November 21, 2024



राज्य आन्दोलन का बर्थडे

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रमेश पाण्डेय 


जब उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन निर्णायक दौर की ओर अग्रसर हो रहा था


तब सबसे जरूरी चिन्तन और निर्णय राज्य के भविष्य पर केन्द्रित होना चाहिये था पर तब एक वर्ग ने बहुत चालाकी से आन्दोलन को क्षेत्रीयता से बाहर निकालने के लिये अपना किताबी ज्ञान कुछ ऐसे उगला कि पूरा आन्दोलन ही आसानी से स्थापित दलों ने हाईजेक कर लिया। जब बहुत सोच समझ के साथ माफिया युक्त राजनीति से राज्य को बचाना था तब चुनाव के बहिस्कार का माहौल बना कर पूरी सत्ता ही क्षेत्रीयता से छीन ली गई और वो लोग सत्ता पर काबिज हो गये जिनका लक्ष राज्य निर्माण मुख्य मन्त्री मन्त्री विधायक दर्जा बटोरने पर केन्द्रित था राज्य के भविष्य का कोई खाखा उनके पास था ही नही। उत्तराखण्ड राज्य के संघर्ष में पहाड़ी राज्य ही था पर जब राज्य बना तब आवादी के हिसाब से यह राज्य पहाड़ी नही वरन देशी राज्य बना दिया गया। यह खेल जब खेला गया तब तक आन्दोलन काफी हद तक बिखर गया था तथा उत्तराखण्ड क्रान्तिदल ने सबसे अधिक महत्वपूर्ण चुनाव का बहिस्कार कर अपनी विश्वसनीयता पर ग्रहण लगा लिया था। कांग्रेस जानती थी कि भले ही वह राज्य आन्दोलन और पृथक राज्य की पक्षधर नही है पर मजबूत विकल्प वही है। 


राज्य बनने के बहुत पहले से ही स्थापित समाचारपत्र क्षेत्रीयता को भटकाने और बिखराने का खेल सुरू कर चुके थे वे अपने मकसद में इतने अधिक सफल हुए कि उत्तराखण्ड क्रान्ति दल जैसा क्षेत्रीय संगठन भाजपा कांग्रेस की पैलागी की श्रेणी में जा पहुंचा और तब तक रहा जबतक वह पूरी तरह मटियामेट नही हो गया। इस एक मात्र संगठन के बिखरने और स्वयं आत्महत्या करने से भाजपा कांग्रेस ही बांछें खिलनी ही थीं। राज्य आन्दोलन के ठीक बाद राज्य आन्दोनकारियों के चिह्नीकरण का जो धिनोंना खेल सुरू किया गया उस खेल ने पहाड़ की आन्दोन की छमता को खतम करने में वह भूतिका निभाई जो भाजपा कांग्रेस चाहते थे।

राज्य बनने के बाद से एक प्रचार बहुत सलीके से यह किया गया कि हमें हिमांचल की तर्ज पर आगे बढ़ना चाहिये। इस प्रचार के तोड़ के लिये किसीने भी एक सवाल नही उठाया कि आंखिर हिमान्चल राज्य का गठन किन लोगों ने किस हालात में और क्यों करवाया था उस राज्य के बनने में जन आन्दोलन की भूमिका क्या थी। हिमान्चल का राग अलापने के पीछे मकसद ही क्षेत्रीयता को खतम करना था कि हिमान्चल में कभी भी क्षेत्रीयता हावी ही नही हो सकी थी। जिस राज्य की भाषा (डोगरी) पर ही अन्य भाष का कब्जा हो चुका हो उस राज्य से हमें क्या सीख मिलेगी समझ से परे था और है। हर साल की तरह इस साल भी सरकारी तन्त्र राज्य का स्थापना दिवस मनाने की तैयारी कर रहा है। आम लोगों को ऐसे उत्सव तनाने में कोई रुची अगर नही है तो कारण साफ और सपाट है कि आम जन राज्य के नाम पर अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहा है।