कार्यालय एंगुलर लीफ स्पॉट से संक्रमित हुई इनवेसिव खरपतवार प्रजाति भारतीय हिमालयी क्षेत्र में पहली बार दर्ज हुई रिपोर्ट
गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार कोसी-कटारमल, अल्मोड़ा, उत्तराखंड और राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली की वैज्ञानिक टीम ने एक संयुक्त शोध कार्य में भारतीय हिमालयी क्षेत्र की खरपतवार प्रजाति ऐग्रेटिनाएडेनोफोरा invasive species- Ageratina adenophora में कोणीय पत्ती स्पॉट pathogen, डोथिस्ट्रोमा की पहचान की है। यह भारतीय हिमालयी क्षेत्र से ऐग्रेटिनाएडेनोफोरा में कोणीय पत्ती स्थान की पहली रिपोर्ट है, जो की अभी तक भारत से रिपोर्ट नहीं की गई है। अनुसंधान दल का नेतृत्व गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान, अल्मोड़ा से डॉ इंद्राडी भट्ट और डॉ तरुण बेलवाल और राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, नई दिल्ली से डॉ सपना लांगयान और डॉ भरतराज मीणा कर रहे थे।
जून से अगस्त 2020 और 2021 तक पाण्डे खोला, अल्मोड़ा, उत्तराखंड, भारत में पश्चिमी हिमालय की तलहटी के एक नियमित सर्वेक्षण के दौरान अनुसंधान दल ने ऐग्रेटिनाएडेनोफोरा स्थानीय रूप से कालाबांसा के रूप में जाना जाता है के पौधों को कोणीय पत्ती स्पॉट लक्षणों के साथ देखा गया। रूपात्मक विशेषताओं रोगजनकता परीक्षण और जीनोमिक अनुक्रमण के आधार पर ऐग्रेटिनाएडेनोफोरा पर रोगज़नक़ पैदा करने वाले जीवाणु की पहचान डोथिस्ट्रोमापिनी स्टेन DpE01 के रूप में की गई और अनुक्रम जेन बैंक एसीसी नंबर ON384429 मैं जमा किया गया है। साथ ही टीम ने भ्रमण के दौरान कई अन्य हिमालयी क्षेत्रो में भी डोथिस्ट्रोमापिनी के संक्रमण लक्षणों को ऐग्रेटिनाएडेनोफोरा में देखा गया।
डोथिस्ट्रोमापिनी कई पौधों की प्रजातियों को संक्रमित करने के लिए दुनिया भर में दर्ज किया गया है हालांकि खरपतवार प्रजातियों ऐग्रेटिनाएडेनोफोरा पर यह पहली रिपोर्ट है। शोधकर्ताओं ने पाया कि डोथिस्ट्रोमापीनी के हमले के बाद खरपतवार प्रजाति के पत्ते का रंग हरे से पीले और फिर भूरे रंग में बदल गया, जिससे इसकी क्लोरोफिल सामग्री और प्रकाश संश्लेषण क्षमता खो गई, जिससे खरपतवार प्रजाति पौधों की प्रजातियों में नुकसान हुआ।
ऐग्रेटिनाएडेनोफोरा जिसे पहले यूपेटोरियमएडेनोफोरम के नाम से जाना जाता था,यह बहु तनेवाला नरम झाड़ी है जो ऊंचाई में 3 मीटर तक बढ़ती है। यह धीमी गति से बहने वाली धाराओं और जल भराव वाले क्षेत्रों, पर्वतीय वन, वन मार्जिन, निचले बांस क्षेत्र के साथ नम स्थितियों में पाया जाता है। यह मेक्सिको और मध्य अमेरिका की मूल प्रजाति है, लेकिन अब यह दुनिया के कई अन्य हिस्सों में हानिकारक विदेशी खरपतवार के रूप में फैल चुकी है और वहा के इकोसिस्टम को नुक्सान पंहुचा रही है। ऐग्रेटिनाएडेनोफोरा संभवत लगभग 1920-1925 के बीच एक बगीचे के पौधे के रूप में भारत में लाया गया था और उसके बाद अब देश के कई हिस्सों में मुख्यतः इंडियन हिमालयन रीजन में बहुतायत सांख्य में फैल गया। इस प्रजाति के इंडियन हिमालयन रीजन में 300-2900 मीटर एसएल तक फलने के प्रमाण मिले हैं और यह विशेष रूप से पूर्वी और पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में प्रमुख आक्रामक प्रजातियों में से एक बन गई है।
पिछले कई दशकों में इसने भारत के उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों विशेष रूप से पूर्वी और पश्चिमी हिमालय और पश्चिमी घाटों में खुले जंगलों वन वृक्षारोपण परती बंजरभूमि सड़कों और अन्य खुले क्षेत्रों पर सफलतापूर्वक फैलाओ किया है। यह खरपतवार प्रजाति गंभीर पारिस्थितिक प्रभावों औरआर्थिक नुकसान के साथ ऐशिया,ओशिनिया और अफ्रीका में सबसे अधिक समस्याग्रस्त आक्रामक विदेशी पौधों की प्रजातियों में से एक है। भारतीय हिमालयी क्षेत्र जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तरपूर्व राज्यो में यह आक्रामक खरपतवार प्रजाति प्रमुख आक्रामक खरपतवारों में से एक है जो पारिस्थितिकी तंत्र में अस्थिरता का मुख्य कारण बनता जा रहा है।
पिछले शोधकार्यो में स्वर्गीय डॉ रनबीर सिंह रावल, पूर्व निदेशक, पर्यावरण संस्थान के नेतृत्व में शोध दल ने इस आक्रामक खरपतवार प्रजाति का फैलाओ लगभाग 1500 मीटर एस एल पर सबसे ज्यादा पाया, जिसका प्रमुख कारण मानवीय हस्तक्षेप और अनुकूल जलवायु परिस्थितिया रही है. साथ ही ऊपरी हिमालयी क्षेत्र में इसकी लगातार बढ़ती प्रसार क्षमता और नकारात्मक प्रभाव जैसे की मूल समुदाय संरचना में गड़बड़ी मूल प्रजातियों की विविधता और बहुतायत को नुकसान प्रमुख रूप से देखा गया। विश्वभर में अन्य शोधकार्यो से भी इसके नकारात्मक प्रभाव की पुष्टि हुई हैं और साथ ही इसके द्वारा खाद्य फसलें और जानवर को नुक्सान जैसे रिपोर्ट भी सामने आई हैं।
यह भारतीय हिमालयी क्षेत्र भारत से ऐग्रेटिनाएडेनोफोरा खरपतवार प्रजाति में डोथिस्ट्रोमापिनी के संक्रमण की पहली रिपोर्ट है और निश्चित रूप से इसने रोगज़नक़ आक्रमण और भारतीय हिमालयी क्षेत्र में इस समस्याग्रस्त विदेशी खरपतवार प्रजातियों पर इसके प्रभाव पर अनेक नए शोधकार्यो को भविष्य के लिए खोला हैं। इस शोधदल के अन्य सदस्यों में गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान से डॉ रवि पाठक, डॉ आसीष पांडे और डॉ ललित गिरी और राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो से डॉ प्रदीप कुमार और डॉ जमील अख्तर शामिल हैं। शोध निष्कर्षों को वैज्ञानिक पत्रिका के साथ सूचित किया गया है।
गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान के निदेशक प्रोफेसर सुनील नौटियाल ने शोध दल को बधाई दी और कहा कि यह राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के सहयोग से संस्थान की महत्वपूर्ण खोजों में से एक है और इससे भारतीय हिमालयी क्षेत्र की जैवविविधता के संरक्षण के लिए रणनीति विकसित करने में मदद मिलेगी।