November 23, 2024



उत्तराखंड राज्य परिदृश्य

Spread the love

वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली


सौ दिन पर हुई थी सौ बातें, परन्तु इन्हे तो आत्म विश्लेषण का क्षण होना था आत्म मुग्धता का नहीं।


तब यह भी कहा गया था कि उन्हे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य सरकार से यह कहा हुआ है कि अब यह क्रम टूटना चाहिए कि एक पांच साल कांग्रेस शासन करे व एक पांच साल भाजपा। वैसे भी देश को उन्माद की फसल काटते हुए 2019 व 2022 के चुनावी मोड में डाला जा रहा है। इसलिण् मुख्यमंत्री कह रहें हैं कि वे अगले दो आम विधान सभा चुनावों में भाजपा के जीत को पक्का करने के लिए काम कर रहें हैं। परन्तु यह सब कुछ जनता पर निर्भर करता है और कुछ सत्तारूढ़ दल की आन्तरिक राजनीति पर। पहले तो यह क्रम टॅटने की आशा बनानी चाहिए कि भाजपा ने किसी भी मुख्य मंत्री को अपने वैधानिक कार्यकाल तक अपनी ही अन्दरूनी राजनीति के चलते काम करने नहीं दिया। स्व नित्यानंद स्वामी, निशंक, खण्डूड़ी से हुआ व्यवहार यही बताता है। चूंकि 2019 में लोक सभा चुनाव होने हैं, इसलिए भी चुनाव के पहले व चुनाव के बाद विभिन्न कारणों से तथा कांग्रेस से भाजपा में आये नेताओं की लोक सभा चुनावों में लडने की इच्छा के कारण तब तक बहुत कुछ ऐसा देश के संदर्भों से भी ऐसा हो सकता है कि राज्य में पुनः आन्दोलनकारी व राष्ट्रीय दलों से इत्तर शक्तियां जनता के उस आक्रोस से ताकत पा जायें जो राज्य में शराब व खनन कारोबारियों को पहले से मजबूत स्थिति में आ जाने से चिन्तित है। जिन महिलाओं के आन्दोलन से उत्तराखंड मिला उन्ही महिलाओं पर इसलिए मुकदमा चल रहा है कि चूंकि वो शराब की दुकानों का बस्तियों में खुलने का विरोध कर रहें हैं। अति तो तब हो गई है जब एक प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र में यह छपता है कि राज्य के एक मंत्री एक कार्यशाला में यह कहते हैं कि शराब बिकने से जो राजस्व मिलेगा, उसे महिला विकास व महिला कल्याण पर खर्च किया जायेगा। यही नहीं जिस तरह से गांवों की अस्मिता खत्म की जा रही है केवल राजनैतिक लालसा के लिए वह भी चिन्ता जनक है। जगह – जगह राजधानी देहरादून के पास भी ग्राम पंचायतें अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए लड़ रहीं हैं, उनको कुचला जा रहा हैं। सरकार की यदि यही नीति जारी रही तो आक्रोश बढ़ेगा ।


अब सरकारी जनता के बीच अखबारों में छप छुकी उपलब्धियों पर तो जरा नजर डाल लें। आज सरकारी स्कूलों का बन्द होना जारी है। सरकार का स्वयं स्वास्थ्य सेवाओं की जिम्मेदारी से हाथ खिंचना जारी है। अन्तराल में भी साम्प्रदायिक रंग लिए आन्दोलन का होना शुरू हो गया है भले ही वो छिटपुट रहे हों। यदि किसानों की आत्महत्याओं को इसलिए कानूनी आत्महत्या न होने की यह दलील दी जा रही है कि किसी भी मामले में सुसाइड नोट नहीं था तो भी दुर्भाग्य पूर्ण मौतों का होना था ही। बढ़ते किडनैप बलात्कार बेखौफ चोरियां राजधानी में ही उनका होना स्प्ष्ट करता है कि कानून और प्रशासन की स्थितियो पर सरकार की पकड़ ऐसी नहीं हैं जो भविष्य के प्रति चिन्ता न पैदा करती हों। जगह – जगह सेक्स रैकेट बड़े स्तर पर पकड़े जा रहें हैं। इनमें राजनैतिक पदाधिकारियों के भी तार जुड़े देखे गये। जगह – जगह देह व्यापार के हाईप्रोफाइल केस भी राज्य के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। मानव तस्करी खासकर महिलाओं व बच्चों का राज्य मुख्य राह बन गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर का किडनी काण्ड का राज्य फलता – फूलता स्थल था। अंतरराज्यीय स्तर की व्यापक ए टी एम से फर्जी निकासी का रिकार्ड भी यहां बना। नकली दवाइयों का बनना और यहां से अन्य राज्यों को खेप जाना अपराधिक संलिप्तता की ओर इशारा करती हैं।अन्य राज्यों की सतर्कता से ऐसे मामले सामने आ पाये।

फिलहाल यदि राजनैतिक चश्में से न देखें तो कहीं ऐसा नहीं लगता है कि नई सरकार के आने से अपराधी तत्वों में कोई खौफ बैठा हो। खनन माफिया की सक्रियता पर लगातार मातृसदन के स्वामी मुख्यमंत्री तक को कठघरे पर खड़ा कर चुके हैं। एक बार तो उन्होने अपनी हत्या कर साजिश का भी आरोप लगा दिया था। रहा ब्यूरोक्रेसी में कोई बदलाव की तो वह भी नहीं लगता है छुटभैया से लेकर बढ़भैया मंत्री तक अपना ऐसा रोना रो चुके हैं कि अधिकारी सुनते नहीं हैं। समाचार पत्रों की सहेजी कतरनों म उपरोक्त जो कुछ उल्लेख किया गया है वो सब देखा जा सकता हैं। किंतु अब यह सब चाीजें जनता को नगर निकायों व 2019 में सबक सिखाने के लिए भी सहेजना है। राज्य में आर्थिक कुशासन की स्थिति यह है कि राज्य के सालाना आय का केवल 15 प्रतिशत ही काम के लिए बचा रह जाता है व 85 प्रतिशत ओवर हेड खर्चे में जाता है। नतीजा होता है 108 सेवाओं के पहिये थम जाते हैं ओर गर्भवतियां या जान गंवा देती हैं या पुल, सड़क पर बच्चा जनने को मजबूर होती हैं। शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत प्राइवेट स्कूलों में भर्ती हजारों बच्चों की फीस उन प्राइवेट स्कूलों मे नहीं पहुंचती है। बाकी जो भी हो किन्तु इससे उन बच्चों के आत्म सम्मान पर कितनी चोट पहुंचती है क्या कभी राज्य सरकार ने ये सोचा है।


अन्त में दो महत्वपूर्ण बातें जो हम सभी पर असर डालती हैं। एक तो है उ प्र से परिसम्पति आबंटन में निराशा जिनके संदर्भ में पहले तक तो यह सन्तोष रहता था कि चलो अभी ये लम्बित हैं और अभी इन पर बातचीत चल रही है, किन्तु जिनके बारे में मुहर लगकर अब पता चल गया है कि हमारे न्यायिक हितों का हनन हो चुका है। यह सब डबल इंजन के साथ तीसरे अपने ही मेल खते इंजन से जुड़ने के बाद हुआ। पर चुप्पी बरकरार है। जैसा कुछ हुआ ही न हो। अभी 2 मई 2017 को हिमाचल विधान सभा चुनावों की एक रैली को सम्बोधित करते हुए प्रधान मंत्री मोदी ने उस राज्य में जिन पांच सक्रिय माफियाओं  – वन माफिया, टेण्डर माफिया, तबादला माफिया, ड्रग माफिया, खनन माफिया का नाम गिनाया उतना उनके दल व्दारा शासित राज्य में सक्रिय तो हैं ही किन्तु उसके अलावा मानव तस्करी में सक्रिय माफिया व देह व्यापार माफिया व नौकरी का व कालेजों स्कूलों में अपात्रों को भर्ती दिलाने वाला माफिया भी सक्रिय है। इसलिए राज्य में सरकारी नौकरियों में, मेडिकल कालेजों में मुन्ना भाइयों की खेप की खेप पाई गई है। एक चिन्तनीय नया आयाम जो जुड़ रहा है वो है यह क्षेत्र कुख्यात सुपारीबाजों व आतंकवादियों का भी शरणस्थली बनता जा रहा है। देर सबेर समाज से इन अतियों से निपटने के लिए 2022 व 2019 से पहले सामाजिक पहल की जरूरत है। क्योंकि 2019 व 2022 में तो हर राज्य सुधार का कदम चाहे वह लोकायुक्त का हो या गैरसैण राजधानी का हो राजनैतिक नजरिये से देखा जाना लगेगा। वैसे आजकल भी सरकारें जब गंभीर अपराधों के भी केस वापस लेती है, उसमें भी राजनीति रहती है यह किसी से छुपा नहीं है।

लेख़क वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिन्तक हैं