज़िले से विस्थापित पालीवालों ने कुलधरा से खाबा तक के विशाल इलाके में अपने अनेक गांव आबाद किए। आश्चर्यजनक रूप से ब्राह्मणों की यह बिरादरी वणिकों की तरह व्यापार में पारंगत थी। व्यापार से ये इतने समृद्ध हुए कि जैसलमेर के दुर्ग- निर्माण में अपना धन खपाने लगे। यह देखकर राजा के बजीर सालेम सिंह जिसको स्थानीय लोग ज़ालिम सिंह कहते हैं, ने उन पर भारी टैक्स थोप दिया।
अय्याश सालेम सिंह जब टैक्स उगाही करने कुलधरा आया तो एक ब्राह्मण -कन्या उसकी नज़र में चढ़ गई। उसने मुखिया रामचंद्र पालीवाल को तीन दिन के अंदर कन्या उसको सौंपने को कहा। फिर क्या था! उसी रात पंचायत बैठी। तय हुआ कि बेटी की कीमत पर कोई समझौता नहीं होगा। पालीवालोंं ने कुलधरा छोड़ दिया। जो बूढ़े और अशक्त थे उन्होंने आत्मघात कर लिया। बेजोड़ आर्किटेक्चर से बना यह गांव फिर कभी आबाद नहीं हुआ। रोते – बिलखते पालीवालों ने जाते हुए यह शाप दिया था कि इतने परिश्रम से बसाए जिस गांव से उनको पलायन के लिए मज़बूर किया गया वहां आइंदा कोई मानुष जात नहीं फब पाएगी। घटना को दो सौ साल बीत गए, आज भी शांत दुपहरी में कुलधरा के खंडहरों से पालीवालों की सिसकियां फूटती सुनाई देती हैं।
लेखक वरिष्ठ कहानीकार व साहित्यकार हैं.