November 24, 2024



उत्तराखंडी फिल्मों का संक्षिप्त इतिहास

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भीष्म कुकरेती


सन 1880 में मूवी कैमरा का अन्वेषण हुआ और तभी से मूवी फिल्मो का प्रचलन भी शुरू हुआ. फ्रांस की लुमिरे कम्पनी ने १८९५ में प्रथम मूवी फिल्म प्रदर्शित की। फिल्मों ने प्रत्येक समाज की कला, साहित्य, धर्म, दर्शन, मनोविज्ञान, विज्ञान को प्रभावित किया. भारत में प्रथम मूक फिल्म दादा फाल्के कृत ‘राजा हरिश्चंद्र’ है तो प्रथम वाक् फिल्म ‘आलम आरा’ है. फिल्म बनाने में कई तकनीकों, रचनाधर्मिताओं व वित्तीय संसाधनों की संगठनात्मक जंक जोड़ की आवश्यकता ही नही पड़ती अपितु फिल्म निर्माताओं को सिनेमा प्रदर्शन के कई जटिल समस्याओं से भी जूझना पड़ता है। यही कारण है कि गढ़वाली- कुमाउनी जैसी फ़िल्में मूवी चित्रों की आने के बाद भी सौ साल तक नही आ पाई।

गढवाली-कुमाउनी जैसी भाषाओं की कुछ मूलभूत समस्याएं हैं -दर्शकों का एक जगह ना हो कर देस विदेशों में बिखरा होना, फिल्म निर्माण व्यय व फिल्म प्रदर्शन विक्री में जमीन आसमान का अन्तर। यह एक सास्त्व सत्य है कि गढ़वाली -कुमाउनी फिल्म निर्माता को फिल्म लाभ हेतु नही अपितु सामाजिक कार्य हेतु फिल्म बनानी पड़ती है। यंहा तक कि उत्तराखंडी ऐलबम निर्माता घाटे में रहते हैं और तथाकथित वितरक ही मुनाफ़ा कमाते हैं। फिर सरकारी वित्तीय सहायता का कोई ठोस प्रवाधान ना तो उत्तर प्रदेस में था ना ही कोई प्रेरणा दायक स्थानीय भाषाई फ़िल्म निर्माण नीति उत्तराखंड राज्य में है. यही कारण है कि मूवी के अन्वेषण के सौ साल बाद ही प्रथम उत्तराखंडी फिल्म गढ़वाली भाषाई फिल्म ‘जग्वाळ’ सन १९८३ में ही प्रदर्शित हो सकी। ५ मई १९८३ का दिन उत्तराखंड के लिए एक यादगार दिन है जिस दिन प्रथम उत्तराखंड फिल्म ‘जग्वाळ’ प्रदर्शित हुयी। प्रथम उत्तराखंडी फिल्म गढ़वाली भाषाई फिल्म ‘जग्वाळ’ निर्माण व प्रदर्शन का पूरा श्रेय गढवाली के नाट्य शिल्पी पाराशर गौड़ को जाता है.


गढ़वाली की दूसरी फिल्म बिन्देश नौडियाल की ‘कभी सुख कभी दुःख’ सन १९८५ में प्रदर्शित हुयी थी। यह फिल्म गढ़वाली चलचित्र इतिहास का एक काला अध्याय ही माना जायेगा। इस फिल्म में पहाड़ों मे डाकू घोड़ों में दौड़ना व भीभत्स हास्य दिखाया गया था। १९८६ साल उत्तराखंडी फिल्मो के लिए प्रोत्साही वर्ष रहा है। सन १९८६ में मुंबई के उद्यमी विशेश्वर नौटियाल द्वारा निर्मित, तरन तारण के निर्देशन में ‘घर जंवै’ फिलम बौण। यह फिल्म कई मायनों में एक सफल फिल्म मानी जाती है। सन १९८६ में शिव नारायण रावत निर्मित और तुलसी घिमरे निर्देशित गढ़वाली फिल्म ‘प्यारो रुमाल’ प्रदर्शित हुयी। इस साल जय देव शील निर्मित व चरण सिंह चौहान निर्देशित फिल्म ‘कौथिक’ दर्शकों को देखने मिली इसी वर्ष बद्री आशा फिल्म्स के बैनर के तहत सुरेन्द्र बिष्ट की निर्मित व निर्देशित गढ़वाली फिल्म ‘उदंकार’ प्रदर्शित हुयी। स्मरण रहे कि सुरेन्द्र सिंह बिष्ट ने कई गढवाली वीडियो ऐल्बम भी निर्मित किये.


उत्तराखंडी फिल्मों में सन १९ ८७ का अपना महत्व है इस साल कुमाउनी भाषा की प्रथम फिल्म जीवन बिष्ट निर्मित ‘मेघा आ’ प्रदर्शित हुयी। ‘मेघा आ’ का निर्देशन काका शर्मा का था।सन १ ९ ९ ० में किशन पटेल निर्मित सोनू पंवार दिग्दर्शित गढ़वाली फिल्म ‘रैबार’ प्रदर्शित हुयी। सन १ ९ ९२ में सीताराम भट्ट निर्मित ‘बंटवारो’ गढ़वाली फिल्म दर्शकों के सामने आयी। उर्मि नेगी द्वारा निर्मित और चरण सिंह चौहान निर्देशित गढ़वाली फिल्म ‘फ्यूंळी’ सन १९९३ में रिलीज हुयी। सन १९९६ में ग्वाल दम्पति ने चन्द्र ठाकुर के निर्देशन में ‘बेटी’ फिल्म निर्मित की। सन १९९७ में नरेंद्र गुसाईं व नरेंद्र खन्ना रचित फिल्म ‘चक्रचाळ’ फिल्म रिलीज हुयी थी। महावीर नेगी निर्देशित व सूर्य प्रकाश शर्मा निर्मित गढ़वाली फिल्म ‘ब्वारि ह्वाऊ त इनि ह्वाउ’ सन १९९८ में प्रदर्शित हुयी। महावीर नेगी निर्देशन में दूसरी फिल्म ‘सत मंगऴया भी बनी थी। रामी बौराणी की प्रसिद्ध कथा-कविता पर आधारित सावित्री रावत और सुशिल बब्बर निर्देशित गढ़वाली फिल्म ‘गढ़रामी बौराणी’ ने सन २००१ दर्शकों को लुभाया।

२००२ में अविनाश पोखरियाल द्वारा ‘किस्मत’ निर्मित-प्रदर्शित गढ़वाली फिल्म अपने समय की सबसे मंहगी फिल्म मानी जाती है। बलविंदर निर्मित गढ़वाली फिल्म ‘जीतू बगड्वाळ’ सन २००३ में रिलीज हुयी।उत्तराखंड आन्दोलन के रामपुर तिराहा काण्ड घटना पर आधारित बहु प्रचारित गढ़वाली फिल्म ‘तेरी सौं’ (२००३) के निर्माता अनिल जोशी है और निर्देशक अनुज जोशी। आर्श मलिक प्रोडक्सन ने ‘चल कखि दूर जौला’ गढ़वाली फिल्म २००३ में प्रदर्शित की। महेश्वरी फिल्म की ‘औंसी की रात’ गढ़वाली फिल्म २००४ में रिलीज हुयी। सन २००४ में उत्तरांचल फिल्म्स की प्रदर्शित गढ़वाली फिल्म ‘मेरी गंगा होली त मीमु आली’ मे नरेंद्र सिंह नेगी ने गीतकार ओर संगीतकार की भूमिका निभायी। सन २००४-२००५ में उत्तरा कम्युनिकेसन के बैनर तले मुकेश धष्माना की गढ़वाली फिल्म ‘मेरी प्यारी बोइ’ प्रदर्शित हुइ।


हिंदी फिल्म की डब की गयी गढ़वाली फिल्म ‘छोटी ब्वारी’ सन २००४-२००५ में प्रदर्शित हुयी। कैलाश द्विवेदी निर्मित गढ़वाली फिल्म ‘किस्मत अपणी अपणी’ सन २००५ में दर्शकों को देखने मिली। सन २००५ में ही गढ़वाली फिल्म ‘संजोग’ अंकिता आर्ट के बैनर तले रिलीज हई।कमल मेहता निर्मित दूसरी कुमाउनी फिल्म ‘चेली’ सन २००६ में प्रदर्शित हुयी। सन .२००७ में कुली बेगार प्रथा पर आधारित सुदर्शन शाह निर्मित कुमाउनी फिल्म ‘मधुलि’ दर्शकों ने देखा। सन २००७ में ही भास्कर रावत निर्मित फिल्म ‘अपुण बिराण’ दर्शकों तक पंहुची। सन् २००८ में अजय शर्मा निर्मित अनिल बिष्ट निर्देशित ‘मेरो सुहाग’ फिल्म आइ। सन् २००८ में पाराशर गौड़ और कनाडा प्रवासी असवाल द्वारा निर्मित व श्रीस डोभाल द्वारा निर्देशित गढ़वाली फिल्म ‘गौरा’ प्रदर्शित हुयी।सन् २००९ में माधवानंद भट्ट निर्मित व राजेश जोशी निर्देशित प्रथम उत्तराखंडी फिल्म (कुमाउनी व गढ़वाली मिश्रित भाषा) रिलीज हुयी। यह फिल्म अब तक की सबसे मंहगी फिल्म है।

ब्रह्मानन्द छिमवाल, गोपाल उप्रेती व बद्री प्रसाद अन्थ्वाल द्वारा निर्मित व राजेन्द्र बिष्ट निर्देशित कुमाउनी फिल्म ‘याद तेरी ऐगे’ सन् २००९ में रिलीज हुयी। संतोष शाह निर्देशित व हीरा सिंह भाकुनी, वकुल रावत और खालिद द्वारा निर्मित कुमाउनी फिल्म ‘अभिमान’ सन् २००९ में प्रदर्शित की गयी। सन् २०१० में ‘अनुज निर्देशित गढ़वाली फिल्म ‘याद आली तेरी टीरी’ ने दर्शकों की प्रशंसा बटोरी सन् २०१२ में अनुज जोशी निर्देशित ‘मनस्वाग’ पर्यावरण व जंगली जानवरों की सुरक्षा पर उठानी वाली प्रशंशा योग्य फिम है। ‘तीन आंखर’ एक कुमाउनी हास्य फिल्म मानी जाती है फिल्म माध्यम अभिव्यक्ति हेतु एक अनूठा माध्यम है किन्तु धनाभाव व सरकारी अवहेलना के कारण फीचर फिल्म बनाना दुष्कर कार्य है।




डीवीडी माध्यम ने कुमाऊनी व गढवाली फिल्म निर्माण को एक नया आयाम दिया। डीवीडी माध्यम ने कुमाऊनी व गढवाली फिल्म निर्माण को को एक नई गति दी। असंगठित उद्यम होने के कारण हमें सम्पूर्ण जानकारी मिलना कठिन ही है किन्तु इधर उधर से जुटायी गयी सामग्री के अनुसार निम्न डीवीडी फिल्मों का उल्लेख आवश्यक है: गढ़वाली शोले प्रसिद्ध कालजयी फिल्म शोले की नकल है जिसके निर्माता अनिल जोशी हैं व निर्देशक अनुज जोशी। गंगोत्री फिल्म निर्मित ‘अब त खुलली रात’ (२०१०) के निर्देशक अनुज जोशी हैं। अनिल जोशी निर्मित ‘हंत्या’ (२००५) गढ़वाली फिल्म का निर्देशक अनुज जोशी है। स्वप्निल फिल्म व अनिल जोशी निर्मित ‘गट्टू’ गढवाली फिल्म का निर्देशन मदन डुकलाण ने किया। ‘क्या कन तब’ -कुलानद घनसाला रचित, अनुज जोशी निर्देशित नाटक की वीडियोकृत फिल्म सन् २००८ में रिलीज हुयी। अनुज जोशी निर्देशित ‘गुल्लू’ (२०१०) प्रथम उत्तराखंडी बाल फिल्म है। हिमालय आर्ट्स निर्मित ‘घन्ना गिरगिट अर यमराज’ (२०११ ) गढ़वाली हास्य फिल्म का निर्देशन अनुज जोशी ने किया।

हिमालय फिल्म्स निर्मित ‘कबि त होलि सुबेर’ गढवाली फिल्म को अनुज जोशी ने निर्देशित किया। हिमालय फिल्म्स की गढवाली फिल्म ‘गुन्दरू बन गया हीरो ‘ का निर्देशन अनुज जोशी द्वारा किया गया। गंगोत्री फिल्म निर्मित ‘अब त खुलली रात’ (२०१०) के निर्देशक अनुज जोशी हैं। हिमालय फिल्म्स प्रस्तुत ‘कमली’ (२०१२ ) का निर्देशन अनुज जोशी ने किया। हिमालय फिल्म निर्मित गढवाली फिल्म ‘काफळ’ (२०१२ ) का निर्देशन अनुज जोशी का है। प्रदीप भंडारी द्वारा निर्देशित निम्न फिल्म प्रकाश में आयीं हैं १- केका बाना २- आज दो अभी दो ३- जिया की लाडली महेश प्रकाश कृत गढ़वाली फ़िल्में इस प्रकार हैं १२- तेरु मेरु साथ 3- फ्यूंळी जवान ह्वे गे’ ४- तेरो मेरो साथ ५ मेरी प्यारी भौजी ६- प्रेम ७-अदालत ८-बौऴया भेजी ९- दुःख का कांडा सुख का फूल १० – परदेस ११ -ब्यखुनी झांझी १२ -एक माँ की जिकुडी हेमंत शर्मा का गढवाली फिल्मो के निर्माण व दिग्दर्शन में योगदान इस प्रकार है १ ब्यौ २- प्यार जीत गे ना! ३-दगड्या महेश भट ने निम्न गढवाली फ़िल्में बनाईं १- नंदा की पैलि जात २-डांड्यूं कांठ्यूं मा ३- हिमालय की धाद हरेन्द्र गुसाईं प्रस्तुत ‘नयी ब्योली फिल्म के निर्माता निर्देशक धीरज नेगी है ‘भाग्यवान बेटी’ फिल्म का प्रस्तुतीकरण चन्दन केस्सेट ने किया। जीवन रावत द्वारा निर्मित और राहुल बोरा निर्देशित फिल्म का नाम आश (कुमाउनी, २०१२ ) है। इनके अतिरिक्त निम्न वीडिओ फिल्मो की भी जानकारी मिली है:

कुटुंब (1985) – कैलाश द्विवेदी निर्मित नागेन्द्र बिष्ट द्वारा निर्देशित यह फिल्म गढ़वाली की पहली वीडिओ फिल्म है। कैलास द्विवेदी के अनुसार यह फिल्म भारत की पहली वीडिओ फिल्म है. भजराम हवलदार (ब्रिज रावत निर्देशित) बड़ी माँ, मंगतू बौळया, बली बेदना, माया जाल, छम घुंघरू, घन्ना चालबाज, कलजुगी, भगत भगवान, नन्दू की भौजी, उकाळ-उंधार, इकुलास, भगीरथी, माँ बाप, माँ त्वे बगैर, राजुला माली शाही, जैसी मती वैसी गति, आशतीन, आँखर, जंवै, धरती गढ़वाल की, नालायक, सिपाई जी, सिपाई की सौं, बेटी बिराणी, घन्ना भाई ऍम. बी. बी. एस, लाड प्यार, ब्वारी हो त इनि (निर्देशन -बी एस नेगी, १९९८), सतमंगऴया (महावीर नेगी, १९९९), भग्यानी बेटी (निर्देशन -सुभाष सजवाण, २००३), पतिव्रता रामी (निर्देशन संतोष खेतवाल, २०१०), तेरा खातिर (चेंनल माउंटेन प्रस्तुति -२०१३) खैरी का दिन – २०२२ निर्देशक – आशु चौहान, मां के आंसू (कुमाउनी) फिल्म है।

गढ़वाली एनिमेसन फ़िल्में, एनिमेसन मूविंग फिल्मों का इतिहास नया नही है, आधिकारिक तौर पर सन 1917 में बनी अर्जींटिनियाइ कुरेनी क्रिस्टिआणि निर्देशित फीचर फिल्म ‘अल पोस्टल’ प्रथम एनिमेटेड फिल्म है. जहाँ तक एनिमेटेड गढ़वाली फिल्मों का प्रश्न है इस पार ना के बराबर ही काम हुआ हैI गूगल सर्च से पता चलता है कि गढवाली की प्रथम एनिमेटेड फिल्म पंचायत (2013) है. यह चार मिनट की एनिमेटेड फिल्म है, ऐसा लगता है कि यह फिल्म या तो डब्ड फिल्म है या ऐसे ही बना दी गयी है. इसके पात्र अमिताभ बच्चन, शाहरुख़ खान, सलमान खान, सन्नी देवल आदि हिंदी के अभिनेता हैं और आवाज भी इन्ही जैसे है. वातावरण और मनुष्य भी मैदानी हैं. भाषा छोड़ कहीं से भी यह फिल्म गढ़वाली नही लगती है.

आधिकारिक तौर पर असली गढवाली वातावरण और संस्कृति वाली गढ़वाली एनिमेटेड फिल्म ‘एक था गढवाल’ (2013) है. एक था गढवाल’ दो मिनट की गढवाली फिल्म है और गाँव में पलायन की मार झेलती एक बूढी बोडी-काकी की कहानी है . फिल्म काव्यात्मक शैली या गीतेय शैली में बनाई गयी है. एनिमेटर या एनिमेसन रचनाकार भूपेन्द्र कठैत ने अपनी कल्पनाशक्ति और तकनीकी ज्ञान का परिचय इस फिल्म में दिया है. फिल्म अंत में एक कविता की कुछ पंक्तियों से खत्म होती हैं-

बांजी पुंगड़ी उजड्याँ कूड़

अपण परायुं को रन्त ना रैबार

ऊ माँ को झर झर सरीर

आर आंखुं मा आस

क्वी त आलो कभी

त होली इगास

संगीत व कला से गढवाल के बिम्ब बरबस दर्शक के मन में आ जाते हैं. अंत में गढवाल में रह रही महिला के प्रतीक्षारत आँखें आपको भी ढूंढती है और पूछती है कि आप कहाँ हैं क्यों नही इगास मनाने गाँव आते हो.

प्रस्तुतिकरण : भीष्म कुकरेती (यह लेख उत्तराखंडी फिल्मों के जनक श्री पाराशर गौड़ को समर्पित है) (साभार: मूल व सन्दर्भ – मदन डुकलाण, चन्द्रकांत नेगी, विपिन पंवार, एम. ऐस. मेहता व मेरा पहाड़.कॉम की टीम, हिलीवुड पत्रिका)