उत्तराखंड परिदृश्य – जीरो टौलरेन्स की बारी अब जनता की
वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली
निस्संदेह 2 अक्टूबर से 9 नवम्बर तक हर साल की ही तरह 2022 में भी उत्तराखंड राज्य सरकार के राजनेता उत्तराखंड को राज्य आन्दोलनकारियों के सपनों का राज्य बनाने पर अनेकानेक बयान देंगे। 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं इसलिये 2024 तक उत्तराखंड को देश का अग्रणी राज्य बनाने की बातें भी दोहराई जायेंगी। परन्तु जुलाई 2022 से सितम्बर 2022 तक राज्य में घटित घटनाओं के कारण देश में राज्य की छवि में बदनुमा दाग ही जुड़े हैं। राज्य में जो उबाल है वो तो अलग ही है। हांलांकि राज्य की छवि के बजाये नेताओं की छवि बनाने के लिये प्लांटेड व पेड न्यूज सौगात, धाकड जैसे शब्दों के भरमारों के साथ घुमती रहती हैं। परन्तु विज्ञापनी समाचार इस बार ज्यादा असरदार नहीं होने वाले हैं। कारण है कि जनता अब जीरो टौलरेन्स की मूड में आ गई है और राजनेता दीवाल पर पीठ रख कर लड़ रहें हैं। शहीदों हम शर्मिंदा हैं कि तुम्हारे कातिल जिंदा हैं के साथ साथ शहीदों हम शर्मिंदा हैं कि हम ऐसों को चुनते आये हैं जैसी पीड़ा के नतीजे अवश्य भविष्य में आयेंगे।
बेशर्मी की तो हद यह है कि एक राजनैतिक दल जब फंसता है तो कहता है कि दूसरे राजनैतिक दल ने भी ऐसा किया। एक ने उत्तराखंड को चरा था तो हम भी चरेंगे। एक ने कालिख पुतवाई थी तो हम भी पुतवायेंगे। चाहे विधान सभा बैकडोर भर्ती का मामला हो चाहे उत्तराखंडी बेटी अंकिता का जघन्य हत्याकांड का मामला हो। आरोपी का भाई अंकित आर्य ओ बी सी आयेग का उपाध्यक्ष पिता विनोद आर्या भी इसके पहले की भाजपा सरकार में दायित्वधारी थे। चर्चित काण्ड के बाद भाजपा ने दोनों को दल से निष्कासित जरूर कर दिया था किन्तु उसी दौरान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने यह भी सुनाया था कि राज्य में कांग्रेस का इतिहास महिला अपराधों व शर्मनाक घटनाओं से भरा रहा है। मुजफ्फरनगर कांण्ड तो दूसरे राज्य में हुआ था दूसरों की सरकार में हुआ था किन्तु यह अक्षम्य पाप तो देवभूमि में जन आन्दोलन व कुर्बानियों से पाये अपने राज्य और अपनी ही सरकार के दौर में ही हुआ है।
अब विधान सभा रेवड़ी बांट भर्तियों की बात करें। भर्तियों में गड़बड़ियां हुंईं थी इसीलिये तो विधान सभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी भूषण ने कोटिया जांच समिति की रिपोर्ट पर 228 नियुक्तियों 2016 -150, 2019 – 6 भर्तियां, 2021 की 72 भर्तियां को रद्द करने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था। परन्तु यदि आप इन नियुक्तियों या इनके लिये सिफारिशों के बारे मे जाने तो साफ हो जायेगा कि अनुचित अनैतिक लाभों को उठाने में विभिन्न दलों के राजनेताओं के बीच राज्य में एक सहमति समझ राज्य बनने के बाद से ही विकसित हो चुकी है। ये समय है जब विभिन्न राजनैतिक दलों के उन राजनेताओं को आत्मग्लानि अनुभव करने की जिन्होने मंत्री मुख्यमंत्री या विधान सभा अध्यक्ष होते हुये अपने बेटे बेटियों रिस्तेदारों या परिचितों को राजकीय सेवाओं में नियुक्तियां दिलवा ज्यादा योग्यों व जरूरतमंदों का हक मारा।
दुखद तो यह है कि शर्मसार होने के बजाये इनमें से कुछ हेकड़ी दिखाने से भी बाज नहीं आये हैं पूर्ववर्ती भाजपा शासन के विधान सभा अध्यक्ष और अब के मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल कह रहें हैं हां मैने भर्तियां की थीं। एक अधिकारी को दो प्रोन्नतियां देकर विधान सभा सचिव बनाया था। किया था तो इसमें अब आगे उनके संदर्भ में क्या जरूरत है। पूर्व विधान सभा कांग्रेसी अध्यक्ष भी अपने बेटे बहू को विधान सभा में नौकरी दी थी। तो उनको व अन्य लिप्त जन पर कानूनी कार्यवाही से क्यों कतरा रहें हैं। ज्यादा से ज्यादा यही तो होगा कि ऐसे राजनेता कोर्ट जायेंगे। जाने दीजिये। वो विशेषाधिकार के नाम पर न्यायलय में जीत भी जायेंगे। जीतने दीजिये। पर इससें सरकार का जीरो टौलरेन्स तो पता चलेगा व नेताओं के उत्तराखंड प्रेम के व जनप्रेम के मुखौटे तो उतरेंगे। और नही तो वर्तमान विधान सभा अध्यक्ष जीरो टौलरेन्स दिखाते हुये इन्हे सदन में ही प्रताड़ित करने का अपने विशेषाधिकार के अंतर्गत विकल्प ढूंढ सकती हैं।
उत्तराखंड में उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परीक्षाओं के पेपर लीक घोटालों की बात करें। प्रति व्यक्ति लाखों रूपये लेकर उत्तराखंड में सालों से पेपर लीक होते रहे नौकरियां दी जाती रहीं। करोड़ों रूपये इस खेल में इकठ्ठे करने वाले दर्जनों लोग तो हैं ही जिनमें उत्तराखंड में राजनेताओं से नजदीकी वाला मुख्य आरोपी उत्तरकाशी जिला पंचायत सदस्य हाकम सिंह रावत भी है। पर जरा ये भी सोचिये कि देने वालों के पास इतना काला धन कहां से आया। और फिर जो लाखों रूपये खर्च कर ग सेवा की भी नौकरी पायेगा वो क्या काली कमाई नहीं करना चाहेगा। ध्यान इस पर भी दें कि पेपर लीक घोटालों के संदर्भ में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष व उत्तराखंड सरकार की सेवा में सालों तक रहे वरिष्ठ आई ए एस रहे एस राजू ने अपने पद से इस्तीफा देने के पहले स्पष्ट कहा आयोग की परीक्षाओं की अनियमितताओं की जब उन्होने करानी चाही तो राजनैतिक नेताओं ने उन्हे ऐसा न करने दिया। ऐसे कारनामों पर क्या लाखें युवा बेरोजगार व उनके अभिभावक ऐसे कुशासन पर जीरो टोलरेंस रख पायेंगे।
इस बीच जनता जीरो टौलरेन्स दिखाते हुये पिछले तीन चार माहों में लामबध्द भी हुई है। 18जुलाई 2022 को जोशीमठ हेलेंग क्षेत्र में घास लेकर जंगल से लौटती महिलाओं का पुलिस ने घास छीना गाड़ी में बिठाकर थाने ले गये गिरफ्तार किया था। घसियारी महिलाओं से पुलिस दुर्वव्यवहार हुआ। इस पर भी जनता ने जीरो टौलरेंस दिखाया था। इसका आक्रोश आज तक बना हुआ है। इसी प्रकार एक सवर्ण महिला से शादी करने के राह पर कुमांऊ में उ प पा समर्थक एक दलित नेता श्री जगदीश चंद्र की की हत्या पर भी क्षेत्रीय जनता ने जीरो टौलरेन्स दिखाया था।
इस बीच प्रयास शुरू हो गये हैं नाकामियों से ध्यान भटकाने के या उन जन सरोकारों के मुद्दों से ध्यान भटकाने का जिनको लेकर जनता आक्रोशित है। बुलडोजर कैसे इसको सहज कर देते हैं इसकी कई गाथाये हैं। किन्तु जब जनता जीरो टौलरेन्स को उद्यत हो तो बुलडोजरी धाकड़ता अपनाने का दांव उल्टा भी पड़ सकता है यह उत्तराखंड में देखने को मिला है। प्रसंग स्वाभिमान से भरपूर डोभ श्रीकोट जिला पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली मेधावी उन्नीस वर्षीय अंकिता भंडारी की की गई निर्मम हत्या से जुड़ा है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की अंकिता कई सालों से अवैद्य रूप से संचालित यमकेश्वर तहसील के गंगा भेगपुर स्थित वनत्रा रिजोर्ट में रिसैपनिस्ट थी। उसकी नौकरी कुछ ही दिनों की थी कि 18 सितम्बर 2022 को वह अचानक लापता हो गई थी। बाद में मालूम चला कि भाजपा नेताओं का बेटा व भाई पुलकित आर्य ने जो रिजोर्ट का मालिक था उसने अपने दो कर्मचारियों के साथ मिलकर अंकिता की हत्या कर दी थी।
किन्तु इस काण्ड के पता चलने के बाद अचानक रातों रात होटल पर बुलडोजर चला दिया जाना सरकार को मंहगा पर पड़ रहा है। अंकिता के परिवारियों समेत कई ने आरोप लगाया कि बुलडोजरी ध्वंस से अपराधियों को बचाने का प्रयास किया गया है। जबाब में पुलिस के जिम्मेदार अधिकारियों का बयान आया कि बुलडोजरी कार्रवाई के पहले विडियोग्राफी करके सारे साक्ष्य सुरक्षित कर दिये गये थे। के पिता ने भी रिसोर्ट तोड़े जाने पर सवाल उठाया कहा क्यों तोड़ा गया। किन्तु हर कोई जानता है कि अपराध के घटना स्थल पर अपने अपने ढंग से पूरे देश में फोरंसिक साक्ष्य जुटाये जाते हैं। मान लीजिये पहले कहीं स्थानीय पुलिस ने साक्ष्य जुटाये। फिर उसी जगह एस आई टी केस की जिम्मेदारी पाने पर अपने ढंग से साक्ष्य जुटाने जाती है। उसके बाद यदि मामला सी बी आई को दिया जाये तो फिर घटनास्थल पर सी बी आई अपने ढंग से साक्ष्य जुटायेगी। पोस्ट मार्टम की ही बात लें क्या दुबारा किसी दूसरे डाक्टर दल व्दारा पोस्ट मार्टम किये जाने पर केस के हल के लिये क्या कभी नये प्रमाण नहीं मिलते हैं।
इस बीच मैंने सेवानिवृत डी जी पी उत्तराखंड ए बी लाल का एक साक्षात्कार अंकिता हत्या काण्ड के संदर्भ में पढ़ा है। साक्षत्कार में उनका कहना था कि गददे चादर आदि पर रिसोर्ट में बाहर व भीतर कई साक्ष्य मिल सकते थे जिनका आग तोड़ फोड़ आदि में नष्ट होने की संभावना है। श्री लाल का यह भी कहना था कि आग अपराधियों के व्दारा सबूतों को मिटाने के लिये प्रेरित रही हो इसकी भी तो आशंका है। पता तो चलना ही चाहिये कि बुलडोजर चलाने का आदेश किसने दिये। डी जी पी रहे लाल रूड़की विश्वविद्यालय में मेरे विद्यार्थी भी रहें हैं।
अंकिता हत्या काण्ड से जुड़े रिजौर्ट का मामला उत्तराखंड में भूकानून व जमीन खरीद को लचीला बनाने के मामले से भी जुड़ा है। इसके लिये पिछले छ सालों की सरकारें व सत्तारूढ़ दल तो दोषी हैं ही। उत्तराखंड के आन्दोलनकारी इस मामले में भी जीरो टोलरेन्स का रूख अपनाये हुये हैं। कई पूंजिपतियों ने इससे किसी काम के लिये ली गई जमीन को किसी और जगह लगाने खरीद बेचने का काम भी सरकारी संलिप्तता से किया है। वनांत्रा रिजार्ट के अवैद्य स्थापना में भी यही खेल हुआ है।
जहां तक बुलडोजर चलाने की बात है पेपर लीक काण्ड के मुख्य आरोपी हाकम सिंह रावत की हवेली अथवा राजस्व भूमि पर अवैद्य कब्जा करके बनाये गये जखोल मोरी क्षेत्र में रिसोर्ट पर 25 सितम्बर को बूलडोजर चलाने की छवि सुधार प्लांटेड खबर लेख लिखे जाने तक तो जमीन पर नहीं उतरी थी।
निस्संदेह विधान सभा भर्तियों, आधीनस्थ आयेग के पेपर लीक व वनांत्रा रिजार्ट मामलों की जांचों में अधिकारी दोषी पाये जायेंगे। उन्हे सजा भी दी जायेगी। परन्तु पथप्रदर्शक स्वनाम धन्य केन्द्रीय नेता नितिन गडकरी की हाल की अभिव्यक्ति थी कि ब्यूरोक्रेट का काम मंत्रियों के आदेशों पर अमल करना है उन्हे केवल यस सर कहना है। हो सकता है उत्तराखंड में भी ऐसा होता रहा हो। उन्हे ऐसा राज्य के मंत्रियों या आरोपित विभिन्न विभाग के अधिकारियों के संदर्भ में नहीं हुआ होगा इसका आधार क्या हैं।
मंत्रियों व राजनेताओं से बचाने की कोई कोशिश नहीं है इसका प्रमाण तब ज्यादा पुष्ट होगा यदि भर्ती भ्रस्टाचार या शराब काण्डों के मौतों की जांच करती एस आई टीज को अकूत धनराशि के लेन देन की ट्रेल पकड़ते हुये भूतपूर्व या वर्तमान पदासीन माननीयों तक पहुंचने का उद्यम करे। उदाहरणार्थ जिन जिन विभागों में भर्ती घोटाला हुआ उन विभागों के मंत्री कैसे जिम्मेदारियों से मुक्त माने जा सकते हैं या उन पर संदेह की सूई क्यों नहीं जाती। मंत्रीमण्डल की तो सामूहिक जिम्मेदारी भी होती है। किसी भी सरकार में भ्रष्टों या उनके परिवारी या परिचितों को राज्य का अहित करने की ग्लानि हो या न हो वह अलग बात है। पर उनकी कलंक गाथा उनके साथ उनकी हर अवैधानिक सम्पदा पर चिपकी रहेगी जो उन्होने जोड़ी या छिपाई है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार व पर्वतीय चिन्तक हैं.