सांस्कृतिक दूत – बी. मोहन नेगी
व्योमेश जुगरान
सुबह-सुबह पौड़ी से भाई ललित मोहन कोठियाल से फोन पर मिली इस खबर पर क्या कहा जाए कि बी. मोहन नेगी नहीं रहे।
यकीन ही नहीं आ रहा। अभी कहां वक्त हुआ था उनके बिछुड़ जाने का ! महानुभाव सिर्फ 66 साल में चल दिए ! अभी सितम्बर में पौड़ी में उनके घर पर मुलाकात हुई थी। तबियत ढीली जरूर थी पर किसी असाध्य व्याधि जैसे लक्षण नहीं थे। वह आदतन बहुत खुलूस से मिले। अपना ताजा काम दिखाया और वह कमरा भी, जो अनेक अजायबी चीजों से सराबोर था। शायद यही चीजें उन्हें कला के प्रति समर्पण और तदनुसार अनेक रंगों में तैरने को प्रेरित करती थीं। अपनी कूची, कला, कलम और कविता के जरिये भाई वी. मोहन नेगी ने पिछले तीन दशकों से पहाड़ के सांस्कृतिक मिजाज को एकसूत्र में बांधा। यह उनका सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण काम था। वह एक तरह से उत्तराखंड के सांस्कृतिक दूत थे और इसी रूप में पहचाने जाएंगे। मंहगे स्टूडियोज की ललक तथा प्रचार व पुरस्कारों की दौड़ से हमेशा फुर्सत पाते रहे नेगीजी ने अपनी कर्मस्थली के लिए एक छोटे और शांत शहर पौड़ी को चुना। यहां वह अपने सीमित संसाधनों और सादी दिनचर्या के बीच अलग तरह से कला की अलख जगाते रहे। कद में छोटे मगर बहुत बड़े इनसान थे वह। उनकी फनकारी उन्हें कद्दावरी तक ले गई।
अपनी मुल्लई दाढ़ी और मिलने-मिलाने के एक जुदा अंदाज के धनी नेगीजी भारतीय डाकतार विभाग से सेवानिवृत्त हुए थे। कला और चित्रकारी का मोहपाश उन्हें हरदम बांधे रहता। तभी तो डाक टिकटों से बने कोलाज, लिफाफे, कला बिखेरते अंतरदेशीय पत्र और पोस्टकार्ड तक वह चिट्ठियों के जमाने में अपने परिचितों और यार दोस्तों को भेजते रहे। दूरदर्शन उन पर एक व़ृतचित्र भी बना चुका है। नेगीजी एक चित्रकार ही नहीं, कला और साहित्य से संबंधित आयोजनों के लिए हमेशा उपलब्ध और लालायिक जिज्ञासु भी थे। वैसे उनका अधिक फोकस कविता पोस्टरों पर था। उन्होंने विभिन्न कवियों-लेखकों की चुनिंदा रचनाओं पर एक से बढ़कर एक यादगार पोस्टर बनाए। उनके बनाए साढ़े तीन सौ से अधिक कविता पोस्टर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छप हो चुके हैं। दिल्ली, लखनऊ और मुंबई समेत कई जगह उनके कविता पोस्टरों की लगभग डेढ़ सौ प्रदर्शनियां लग चुकी हैं।
नेगीजी का एक बड़ा काम हिन्दी कविता के कीट्स कहे जाने वाले हिमवन्त के कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की रचनाओं को कविता पोस्टर के माध्यम से लोगों के बीच लाना भी था। चन्द्रकुंवर की कविताओं पर उनके 70-80 पोस्टर हैं। वैसे नेगीजी का असल कला सौष्ठव भोजपत्र पर देखा जा सकता है जिस पर वह सन 84 से ही काम करते रहे। भोजपत्र की यह विधा बेशक उन्हें समकालीन कलाकारों से अलग करती है, पर वह स्वयं स्वीकार करते थे कि कविता पोस्टर के माध्यम से वह अपनी कला को पहाड़ के एक बड़े सामाजिक सरोकार से जोड़ पाते हैं।
अलविदा नेगी जी ! आप हम सबके दिल में हमेशा बने रहेंगे। ईश्वर शांति दे। शत-शत नमन..। नेगीजी की यह तस्वीर इसी सितम्बर माह की है। इसमें उनकी कूची का वह कमाल भी देखा जा सकता है जो उन्होंने अपने घर के दरवाजों पर दिखाया है।