खिर्सू बोर्डिंग लग्यूँ च, निरपणि का डांडा
सुभाष चन्द्र थलेडी
गढ़वाल के पुराने इंटर कालेज में एक; राजकीय इंटर कालेज खिर्सू-गढ़वाल का इंटर सेक्शन का भवन। अब इस खूबसूरत भवन को आप देख नहीं पाएंगे क्योंकि इसको तोड़ दिया गया है और नया कॉलेज भवन कुछ हटकर बना दिया गया है। आज़ादी से पूर्व अंग्रेजों ने तीन जूनियर हाईस्कूल गढ़वाल में बनाए थे- कांसखेत, खिर्सू और नागनाथ पोखरी। इन तीनों विद्यालयों की भवन-शैली देखने लायक थी। साथ में छात्रावास भी थे। खिर्सू चलणस्यूँ, बछणस्यूँ, कण्डारस्यूँ, बाली कण्डारस्यूँ, ढैज्युली, कटूलस्यूं आदि पट्टियों का प्रमुख स्कूल था। थलीसैण तक के विद्यार्थी यहीं पढ़ते थे।
स्व. हेमवतीनंदन बहुगुणा भी कुछ समय यहां पढ़े। जब भी वे इधर भ्रमण पर आते तो अपना हॉस्टल का कमरा जरूर देखते और कुछ पैसे भी वहां रखते थे। अब वह छात्रावास भी टूट चुका है। सेव के बागीचों तथा आलू के लिए खिर्सू प्रसिद्ध था लेकिन अब सब खत्म हो चुका है। बांज-बुरांस और काफल के पेड़ों से लकदक जंगल है। बुवाखाल से खिर्सू जाते हुए बांज-बुरांस के पेड़ों का सुंदर जंगल देखने लायक है। गढ़वाल का स्विट्ज़रलैंड था खिर्सू, लेकिन बन नहीं सका।
खिर्सू में अंग्रेजों ने जब स्कूल बनाया था तो उस समय एक गढ़वाली गाना इस पर बना था जो अब लुप्त हो चुका है: “खिर्सू बोर्डिंग लग्यूँ च, निरपणि का डांडा’. यहां पानी की बहुत किल्लत थी। बहुत दूर से पानी नल द्वारा आता था जो जाड़े के दिनों में बर्फ से फट जाते थे। पानी की बेहद कमी मैंने भी यहां झेली, क्योंकि मैंने भी इंटर यहीं से किया था।
मुझे इस कॉलेज के आर्ट्स साइड में पहला प्रथम श्रेणी (1978) आने का गौरव प्राप्त है। उस जमाने में कला वर्ग से इण्टर में प्रथम श्रेणी में आना बहुत बड़ी चुनौती थी। इसकी खुशी मुझसे ज्यादा मेरे प्रधानाचार्य जी को हुई थी। मैंने ज़िंदगी में बर्फ गिरते हुए यहीं देखी थी। कितनी गज़ब की बर्फ होती थी। महीनों तक दिखाई देती थी। जनता पार्टी का चुनाव प्रचार करते हुए मैंने पहली बार स्व.चंद्र सिंह गढ़वाली को यहां देखा था।
प्रधानाचार्य श्री विष्णु दत्त लखेड़ा जी के नेतृत्व में भगवती प्रसाद मुलासी, बरदराज बहुगुणा, बलदेव प्रसाद भट्ट, डॉ. विष्णु दत्त कुकरेती, मदन सिंह नयाल आदि काबिल शिक्षकों का मार्गदर्शन यहां के छात्रों को मिला। हिमालय देखना हो तो खिर्सू आइए। यहां से पूरे हिमालय का दृश्य देखने को मिलता है, जो कि पौड़ी, मसूरी और कौसानी से भी अच्छा है।