उभरता गायक – आत्म प्रकाश बमोला
अरुण कुकसाल
समाज को जैसा देखा और समझा उन्हीं भावों को गीतों के जरिेए सामाजिक संदेश बनाने के प्रयास में हूं।
लोगों ने मेरे काम को सराहा इस कारण और बेहतर करने की प्रेरणा हर समय रहती है। मुझे खुशी है कि हाल ही में गढ़वाली संगीत के लोकप्रिय ‘पाडंवाज क्रियेशन्स’ के लिए मैने स्वरचित गीतों को गाया है। मैं बेहद आशावान हूं कि मेरे इन गीतों को लोग पसंद करेंगे। मित्रों से मिली शुरूआती सराहना ने मेरे उत्साह को बढ़ाया है। आजकल मेरे गांव चामी में रामलीला चल रही है जिसमें मुझे ‘मर्यादा पुरुषोत्तम राम’ का रोल निभाने का सौभाग्य मिला है। मैं कोशिश करूंगा कि अपने व्यवहारिक जीवन में ‘भगवान राम’ के गुणों के कुछ अंश को आचरण में ला सकूं।
उक्त विचार गढ़वाली गीत, गायन और संगीत के क्षेत्र में एक विशिष्ट पहचान बनाने वाले सुदर्शन युवा ‘आत्म प्रकाश बमोला’ के हैं। विशिष्ट इसलिए कि ‘आत्म प्रकाश बमोला’ के गढवाली गीत लोक समाज और संगीत में फैली सरसरी फूहड़ता को दरकिनार करते हुए आम आदमी के आत्म चिंतन और चित्तवन का अहसास दिलाते हैं। महान गायक मुकेश के गाए गीतों की जैसी छटपटाहट इस युवा के गीतों में है। गढ़वाली में ‘नाज नखरे’, ‘माया कु जोगी’, हिंदी में ‘शिव भक्ति’ ओडिओ / वीडियो कैसट एवं सीडी गीत उनके अब तक प्रसारित / प्रर्दशित हो चुके हैं।
चामी गांव, पट्टी- असवालस्यूं, जनपद – पौड़ी गढ़वाल में 11 जुलाई 1981 को जन्मे आत्म प्रकाश बमोला की मांजी श्रीमती विद्यावती देवी और पिताजी श्री उमानंद बमोला गांव में रहते हैं। श्री उमानंद सरकारी सेवा में रहे। आत्म प्रकाश की प्राथमिक शिक्षा चामी में हुई। तत्पश्चात् हाईस्कूल (रमाडडांग), इंटर (बिलखेत) और बीएससी (जहरीखाल) की शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद दिल्ली में रहकर त्रिवर्षीय ‘आपरेशन थियेटर’ का कोर्स किया। वर्तमान में ‘गंगा राम हाॅस्पिटल, दिल्ली में वे सेवारत हैं। साथ ही गंर्धव महाविद्यालय, दिल्ली से शास्त्रीय संगीत का कोर्स कर रहे हैं।
कवि, गीतकार, गायक और संगीतकार आत्म प्रकाश बमोला जी ने अब तक 50 से अधिक गढ़वाली गीत लिखे और उनको गाया है। सामाजिक सरोकारों, विसंगतियों, विडम्बनाओं को उन्होंने अपने रचना कर्म का मूल आधार बनाया है।
बचपन से ही गीत – संगीत के दीवाने ‘आत्म प्रकाश बमोला’ गढ़वाली गायकी के नवीन हस्ताक्षर हैं। उनके गीत आज के युवाओं के अंर्तमन की अभिव्यक्ति है। तभी तो ‘आत्म प्रकाश बमोला’ गीत गढ़वाली युवाओ के अंधेरों में थिरकने को बेताब है। बस, समय का इंतजार है।
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