गाँधी सरोवर की प्रासंगिकता
महावीर सिंह जगवान
समुद्रतल से 12582 फीट की ऊँचाई पर हिमालय की गोद मे स्थित चौराबाड़ी ताल (गाँधी सरोवर) जिसका अस्तित्व और आकर्षण 2013 की केदार त्रासदी के बाद लगभग खत्म ही हो गया है।
अधिशंख्य भू वैज्ञानिक केदार जल प्रलय मे इस जलाशय की भी महत्वपूर्ण भूमिका मानते हैं। सन् 1995 के साल हम बारहवीं की परीक्षा देकर पट खुलने के बाद केदारनाथ गये थे। केदारपुरी के चारों ओर घूमने की उत्सुकता ने हमे मन्दाकिनी के उद्गम को छूने के लिये उकसाया और हम केदारनाथ जी के मंदिर के पीछे पीछे उद्गम के श्रोत की ओर बढने लगे जैसे ही हम आगे बढते जलधारा का रूप बढता दिखता उसे पार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाये और अंत मे ऐसे भू क्षेत्र मे पहुँचे जैसा कोई मैदान हो और दल दल से भरा हो इसे उबलता सागर भी कहते हैं।
यहाँ पानी के बुलबुले और सुरूरूरू गुरूरूरू की आवाज और जलाशय दलदल। तब से लगातार एक ही परिकल्पना थी चौराबाड़ी ताल की तरह यहाँ भी गहरा और फैला हुआ बड़ा जलाशय होगा, निरन्तर टूटते हिमालय का मलबा इसमे भरता गया होगा और इसका महत्व ही विलुप्त हो गया होगा, बड़ी मुस्किल से इस दलदल को पार किया, जो बड़े बड़े पत्थर इस पर दिखते थे वो उसी समय ओझल हो जाते थे इसका मुहाना ऐसा था मानो विशालकाय ज्वालामुखी की मुँह हो। और फिर दूसरे छोर पहुँचकर चौराबाड़ी ताल के छोर पर पहुँचे। इस उबलते सागर की चौराबाड़ी ताल से ऊँचाई आठ सौ से एक हजार मीटर रही होगी।आज भी लगता है चौराबाड़ी ताल से बड़ी भूमिका इस उबलते सागर की रही होगी।
आज समाचार पत्र पढ रहा था वैज्ञानिकों का संदेश था पचास साल तक चौराबाड़ी ताल से कोई खतरा नहीं है। आश्चर्य इस बात का है सुरक्षा के नाम पर किये गये हजारों करोड़ के कामों की पचास साल बाद क्या प्रासिंगकता रहेगी। आज भी जरूरत है केदारपुरी को प्रकृत्ति सम्मत विकास की। इसकी चिन्ता तो सदा बनी रहेगी।