प्रतापनगर – काला पानी की सजा कब पूरी होगी
जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
टिहरी झील के परली पार यानि प्रतापनगर विकासखंड को स्थानीय लोग कई दसकों तक काला पानी की सजा भुगतने वाला इलाका मानते रहे. बात में दम तो है जब टिहरी बांध नहीं बना था तब एक मात्र पुल भल्डियाना के नीचे भागीरथी नदी पर बना था जो इस इलाके में जाने का एकमात्र जरिया था. बाद में उत्तरकाशी से चौरंगिखाल होते हुए लंम्बगावं व अन्य इलाकों तक सड़क पंहुंची. भले ही आज यह बीहड़ इलाका कई सडकों व पुलों से जुड़ गया हो लेकिन यहाँ विकास के हालात आज भी काला पानी की सजा जैसे ही है. सेवानिवृत शिक्षक गणेश प्रसाद रतूड़ी बताते हैं की जब तक टिहरी बाँध का निर्माण कार्य चलता रहा तब तक हमारे गांवों के लोग सोये रहे व सोचते रहे की भला झील के पानी से भल्डियाना का ऊँचा पुल भी डूब सकता हैं इसकी कल्पना लोगों के मन में नहीं थी, नहीं किसी ने गांव वालो को बताने का कस्ट किया की झील का जीरो पॉइंट धरासू चिन्यलिसौड ४५ किलोमीटर तक होगा जो दर्जनों पुलों, गांवों, खेत खलिहानों, मठ मंदिरों को एक दिन अपने में समां देगा.
रतूड़ी कहते हैं की जब २९ नवम्बर २००५ को साम 5 बजे टिहरी बाँध के गेट बंद हुए तो बहुत जल्दी पानी भल्डियाना पुल तक पहुँच गया, अचानक लोगों की आवाजाही बंद हो गयी तो प्रतापनगर के धारमंडल, भदूरा पट्टी, रमोली, उपरी रमोली पट्टी, मदन नेगी, रजाखेत के दर्जनों गांवों के लोगों की आँख खुली पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. यहाँ के जनप्रतिनिधियों, ठेकेदार नेताओं को दूरदृष्टी दोष हो चूका था. उन्होंने यह कल्पना नहीं की कि यदि भल्डियाना का पुल नहीं रहेगा तो प्रतापनगर इलाके में जनता का आवागमन कैसे होगा यातायात की क्या ब्यवस्था होगी? रासन पानी, दैनिक उपयोग का सामान, भवन निर्माण सामग्री आदि कैसे पंहुचेगा आदि आदि? परिणाम यह रहा की प्रतापनगर तक सामान दुगुना तिगुना दूरी नापकर उत्तरकाशी होते हुए पंहुँचता रहा. जिसने लोगों को आर्थिक रूप से कमजोर कर डाला, समर्थ लोगों ने गांव से पलायन करना ही उचित समझा, शिक्षा, स्वास्थ से लेकर हर तरह काला पानी की सजा सिद्ध होती रही.
सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह रहा कि टिहरी बाँध के निर्माताओं ने भी इस पर विचार नहीं किया या जानभूझकर अनजाने बने रहे कि झील के परली पार के सेकड़ों गांवों के आवागमन की क्या ब्यवस्था होनी चाहिये? जिन्होंने सोचना था वो तो बांध निर्माण में यथा योग्य पारितोषिक पाते रहे व धन माया के जाल में फंसकर अंधे बने रहे. बांध निर्माण की कम्पनिया व प्रशासन भी यही तो चाहते रहे. खैर जब जनता परेशान होने लगी तो हो हल्ला मचना ही था. किसी तरह पिपल्डाली नामक स्थान पर आनन् फानन में एक मोटर पुल का निर्माण किया गया. जिस पर केवल हलके वाहन यानि, जीप, पिकअप ही आ जा सकते थे. बड़े ट्रक, बस के जाने लायक यह पुल आज भी नहीं है. लिहाजा बड़े ट्रक व बसों को उत्तरकाशी होकर ही प्रतापनगर पहुंचना पड़ता था. फिर एक बैकल्पिक सड़क चमियाला घनसाली से बनाया गया वह भी लम्बी दूरी वाला उपाय था.
टिहरी झील की चौडाई इतनी ज्यादा थी की बीच में कहीं पुल बनाने के आसार नहीं दिखाई पड रहे थे. काफी सर्वेक्षण के बाद डोबरा व चांटी गांवों के बीच की दूरी कम व उपयुक्त पायी गयी. बड़ी मशक्कत के बाद अब इस पुल बनने पर प्रतापनगर की जनता ने राहत की सांस ली लेकिन तब तक भागीरथी में पानी बहुत बह चूका था. अब तो चिन्यालीसौड़ में भी बड़ा पुल बन गया है.
भोगोलिक रूप से प्रतापनगर विकासखंड बड़ा बीहड़ व कठोर चट्टानों वाला इलाका है. पेयजल से त्रस्त यहाँ के गावों के लोग इंतज़ार कर रहे है की कब टिहरी झील का पानी इन गांवों तक पहुंचेगा. यहाँ एक मात्र जीवनदायिनी लघु सरिता जलकूर गाड है जिस पर नदी के आसपास के गावों के लोग खेती करते है. कृषि अधिकतर सूखी है. रमोली व प्रतापनगर के धारमंडल व रजाखेत इलाकों में थोड़ी बहुत अछि खेती दिख जाती है. सड़कों के बुरे हाल हैं. एक मात्र बड़ा अस्पताल लम्बगांवं में है. अब डिग्री कॉलेज भी खुल गया है.
इस इलाके के लोग बहुत मेहनतकस रहे हैं जिनकी ख्याति पुरे उत्तराखंड में थी. यहाँ के ठेकेदार व दुकानदार पुरे उत्तराखंड में छाये हुए थे. रैका रमोली पट्टी के लोगों ने पुरानी चारधाम सड़कों व पुलों का निर्माण अपने हाथों से किया था व कई सड़कों व राजकीय भवनों स्कूलों अस्पतालों के निर्माण में इस इलाके के लोगों का बड़ा योगदान रहा. यहाँ के मेहनती लोगों ने यात्रा मार्गों पर मिठाई व खाने के होटलों की एक लम्बी श्रीन्खला बनायी. ऋषिकेश देवप्रयाग के मध्य तोता घाटी के नाम से प्रसिद्ध सड़क इसी इलाके की भदूरा पट्टी के रोनिया गांवं के प्रसिद्ध ठेकेदार तोता सिंह रांगन ने बनायी थी. कीर्तिनगर के पुराने पुल का निर्माण सहित अनेक भवनों का निर्माण का श्रेय भी तोता सिंह जी के नाम हैं. उल्लेखनीय है कि टिहरी रियासत के अंतिम वर्षों में प्रजामंडल की सरकार में तोता सिंह जी के पोते स्वतंत्रता सेनानी खुशहाल सिंह रागंन पी. डब्लू. डी. मंत्री, स्वतंत्रता के बाद विधायक, ऍम. एल. सी. व श्रीनगर नगरपालिका के चेयरमैन रह चुके थे. उन्होंने लम्ब गांवं में सरस्वती इंटर कॉलेज की स्थापना की जिसके वे अपने जीवन काल तक प्रबंधक रहे, आज वह राजकीय संस्थान बन गया है.
इतिहास
१९१५ में गोरखों से निजात मिलने पर महाराजा सुदर्शन शाह ने टिहरी को नयी राजधानी बनाया. इन्ही के वंसज राजा प्रताप् साह ने टिहरी के ठीक सामने की चोटी पर अपने नाम से अपना छोटा सा नगर बसाया जिसे प्रतापनगर के नाम से जाना गया. यह उनकी ग्रीष्मकालीन राजधानी थी. यहाँ से पैदल लगभग 2 घंटे में पुरानी टिहरी पंहुंचा जा सकता था. यहाँ रनिवास, अधिकारीयों के निवास व महाराजा का कोर्ट बना हुआ है. लगभग २००० मीटर की ऊँचाई पर बसा प्रतापनगर बहुत ही सुन्दर व रमणीक स्थान है जो देवदार के वृक्षों से घिरा हुआ है. यहाँ पूर्व में सेब व फलों के सुन्दर बागान थे, यहाँ से हिमालय की भब्य चोटियों के दर्शन किये जा सकते हैं. सर्दियों में यहाँ खूब बर्फ गिरती है व सैलानी घुमने आते है. प्रतापनगर से टिहरी नाक के ठीक नीचे दिखती रही होगी अब यहाँ से टिहरी बांध स्थल व झील का सुन्दर दृश्य दीखता है. टिहरी जल क्रीडा स्थल के रूप में विकसित होने से अब प्रतापनगर से पैरागलायिडिंग भी होने लगी है.
प्रतापनगर से राजमहल की और जाते हुए सुन्दर बदरीनाथ का मंदिर बना हुआ है. पहाड़ की धार से दोनों और के नैसर्गिक दृश्य दिखते हैं. देवदार के पेड़ों के छाँव के बीच गुजरते हुए दिब्य अनुभूति होती है. फिर कुछ ऊँचाई पर अब नया विकासखंड कार्यालय बन गया है, इसी के बांयी ओर ऊँचे व रमणीक स्थान पर रनिवास या राजा का सुन्दर महल बना हुआ है जो खंडहर की हालात में है कुछ वर्षों पूर्व तक इसी महल में तहसील व विकाश्खंड के कार्यालय बने हुए थे, आज भी यहाँ पर कई विभागों के कार्यालय हैं. मुख्या भवन को देखकर इसके अतीत को जाना समझा जा सकता है.
प्रताप साह के राजमहल से नीचे की ओर एक बड़े मैदान के बीचों बीच भब्य भवन है जो राजा का कोर्ट व राज काज का स्थान था, यह भवन पूरी तरह यूरोपियन शैली का बना हुआ है. भवन के बीचों बीच एक विशाल हाल है जिसके मध्य में फायर प्लेस बने हुए हैं चारो तरह दीवारों में अलमारियां बनी हुए है, व हाल के चारों ओर छोटे छोटे कक्ष व शौचालय बने हुए थे. इस ऐतिहासिक ईमारत की दुर्दशा देखकर अपने राज्य के पुरोधाओं की रीति नीतियों पर गुस्सा आता है. यह हेरिटेज भवन गायों पशुओं की पर्यटक आवास स्थली बनी हुई है. अगर इस भवन की मामूली मरम्मत कर दी जाये तो तो यह राज्य को लाखों का राजस्व दे सकता है. माननीय मुख्य सेवक जी व माननीय पर्यटन मंत्री जी कभी अपना हेलिकोप्टर कुछ देर के लिये यहाँ उतारकर राज्य की बर्बाद होती विरासत का संज्ञान लें. मंसूरी, चंबा, न्यू टिहरी, टिहरी झील, सेम –मुखेम व प्रतापनगर इस सर्किट की अंतिम कड़ी है जो आपकी बाट जोह रहा है.