दुनिया में सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली पुस्तक
श्याम सिंह रावत
क्या आप जानते हैं कि बाइबिल के बाद गैर-कथात्मक श्रेणी में दुनिया की सबसे व्यापक रूप से पढ़ी जाने वाली पुस्तक कौन-सी है? वह है—ऐनी फ्रैंक की डायरी (The Diary Of A Young Girl : Anne Frank)! जिसे 70 भाषाओं में अनुवाद कर करोड़ों लोगों ने पढ़ा है।
इसे लिखने वाली ऐनी फ्रैंक नाम की एक किशोर यहूदी छात्रा और उसके परिवार को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी कब्जे वाले नीदरलैंड में छिपने के लिए मजबूर करने के बाद गिरफ्तार कर हिटलर के यातना शिविर में भेज दिया गया था। उसका पूरा नाम एनालीज मैरी फ्रैंक था। भारत में आज जिस तरह सत्ताधारी वर्ग द्वारा मुसलमानों के विरुद्ध घृणा और हिंसात्मक वातावरण बनाकर प्रताड़ित किया जा रहा है इससे भी ज्यादा बुरा हाल नाज़ियों के शासनकाल में यहूदियों का था।
उस दौर में जर्मनी में करीब 60 लाख यहूदियों को भूखा रखकर, हाड़तोड़ मेहनत करवाकर और गैस चैंबरों में बंदकर मार डाला गया था। सैनिक उन्हें ढूंढ-ढूंढकर यातना शिविरों में ले जाकर मार देते थे। जबकि डेढ़ करोड़ से अधिक यहूदी मुश्किलों के बीच रहने को मजबूर हुए थे। उसी दौरान एनी को भी अपने परिवार के साथ जर्मनी से भागकर नीदरलैंड में एक गुप्त जगह पर छिपकर रहना पड़ा था।
12 जून, 1929 में फ्रैंकफर्ट (जर्मनी) के एक धनी परिवार में जन्मी एनी के पिता पहले विश्व युद्ध में जर्मन सेना में लेफ्टिनेंट थे और बाद में व्यापारी बन गए थे। नाज़ियों की ‘जर्मनी जर्मनों का है जो यहूदियों के कारण बर्बाद हो गया है’ वाली घृणास्पद विचारधारा की वजह से एडॉल्फ हिटलर ने उनको मरवाना शुरू कर दिया था। उसने अपने एसएस के स्वयंसेवकों से कहा कि जहां भी ये लोग मिलें, इन्हें मार डालो।
यहूदियों के प्रति घनघोर नफ़रत के चलते उन्हें यातना देकर सामूहिक रूप से मार डालने को मार्च 1933 में पहला यातना शिविर भी खोला गया। तभी एनालीज मैरी फ्रैंक का सशंकित परिवार 1933 की गर्मियों में साढ़े चार साल की इस नन्हीं-सी बच्ची को साथ लेकर नीदरलैंड आ गया। फिर हिटलर के अहंकार और सनक के कारण सितंबर 1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया। हिटलर द्वारा पोलैंड पर हमला करने से भड़के ब्रिटेन और फ्रांस ने उसके खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। मई 1940 आते-आते जर्मनी ने नीदरलैंड, फ्रांस और बेल्जियम पर आक्रमण किया।
इसी दौरान एनी को 12 जून, 1942 को उसके 13वें जन्मदिन पर एक डायरी उपहार में मिली। इसके बाद एनी की तीन साल बड़ी बहन मार्गो को नाजियों के लेबर कैंप में आने के लिए 5 जुलाइ, 1942 को समन मिला। जिसके बाद भयभीत फ्रैंक परिवार को छिपकर रहने का फैसला लेना पड़ा। हिटलर के आतंक से मुक्ति की चाह में जर्मनी से भागकर नीदरलैंड में छिपकर रहना भी इनके लिए सुरक्षित नहीं रहा। तभी एनी डायरी लिखना शुरू करती है और उस मासूम बच्ची ने अपनी डायरी का नाम ‘किट्टी’ रखा था। वह इसमें अपने मुक्त विचारों के साथ-साथ उस गुप्त जगह पर होने वाली हर एक घटना के बारे में लिखती रही।
एनी ने इस डायरी में स्कूल की पढ़ाई से लेकर अपने मन की बातों तक के बारे में लिखा। उसने डायरी में यह भी लिखा कि कैसे वह सूरज की रोशनी देखने और खुले आसमान के नीचे खड़े रहने के लिए भी तरस जाती थी, बढ़ती उम्र में कैसे उसके कपड़े छोटे हो रहे थे और वह नए कपड़े नहीं खरीद पा रही थी। कभी अमीरी में शानशौकत भरी जिंदगी जीने वाले इन सभी लोगों को भूखा तक रहना पड़ा था। ऐनी की डायरी में पहली टिप्पणी 12 जून, 1942 की है और अंतिम 1 अगस्त, 1944 की; क्योंकि 4 अगस्त को ये सभी लोग गिरफ्तार कर यातना शिविरों में भेज दिए गए थे।
इन सभी को पहले ऑश्वित्ज यातना शिविर में रखा गया और फिर यहां सभी स्त्री-पुरुषों को अलग-अलग कर दिया गया। कुछ को बर्जन-बेलस्न यातना शिविर भेजा गया, जबकि अन्य को ऑश्वित्ज में ही रखा गया। वहां काफी गंदगी रहती थी, न तो ठीक से खाने को कुछ मिलता और न ही ठंड से बचने के लिए कुछ होता था। यहां सबसे खूब मेहनत करवाई जाती थी और अगर कोई सांस लेने के लिए भी दो पल रुक जाए तो सीधे गोली मार दी जाती थी।
12 अप्रैल, 1945 को ब्रिटिश सैनिकों द्वारा बर्जन-बेल्सन शिविर आजाद कराने से पहले ही एनी और उसकी बहन मार्गो की मौत हो गई। फिर 8 मई, 1945 को जर्मनी ने आत्मसमर्पण कर दिया। नाज़ियों की यातनाओं से किसी तरह छूट गये एनी के पिता ऑटो फ्रैंक ने सभी लोगों को काफी ढूंढा लेकिन वे अकेले ही जिंदा बचे थे।
कभी ऑटो फ्रैंक की कंपनी में कर्मचारी रही और यदाकदा उनके लिए राशन, त्योहारों और जन्मदिन के अवसर पर कपड़े तथा जरूरत की अन्य चीजें लाकर देने वाली मीप गीज ने ऑटो फ्रैंक को एनी की डायरी और नोट्स दिये जो उसे जर्मन सैनिकों द्वारा सबको ले जाने के बाद उनके गुप्त आवास पर गिरी हुई मिली थी।
एनी के पिता ने उस डायरी का पहला डच संस्करण ‘द सीक्रेट एनेक्स : डायरी लेटर्स फ्रॉम जून 12, 1942 टू 1 अगस्त, 1944’ के नाम से छपवाया। बाद में यह 70 से ज्यादा भाषाओं में ‘द डायरी ऑफ अ यंग गर्ल एनी फ्रैंक’ के नाम से प्रकाशित हुई। नाज़ियों द्वारा किये गये अमानवीय कृत्यों के लिए उन पर चलाये गये न्यूरेमबर्ग ट्रायल में एनी की यह डायरी भी सबूत के तौर पर पेश की गई थी।
आज एनी के नाम से जरूरतमंदों की मदद करने वाला एक ट्रस्ट है और एनी का घर म्यूजियम बना दिया गया है। उसे यहूदियों के साथ हुए अत्याचार की ऐसी पीड़िता के तौर पर याद किया जाता है जिसने अपने शब्दों से लोगों को जिंदगी जीना सिखाया। भारतीय स्कूलों में भी इसी डायरी के कुछ पृष्ठ पढ़ाए जाते हैं जिसे नाज़ियों के सत्ताधारी चेले पाठ्यक्रम से हटाना शायद भूल गए हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. #एकदा_जंबूद्वीपे