खतलिंग यात्रा – 2
व्योमेश जुगरान
गंगी से सुबह जल्द चले। अगला पड़ाव खरसोली यहां से करीब 10 किमी के फासले पर है। यह सारा ट्रैक जंगल सफारी के लुत्फ से भरपूर है।
खतलिंग की ओर
कठिन चढ़ाई के बाद उतराई की राहत और बीच – बीच में सीधा रास्ता आधिक नहीं थकने देता। कई नटखट गधेरे जरूर पार करने पड़ते हैं। इसके लिए गंगी के चरवाहों ने पेड़ के तनों से कामचलाऊ पुल बना रखे हैं। भिलंगना कभी काफी करीब तो कभी खासी दूरी बना लेती है। पर, उसका संगीतमय सहचर्य हरदम है। रास्ते में गंगी की ही एक अस्थायी बसासत ड्योखरी है। नीचे की बसासतों में घास कटाई चल रही है, वहीं ड्योखरी में छिटपुट भेड़पालकों का डेरा है। काफी आगे चलकर भिलंगना के किनारे विरोद नामक जगह है। यहां भी कभी गंगी की बसासत थी। भिलंगना की बाढ़ / कटाव में सबकुछ नेस्तनाबूद हो गया। बताते हैं कि यह तिब्बत से व्यापार का केन्द्र था। इसके अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं। खरसोली पहुंचते-पहुंचते रात हो गई। यहां घने जंगल के बीच देवी जगदम्बिका का मंदिर है। पास ही रात बिताने के लिए पत्थरों से बना एक कच्चा कमरा है जिसे हमारे स्थानीय दोस्तों ने धर्मशाला कहा। पत्थर और लकड़ी के चूल्हे पर दाल भात बना। भोजन से पूर्व मंदिर में आराधना हुई। जंगली जानवरों को आगाह करने के लिए घंटे घड़ियाल बजाए गए, शंख ध्वनि फूंकी गई। भोजनोपरांत अपने-अपने स्लिपिंग बैग में घुसकर कुछ साथी खर्राटे भरने लगे और मेरे जैसे कुछ ‘धर्मशाला’ के मुक्ताकाश से पूनम का चटक चांद निहारते रहे।
खतलिंग में
खरसोली से हमें अगले पड़ाव ताम्रकुंड पहुंचना था लेकिन हमारी लपाकें ज्यादा ही लांघ गईं। हम ताम्रकुंड को पार कर, रात होते-होते खतलिंग ओड्यार पहुंच गए। इस ओड्यार यानी गुफा में आठ दस जने आराम से पसर सकते हैं। और हम खिचड़ी खाकर पसर गए। यहां से खतलिंग महज चार किमी. के फासले पर है। सुबह अपना भारी सामान ओड्यार में ही ढक कर हम करीब 11 बजे खतलिंग पहुंच गए।भिलंगना नदी का यह उद् गम चारों ओर से खूबसूरत हिमानियों से घिरा है। पर ग्लेशियर का यह पूरा क्षेत्र भूगर्भीय हलचल से त्रस्त है। हिमस्खलन और गहरे कटाव के कारण नीचे तक लुढ़क आई विशालकाय चट्टानें आसानी से आगे नहीं बढ़ने देतीं। रास्ता हर बार अपनी स्थिति बदल देता है।
ग्लेशियर के इर्दगिर्द भूस्खलन की डरावनी दरारें भावी संकट की ओर इशारा करती हैं। साफ लगता है कि खतलिंग हिमनद कभी बहुत नीचे तक पसरा रहा होगा। लेकिन भूगर्भीय हलचलों और मौसमी करवटों ने इसे पीछे ठेल डाला है। इतना पीछे कि अब विस्तार की कोई गुंजाइश नहीं बची। ग्लेशियर नजदीक से नीला और एक हद तक काला सा नजर आता है।
धूप है तो आप यहां सिर्फ टीशर्ट में भी रह सकते हैं। हिमालय में ट्रैकिंग के अपने अनुभवों में यह पहली बार था जब इतनी ऊंचाई पर पूरे सप्ताह कोई बारिश नहीं हुई। यह हमारी यात्रा के अनुकूल बेशक हो, पर इन पर्वतों की सेहत के वास्ते ठीक नहीं है। चोटियों से नीचे उतरती ढलानों पर बर्फ कम है। सामने खतलिंग ग्लेशियर से पतली धार की तरह नीचे थोड़ा चौड़ा फाट बनाती भिलंगना खूब शोर मचा रही है। मानो चिन्तित हो कि उसका वैभव रहेगा भी कि नहीं !
पाठकों की टिप्पणी
सूर्यप्रकाश सेमवाल
अविस्मर्णीय सहयात्रा भाई साहब…आपकी उपस्थिति ने हमारे नवयुवाओं को प्रेरित करने का काम किया. पिछले 30 वर्ष से छेड़े इस अभियान को आपकी उपस्थिति ने निश्चित रूप से साकार किया.
लेख़क की प्रतिक्रिया
असल प्रेरणा स्वप्नद्रष्टा श्री इन्द्रमणि की है जिन्होंने इस महायात्रा की कल्पना की, नींव रखी।