बहु भाषाविद डॉ प्रभाती नौटियाल
गोविन्द प्रसाद बहुगुणा
उत्तराखंड के जनपद उत्तरकाशी में जन्मे एक अप्रतिम लेखक और अनुवादक डॉ प्रभाती नौटियाल मेरे घनिष्ट मित्रों में से हैं लेकिन वह एक ऐसा व्यक्तित्व है जिनके बारे में सामान्य उत्तराखंड के निवासी नहीं जानते क्योंकि डॉ नौटियाल ने स्वयं अपनी ख्याति बढ़ाने और अपनी कृतियों के प्रचार- प्रसार के लिए कुछ नहीं किया वे आत्मप्रचार से हमेशा बचते रहे। हालांकि उनकी रचनायें राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पटल पर स्वत ही काफी चर्चित रही हैं।
डॉ प्रभाती नौटियाल की प्रारंभिक शिक्षा राजकीय इण्टर कॉलेज उत्तरकाशी उत्तराखंड में हुई तत्पश्चात उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने के बाद वहीं से एम फिल और पी एच डी की उपाधि प्राप्त कीI वह स्पेनिश भाषा और साहित्य के विशेषज्ञ के रूप में वे तीन दशक से अधिक समय से स्पेनिश भाषा और साहित्य का अध्यापन कर रहे हैंI उन्होंने लैटिन अमेरिकन साहित्य संस्कृति और सभ्यता से लोगों का परिचय करायाI
१९८३ में सिमोन बोलिवर द्विशताब्दी उत्सव में योगदान के लिए उन्हें संयुक्त रूप से चारों बोलिवेरियन गणराज्यों (पनामा , कोलंबिया बेनेज़ुएला और पेरू) की ओर से पुरस्कृत किया गया थ I २०१० में उन्होंने स्पेनिश -हिंदी शब्दकोष का संपादन किया जिसका प्रकाशन केंद्रीय निदेशालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार द्वारा किया गया थाI इन्हीं उपलब्धियों के प्रकाश में उन्हें भारतीय साहित्य अकादमी, संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा हिस्पानी साहित्य का एक्सपर्ट नामित किया गया I उन्हें एम फिल और पी एच डी के शोध छात्रों के परीक्षक के रूप में अभी भी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, गोवा यूनिवर्सिटी तथा महात्मा गाँधी हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा द्वारा समय समय पर आमंत्रित किया जाता है I
उन्होंने स्पेनिश से हिंदी में एक दर्जन से अधिक स्पेनिश साहित्यकारों और कवियों की रचनाओं का अनुवाद किया है I इसके अलावा उन्होंने पुर्तगाली भाषा में लिखी पुस्तक वास्कोडीगामा की पहली समुद्री यात्रा का हिंदी अनुवाद भी किया है जो अत्यंत दिलचस्प और पठनीय पुस्तक है I
वर्ष 2012 में साहित्य अकादमी दिल्ली ने डॉ नौटियाल द्वारा अनूदित पाराग्वाइ के प्रख्यात रचनाकार ख़्वान मान्वेल मार्कोस के स्पानी उपन्यास एल इन्विएर्नो दे गुंतेर – गुन्तेर की सर्दियाँ का प्रकाशन किया था, जिसका लोकार्पण दिल्ली में एक भव्य समारोह में राष्टरीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के लेखकों और रचनाकारों की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ था। हालांकि मैँ न तो उस कोटि का लेखक हूँ और न रचनाकार जैसे डॉ प्रभाती नौटियाल हैं या कोई अन्य ख्यातिप्राप्त लेखक हैं, किन्तु पराग्वे के राजदूत हिज एक्सेलेंसी Genaro Vicente Pappalardo ने अभूतपूर्व सौहार्द दिखाते हुए अपने पत्र दिनाक 20 अगस्त 2012 के साथ न केवल उक्त रचना भेंट स्वरूप मुझे प्रेषित की, अपितु लोकार्पण समारोह में सम्मिलित होने का निमंत्रण भी स्पीड पोस्ट से मुझे भेजा था, उस पत्र को में आज तक संभाले हुए हूँ। लेकिन मुझे आज तक अफसोस है कि मैँ उस समारोह में उपस्थित न हो सका।