November 21, 2024



गैरसैण – लावारिस राजधानी

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महावीर सिंह जगवान 


हिन्दू धर्म मे एक सर्व स्वीकार्य मान्यता है स्वर्ग मे देवता रहते हैं वहाँ सभी प्रसन्नचित भोग विलास से मुक्त स्वछन्द वास करते हैं।


उत्तराखण्ड देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। राज तंत्र मे राजा ही देवता तुल्य होता था जहाँ उसका वास वहाँ राजधानी और जहाँ राजधानी वहाँ सम्मपन्नता। लोकतंत्र मे सत्ता की बागडोर प्रभुसत्ता और राज सत्ता से कतई कम नहीं। जहाँ इनका वास वहीं राजधानी और पूरे प्रदेश और देश के लोंगो का इन जगहों के लिये अगाध स्नैह। सत्ता का जो प्रसाद होता है उसका लोकतंत्र मे भी पहले वितरण राजधानी मे ही होता है और इसी प्रसाद की लालसा मे इनके वास के स्थलों पर भीड़ और वसासत बढती है। हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड गठन के समय से ही इस द्वन्ध और संसय का शिकार रहा है कि यहाँ के भाग्य विधाता दून की फिजाऔं मे रम जायें या विकट और दुरूह जिसकी परिणति राज्य बना उसके हृदय स्थल गैरसैंण को चुनें।लखनैय्या तरीके सलीके मे पले बढे राजनेताऔं ने दून की मैदानी संस्कृति मे ही रमना स्वीकार किया। न जाने इनके पेट मे कभी कभी दर्द होता है और ये सोचते हैं वाकई हमने तीन चौथाई हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड का भू भाग लावारिस छोड़ रखा कहीं ये झपट न पड़ें, इनकी वेदनायें और संयम का पहाड़ जबाव न दे तो, इलाज की जो पुड़िया इनके पास है वह है दबे बुझे मन से गैरसैंण विधान सभा सत्र। जिसका न तो सिर दिखता और नही पाँव पिछली बार तो यहाँ प्रभु जी भी आये थे अब सवाल पीयुस जी से कैसे करें।
एक सुधी मित्र हैं उनकी एक ही सिकायत है कहते हैं आप बार बार ध्यान उत्तराखण्डों के पर्वातांचल पर ही क्यों केन्द्रित करते है, मुख्य धारा मे आकर राष्ट्रीय परिदृष्य पर आपको चर्चा बढानी चाहिये। मेरा एक ही जबाब होता है मेरे जिन पूर्वजों ने इन हिम शिखरों और समृद्ध घाटियों पर जीवन विताया, रात दिन खून पशीना बहाकर इन हिम शैल पर्वतों पर प्रहरी का काम किया,पहाड़ी ढलानों पर छोटे छोटे खेत बनाये, एक विराट और शसक्त संस्कृति की नींव रखी, पीढियों से संजोई और संवर्धित लोक भाषा और लोक कला को उत्कर्ष तक पहुँचाया, यहाँ की पावन प्रकृति सम्मत जीवन जीने की कला विकसित की। सरकारें कितने ही बड़े दावे करे लेकिन उच्च हिमालय यानि टैम्प्रेट भू भाग से लेकर सब ट्राॅपिकल क्षेत्र मे घने वन सिकुड़ रहे हैं, जल स्रोंतो पर संकट है, खेत खलिहान बंजर हो रहे हैं, गाँव के गाँव खाली हो रहे हैं, चारों ओर भू स्खलन, स्कूलों मे भवन और छात्र हैं तो गुरूजी नहीं, अस्पताल हैं तो डाक्टर नहीं, सड़क और गाड़ियाँ हैं लेकिन समय पर पहुँचने हेतु ब्यवस्था नहीं, पढे लिखे युवा युवतियाँ हैं तो रोजगार नहीं, 1995 मे मेरे गाँव के छ: लोग परदेश मे थे आज साठ लोग रोजगार की तलाश मे छ: सौ से ढाई हजार किलोमीटर दूर हैं, विकास की बड़ी बड़ी बातें तो होती ही हैं, अपकी बार हमारे ईष्ट केदारनाथ जी मे दो बार आदरणीय प्रधानमंत्री जी भी आ गये, विकट और दुरूह पैदल यात्रा के समाधान की आश थी वो भी धुँधला गई, भब्य केदारपुरी बनेगी इसी आशा और विश्वास का संदेश मिला है, हम श्रृषिकेश कर्णप्रयाग, रामनगर गैरसैंण, टनकपुर बागेश्वर रेल लाइन की प्रतीक्षा मे हैं। ऑल वेदर के भय और सपने को भी देख रहे हैं, सुना है चाँद पर पहुँचने वाले देश के लोग गोल खाते से भूमि भवन स्वामी को छाँट नही पा रहे हैं। चिन्ता और डर इस बात की है कहीं धीरे धीरे नीतिनियन्ताऔं की अकुशलता के कारण यहाँ की स्वर्ग सदृश वादियाँ सभ्यता और मानव विहीन न हो जायें।


सरकारें पानी की तरह विकास के लिये रूपये बहाती है लेकिन विकास पहाड़ चढने को राजी नहीं। विकास आखिर अकेले पहाड़ कैसे चढे जब उसका नेता नहीं चढना चाहता, जब ब्योरोक्रेट्स नहीं चढना चाहता, जब दृढ इच्छा शक्ति का अभाव हो, कौशलता और विजन दूर दूर तक दिखता न हो, जबरदस्ती चढाये गये विकास मे कमीशन की मलाई इतनी मोटी खाई जाती है कि विकास समय से पहले ही हाँफने लगता है। सब कुछ कामचलाऊ मैनेज होगा तो सवाल के पहाड़ रूलायेंगे ही। आज नही तो गैरसैंण आना ही होगा, तीन चौथाई विकट भूक्षेत्र जिसकी बदौलत राज्य मिला उसे सँवरना ही होगा, सत्ता का केन्द्र गैरसैंण होगा तो यहाँ के नीति नियन्ताऔं की समझ हिमालय और हिमालयी लोगों के सर्वांगीण विकास लिये विकसित होगी। विधान सभा सत्र से काम नहीं चलेगा, यह तो ढाँढस देने वाली बात होगी, गैरसैंण राजनीति का केन्द्र तक तो ठीक है लेकिन फुटबाॅल की तरह इसे इस्तमाल कर आप यहाँ के सहज और मृदु मानव को चिढाने का ही काम करेंगे। सत्ता का केन्द्र उसकी राजधानी ही होती है यदि यह केन्द्र गैरसैंण होगा तो लोकतंत्र के देवताऔं का जमवाड़ा गैरसैंण मे ही होगा। इन देवताऔं की वजह से जरूरी सुविधाऔं का बहाव पहाड़ की ओर मुड़ेगा, यहाँ से नीति नियन्ता यहाँ की भौगोलिक परिस्थिति अनुरूप विकास की नई और शसक्त मशाल जल सकती है। यह पहल इन मनमोहक वादियों को रोजगार और स्वरोजगार के रूप मे विकास की मुख्यधारा मे लाकर शसक्त समृद्ध उत्तराखण्ड बनने का गौरव प्राप्त कर सकते हैं। भारत गाँवो का देश है, गाँव की सम्मपन्नता और समृद्धता मे उत्तराखण्ड नजीर बन सकती है। समय रहते लोकतंत्र के देवताऔं को जनमानस की आँकाक्षा और विकास की धुरी को गैरसैण मे केन्द्रित करने की पहल करनी चाहिये। भाजपा तैयार और काँग्रेश संसय मे और काँग्रेश तैयार भाजपा संसय मे, जब दोनो तैयार तो एक दिन के विधानसभा सत्र के विन्दु पर जिसका न आदि और नअंत, सब भगवान हैलीकाप्टर से आयेंगे और लाचार बेबस पहाड़ की खिल्ली उड़ाकर फुर्र से उड़ जायेंगे। पुन:दोनो हाथ जोड़कर विनती सत्ता के भगवानों से दरकते सिसकते हिमालय और हिमालयी जीवन का समाधान गैरसैंण के सिवाय् दूर दूर तक नही दिखता इस पर गम्भीरता बरतें।