November 21, 2024



पहाड़ों में मानव जनित आपदाएं

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जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’


दुनिया के कई देशों में जलवायु परिवर्तन को लेकर लगातार बहस जारी है. यूरोप के कई देशों के नागरिक गर्मी सह नहीं पाए और काल के ग्रास बन गए. यूरोप और कनाडा जो की बर्फीले इलाके है में तापमान 50 डिग्री के ऊपर पहुँच गया तो समझा जा सकता है की आने वाला समय कितना भयावह होने जा रहा है. जलवायु परिवर्तन के खतरे के निशाँन अपने पहाड़ तक भी पहुँच चुके है. बरसात के मौसम में धीमी लेकिन लगातार बारिश होती थी जिसे सगर कहते थे, अब धीमी बारिश समाप्त सी हो गयी है उसकी जगह एक ही स्थान या ख़ास इलाके में तेज व भारी वर्षा ने ले लिया है जो आपदा का कारण बन रहा है. अगस्त माह में बारिश ने काफी तबाही मचाई. अगर इसका विश्लेषण किया जाये तो नुकशान वही हुआ जहाँ लोगो ने गाड  गधेरों के किनारे अपने मकान या अन्य निर्माण कार्य किये. पर्वतीय इलाकों में भी तेज वर्षा ने काफी नुकशान पहुँचाया, दर्जनों सड़के बंद है. गांवों को जोड़ने वाले पुल टूट गए, खेत व रास्ते बह गए है, चारधाम सड़क मार्ग खतरे से खाली नहीं. गधेरो में जो मक डंपिंग की गयी है उसने जल प्रवाह रोक दिया है लिहाजा पानी सड़कों पर बह रहा है. जलवायु परिवर्तन की कहानी कभी न ख़त्म होने वाली बहस है अनुभव ये कहते हैं की आपदाए जादातर मानव जनित हैं. प्राकृतिक आपदाओं पर मानव का बस नहीं है.

सिलसिलेवार हिम शिखरों से आपदा की कहानियों को जानने का प्रयास करते है. २०१३ चोराबाड़ी – गाँधी सरोवर केदारनाथ की आपदा उच्च शिखरों में भारी बारिश से हिमखण्डों के पिघलने से एक सैलाब आया और तबाही मचाता चला गया. मौसम विभाग ने पूर्व में भारी बारिश की चेतावनी दे दी थी जिसकी अनदेखी की गयी. यह मानवीय चूक कितनी भारी पड़ी इसके सब गवाह है. वैज्ञानिक कहते है की ग्लेशियर के इलाकों में भारी भरकम आवाजों से ग्लेशियर टूटते है. केदारनाथ में हेलिकोप्टर सेवा की गडगडाहट से भी कही न कहीं ग्लेशियर टूटने का रिश्ता जुड़ा हुआ है. पैसे कमाने की अंधी होड़ में अभी भी सरकारें नहीं चैत रही हैं. अगर यही सिलसिला जारी रहा तो समझो अभी भी केदार में आपदा दुहरा सकती है. लगभग यही कहानी जोशीमठ के निकट ऋषि गंगा नदी की आपदा की भी है. जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा असर ग्लेशियर सिस्टम पर पड़ा है. हिमालय के ग्लेशियर लगातार बड़ते तापमान व मानवीय हस्तक्षेप से पिघलते जा रहे है.


सन 2000 में उत्तरकाशी की सामाजिक कार्यकर्ती शांति ठाकुर ने गौमुख व गंगा नदी की दुर्दशा देखकर हिमालय के ग्लेशियर, नदी तंत्र को बचाने की एक अनूठी पहल की. ग्लेशियर लेडी के नाम से विख्यात शांति ठाकुर ने जब देखा की हजारों की संख्या में कान्वडीये गौमुख ग्लेशियर के मुख तक पंहुच गए है, जो तमाम गन्दगी, कूड़ा कबाड़ गंगा के उदगम पर फैला रहे हैं तो उन्होंने गंगोत्री में धरना प्रदर्शन कर सिमित मात्रा में ही यात्रियों को गौमुख भेजने की बात उठाई. साथ ही गंगोत्री में एक चेक पोस्ट बनाने की भी बात की. लेकिन उस वक़्त उनकी बातों पर प्रशासन ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी. लेकिन यह मुद्दा तब तक अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं, पर्यावरण प्रेमियों तक पहुँच चूका था. इसी दौरान इस कॉलम के लेखक जेपी ने “हिमालय पर आपदा” नामक विर्तिचित्र का निर्माण कर इस अभियान को अपना योगदान दिया. शांति ठाकुर चुप नहीं बैठी गंगोत्री के बाद उत्तरकाशी के मणिकर्णिका घाट व दिल्ही के जंतर मंतर में धरना प्रदर्शन किया. आखिरकार सन 2007 में एक जनहित याचिका धूलिया जी के माध्यम से नैनीताल हाई कोर्ट में लगायी जिसका परिणाम रहा कि, गंगोत्री से आगे एक दिन में 150 लोगो को ही जाने की अनुमति, घोड़े खचरों, होटल, ढाबों, लंगरों, डी जे आदि पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया. गौमुख ग्लेशियर को बचाने की पहल के अनेक सिपाही है डॉ. हर्षवन्ति बिष्ट ने भोज बनों को बचाने के लिये भोजवासा में नर्सरी लगाने की अनोखी पहल की. शांति ठाकुर की ग्लेशियर व हिमनदियों को बचाने के अभियान को बड़े पैमाने पर फैलाये जाने की आज शख्त जरुरत महसूस हो रही है. खासकर चारधामों व ग्लेशियर तंत्र के आसपास के तीर्थ स्थल व पर्यटन स्थलों में सीमित रूप से मानव प्रवास हो जिससे केदारनाथ की घटना न दुहरा पाए.


Photo – Sunil Navprabhaat

दरअसल हिमालय क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं के अनेक स्वरूप देखने में आये हैं. भूकंप, बादल फटना, बाढ़, बनों में आग आदि जिन पर मानव का कट्रोल नहीं है. इसीलिए इसका एक मात्र हल है की प्रकृति के अनुसार जीवन जीने की शैली विकशित की जाये, हमारे पूर्वजों ने इसीलिए अपनी अनोखी, सरल व प्रकृति अनुरूप जीवन शैली अपनाई व वर्षों से वे इस भूभाग में अपना जीवन यापन करते रहे.

आज उत्तराखंड सहित अधिकांश हिमालयी राज्यों के हालात यह है की हर शहर गांव भारी भरकम भवनों के बोझ को झेल रहा है. ये एक नयी आपदा का मसाला तैयार है. उत्तरकाशी के मोरी विकास खंड के नैटवार बाजार धंसकर धनुष बन गया है लेकिन लोग हटने को तैयार नहीं उस पर भारी भरकम भवनों का निर्माण जारी है. रुद्रप्रयाग के गुप्तकाशी बाजार व चमोली के जोशीमठ की स्थिति भी यही है. न सिर्फ शहरों बल्कि सैकड़ों गांवों की भी कमोवेश यही स्थिति है. पहाड़ों से नीचे उतरकर शिवालिक की लघु पहाड़िया, मैदान, पहाड़ों से उतरकर आने वाली नदियों के मुहाने पर बने आवास व निर्माण कार्य आपदाए झेल रहे है, गौला नदी हो या रिस्पना या रायपुर का इलाका परिणाम सब दिख रहा है. लेकिन फिर अगले साल इन्ही इलाकों में फिर बस्तिया बसी नज़र आएँगी.