खतलिंग यात्रा – समापन
व्योमेश जुगरान
खतलिंग में हम उस पर्वत की गोद में थे जो गंगी से ही लगातार हमें लुभा रहा था।
खतलिंग के इंद्रमणि
चौखंभा जैसे इस पर्वत का नाम कोई नहीं बता सका, लिहाजा मेरे मन में एक नाम कौंधा- इंद्रमणि। अब यह हमारी बातों में इसी नाम से शुमार हो गया। एक तो यह सचमुच किसी मणि से कम चमकदार नहीं। खासकर सूर्यास्त के वक्त यह एकदम स्वर्णिम हो जाता है। दूसरे, यह हमें स्वप्नद्रष्टा श्री इंद्रमणि बडोनी की याद दिला रहा था जिन्होंने खतलिंग को उत्तराखंड के पांचवें धाम का दरजा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वर्ष 1983 में खतलिंग महायात्रा की परम्परा प्रारंभ की थी। बडोनीजी तत्कालीन कमिश्नर गढ़वाल श्री सुरेंद्र सिंह पांगती को भी अपने साथ लाए और दोनों उस शुरुआती दौर में हर साल खतलिंग महायात्रा में शरीक होते रहे। उनके साथ ग्रामीणों का मेला उमड़ पड़ता। आसपास के ग्राम्य देवी-देवताओं की डोले-हिंडोले भी साथ चल पड़ते। बताते हैं कि सितम्बर 83 की पहली यात्रा में बडोनी के साथ 3200 लोग थे।
खतलिंग को स्थानीय लोग पांडवों के हिमालय गमन से जोड़कर देखते हैं। कहा जाता है कि शिवदर्शन के आकांक्षी अर्जुन ने इस मनोरम स्थल पर कठिन तप किया। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए। अर्जुन ने विधिवत उनकी पूजा की और वहीं एक शिवलिंग भी स्थापित किया। चूंकि अर्जुन का एक नाम खाती भी है, इसीलिए उनके द्वारा स्थापित शिवलिंग को खतलिंग कहा गया। बडोनी जी द्वारा प्रारंभ परंपरा सन् 90 तक आते-आते थम गई। पर पिछले कुछ सालों से इसी क्षेत्र के निवासी और पर्वतीय लोक विकास समिति, दिल्ली के संयोजक श्री सूर्यप्रकाश सेमवाल खतलिंग महायात्रा के पुनर्जीवन की दिशा में सक्रिय हैं। उनके इस अभियान में वीर सिंह राणा, शिवसिंह रौथाण और चन्द्र कंडारी जैसे कई स्थानीय युवा कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। ये सभी लोग हमारे खतलिंग अभियान में साथ थे।
भाई सेमवाल का मानना है कि खतलिंग को पांचवां धाम घोषित करने से इस क्षेत्र में पर्यटन और रोजगार की संभावना बलवती होगी। पिछले साल उनका दल इस क्षेत्र को पर्यटन मानचित्र पर लाने की मांग के मद्देनजर तब के मुख्यमंत्री हरीश रावत से मिला था। इस मुलाकात के परिणामस्वरूप राज्य पर्यटन निदेशालय ने खतलिंग ट्रैक को वर्ष 2017 के लिए ‘ट्रैक आफ द ईयर’ घोषित किया था। मगर बाद में यह सुविधा अल्मोड़ा के किसी अन्य ट्रैक के हवाले हो गई।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में यात्राओं की प्राचीन परंपरा रही है। इसे धार्मिक-सांस्कृतिक थाती के रूप में अपनाकर हमारे पूर्वजों ने इसमें अनुशासन को सर्वोपरि माना था ताकि यहां के पर्यावरण से अनावश्यक छेड़छाड़ रोकी जा सके। इन यात्राओं का एक उद्देश्य हिमालय में हो रहे उन परिवर्तनों का पता लगाना भी था जिनसे हम अनजान बने रहते हैं और जिनका सम्बंध हमारे अस्तित्व से है। खतलिंग महायात्रा के बडोनी जी के स्वप्न और स्थानीय युवाओं की जिजीविषा को हम इसी रूप में देख सकते हैं। इति…