डॉ. दीवान नगरकोटी – सामाजिक सरोकारों का साथी
डॉ. चंद्रशेखर तिवारी
सामाजिक सरोकारों से सरोकार रखने वाले मित्र डॉ. दीवान नगरकोटी नहीं रहे। सुबह सबेरे ही आज लखनऊ से मित्र मोहन उपाध्याय ने दिल उदास करने वाली खबर दी कि दीवान नगरकोटी नहीं रहे।मित्रों से मिली जानकारी के आधार पर वे पिछले 4 -5 माहों से कैंसर की असाध्य बीमारी से चुपचाप जूझ रहे थे। उन्होंने अपने इस कष्ट को घर से बाहर लोगों में साझा भी नहीं किया।
डॉ.दीवान नगरकोटी 1980 के दशक में विश्वविद्यालय की पढ़ाई के दौरान से ही पत्रकारिता से जुड़ गए थे। उस दौरान स्थानीय समाचार में अपनी लेखनी से उन्होंने पहाड़ के सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेख लिखे। अल्मोड़ा में प्रखर आंदोलकारी व पत्रकार डॉ.शमशेर सिंह बिष्ट के सानिध्य में आकर उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी के साथ वन आंदोलन, नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन जैसे अन्य जनांदोलनों में सक्रिय रहे। उस दौरान वे सामाजिक कार्यकर्ता पीसी तिवारी के संपादन में अल्मोड़ा से निकलने वाले ‘जंगल के दावेदार’ से भी जुड़े रहे और बाद में राजीवलोचन साह के संपादकत्व में नैनीताल से छपने वाले पत्र ” नैनीताल समाचार” में भी वे आजन्म जुड़े रहे। डॉ.शेखर पाठक संपादित ‘पहाड़’ के कई अंको में उन्होंने पहाड़ की परम्परागत वन व्यवस्था, लठ्ठ पंचायत, परम्परागत जल प्रबन्ध, ईंधन, चारा पत्ती और महिलाओं के श्रम से जुड़े कई महत्वपूर्ण आलेख लिखे जो शोध की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं।
उत्तराखंड के परम्परागत जल प्रबन्ध और सामुदायिक सहभागिता शीर्षक पर उन्होंने अर्थशास्त्र विषय में पीएचडी की हुई है। इस बीच उनका पीएचडी थीसिश को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने का कार्य भी चल रहा था दुर्भाग्य से स्वास्थ्य खराब होने से उनका यह कार्य भी प्रभावित हो गया। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से उनकी बालकथा पर एक पुस्तक ‘चल तुमड़ी बाटै बाट’ प्रकाशित भी हुई। यह पुस्तक उत्तराखंड के परिवेश पर किशोरवय के बालकों के लिए लिखी गई है।
महत्वपूर्ण बात यह है नगरकोटी 1993-94 के दौरान उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित उत्तराखंड राज्य के लिए गठित मंत्रिमंडल समिति (कौशिक समिति) के संदर्भ में उसके अध्ययन व रिपोर्ट लेखन से भी जुड़े रहे। तत्कालीन पर्वतीय विकास सचिव डॉ. रघुनन्दन सिंह टोलिया और गिरि विकास अध्ययन संस्थान के निदेशक प्रो.बी के जोशी भी मुख्य रूप से उस समय इस समिति से जुड़े हुए थे। 1986 में गिरि विकास अध्ययन संस्थान, लखनऊ की एक शोधअध्ययन परियोजना में हम जिन पांच मित्रों की नियुक्ति एक – दो माह के समय अंतराल में हुई उनमें प्रदीप टम्टा, डॉ.अरुण कुकसाल, मैं (चंद्रशेखर तिवारी), मंगल सिंह के साथ दीवान नगरकोटी भी शामिल थे।
लखनऊ में रहते हुए वे पूर्व प्रशासनिकअधिकारी टी एन धर द्वारा संस्थापित ‘शेरपा’ संस्था में भी शोध कार्य से जुड़े रहे। 1994 के आसपास वे लखनऊ से पुनः अल्मोड़ा आ गए। यहां उन्होंने पूर्व कैबिनेट सचिव व पंजाब व पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रह चुके श्री बी डी पांडे जी के सार्थक पहल से स्थापित उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा केन्द्र से जुड़कर विद्यालयों और स्वैछिक संगठनों के लिए जमीनी स्तर पर पर्यावरणीय शिक्षा पर सार्थक कार्य किया।पर्यावरणीय कार्य के दौरान टीम के साथ उन्होंने पहाड़ के दुर्गम इलाकों में कई पैदल भ्रमण कर जमीनी स्तर के रचनात्मक कार्यक्रमों को अंजाम दिया।
2004 के आसपास वे पुनः पत्रकारिता में सक्रिय हो गए और आंशिक तौर पर राष्ट्रीय सहारा के साप्ताहिक पत्रिका तथा उसके बाद हिंदुस्तान समाचार पत्र से पूरी तरह जुड़ गए। इन दौरान उन्होंने स्थानीय परिवेश से सम्बद्ध समस्याओं को बेबाकी के साथ पत्र के माध्यम से उजागर करने का प्रयास किया। कुछ सालों तक हिंदुस्तान में काम करने के बाद वे ‘अजीम जी प्रेमजी फाउंडेशन ‘ के साथ प्राथमिक शिक्षा के कार्य से जुड़ गए। उनके विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर कई आलेख भी प्रकाशित हुए हैं।
पिछले दो -तीन साल पहले वहां से सेवा निवृत होकर पुनः अल्मोड़ा आने के बाद वे अपना समय स्वतंत्र लेखन, पत्रकारिता और समाज सेवा में लगाने लगे। कोरोना काल में उन्होंने बसौली, ताकुला, सतराली व अन्य आसपास के गांवों में सामाजिक कार्यकर्ता ईश्वर जोशी के साथ मिलकर उल्लेखनीय सामाजिक कार्य भी किया। इधर उनकी मंशा दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सहयोग से अल्मोड़ा में एक अच्छा पुस्तकालय चलाने की थी परन्तु दुर्भाग्य से उनकी प्रस्तावित योजना पूरी न हो पाई।
डॉ. दीवान नगरकोटी से अभी भविष्य की बहुत सी आशाएं थी, उन्हें बहुत कुछ करना था। पर यह हो न सका। सामाजिक सरोकारों से सतत सरोकार रखने वाला हमारा प्यारा हँसमुख मित्र और जिंदादिल, बेबाक बात करने वाला और मददगार इंसान चुपचाप चला गया। हम सबकी ओर से उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।