उत्तराखंड आंदोलन : लड़ाई अभी जारी है
डॉ. वंदना नौटियाल डबराल
साल 1994, उत्तराखंड आंदोलन के दौरान देश के बड़े प्रदेशों में शामिल उत्तर प्रदेश की शांत पहाड़ी वादियों में पहली बार कर्फ्यू लगा था बड़ी तादाद में खाकी वर्दी वालों से भरे ट्रक पहाड़ों की संकरी सड़कों पर संगीनें ताने घूम रहे थे, हम पहाड़ी बच्चों ने घरों की ओर बंदूक ताने हुए इतनी पुलिस पहली बार देखी, घबराहट इतनी थी कि कई कई दिनों तक घर की छतों पर नहीं निकले, खिड़कियों की ओट से जो दिखता था वह अभी तक जेहन को दहशत से भर देता है. युवकों, पत्रकारों, आंदोलनकारियों को तलाशती, घर से खींचकर लाठियां फटकारती और घसीट कर ले जाती पुलिस बहुत भयानक लगती थी, कर्फ्यू में ढील मिलते ही धड़कते दिल से दो-तीन घंटों के अंदर खाने पीने का सामान भरकर फिर घरों में कैद हो जाते.
2 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा में उत्तराखंड आंदोलनकारी महिलाओं के प्रति पुलिस की बर्बरता की घटना का घाव नासूर की तरह हर साल दुखता और रिसता है, पर शहीद हुए और बर्बरता का सामना करने वाले आंदोलनकारियों के सपनों का जब राज्य मिला तो लगता था अब शायद काफी कुछ ठीक हो जाएगा, पर जिस तरह अंकिता जैसी होनहार छात्रा को स्किल एजुकेशन लेने की उम्र में रिसोर्ट में नौकरी करनी पड़ी, कार्यस्थल पर मौत की हद तक उत्पीड़न झेलना पड़ा, शासन प्रशासन द्वारा उचित कानूनी कार्रवाई न करके कई दिनों तक दबाने का प्रयास किया गया, परिजनों को न्याय के लिए भटकना पड़ रहा है, साक्ष्य मिटाने का आपराधिक प्रयास चल रहा है , उससे सवाल उठता है कि क्या यही वह दिन था जिसके लिए राज्य आंदोलनकारी शहीद हुए थे? अपने आंगन में अंकिता जैसी कितनी है बेटियां लाशों में तब्दील हो रही हैं, नौकरियों में भ्रष्टाचार चरम पर है, गर्भवती स्त्रियां मेडिकल सुविधाओं के अभाव से दम तोड़ रही हैं, कई बच्चे गुम हो रहे हैं, रोज ही कुछ है जो निराशा से भर देता है.
सोशल मीडिया पर लगातार एक्टिव काबिल पत्रकारों और जनहित के लिए संघर्षरत अन्य लोगों के मामले को संज्ञान में लाने और त्वरित कार्रवाई के लिए दबाव बनाने के बाद जाकर शासन का नींद से जागना शर्मनाक है. आलम यह है कि राज्य के अंदर पिछले 2 सालों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 36 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है, केवल रेप के ही 30% मामले बढ़े हैं (राज्य पुलिस मुख्यालय) हिमालयी राज्यों में रेप केस में उत्तराखंड पहले नंबर पर है (एनसीआरबी 2020 रिपोर्ट) डायल 112 में रोज महिलाओं के प्रति अपराधों के 100 से ज्यादा शिकायतें आ रही है . सनद रहे राज्य की अर्थ की रीढ कही जाने वाली महिलाओं ने राज्य निर्माण के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था .
राज्य आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ शहीदों के नाम और चेहरे बदल रहे है. सत्ता का चरित्र वही है. अफसोस की बात तो यह है कि यह करने वाले और शह देने वाले कोई विदेशी नहीं है उत्तर प्रदेश का शासन प्रशासन नहीं है हमारे बीच के ही हैं. हम राज्य आंदोलन नई पीढ़ियों को हस्तांतरित कर रहे हैं, वह खत्म नहीं हुआ वह अब भी जारी है.