November 24, 2024



रालम से बुर्जी कांग दर्रे (15120 फीट) का ट्रैकिंग अभियान

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डा. महेंद्र सिंह मिराल


रालम ग्लेशियर का अध्यन करने के लिए 4 जून 2022 को मुंसियारी से प्रस्थान किया इस अभियान में रालम ग्लेशियर का अध्यन किया गया साथ मे रालम घाटी के अंतर्गत रालम, मरझाली एवम खन्योर गाव का सामाजिक आर्थिक, पर्यटन एवम पर्यावरण पहलुओ पर अध्यन किया गया। दल बुर्जी कोंग दर्रे (वर्तमान नाम बृज गंगा-15112 फीट) से रिल कोट 54 किलोमीटर आया। अभियान की कुल 85 किलोमीटर पैदल यात्रा पूर्ण की।

मुंस्यारी से ट्रैकिंग अभियान दल उप जिला मजिस्ट्रेट मुंसियारी से परमिट बनाकर रवाना हुआ। यात्रा प्रारंभ स्थानीय पातू गाँव – लिंगुरानी- किरथाम – मरझाली होता हुआ रालम गाँव पहूचा। जो ऐतिहासिक रूप से प्राचीन व्यापारिक स्थल रहा है यहाँ से सीपू (दारमा) एवं बुर्जी कांग (वर्तमांन नाम ब्रिज गंगा टॉप 15112 फीट) दर्रे को पार कर तिब्बत से व्यापार करने का मुख्य मार्ग था रालम से सीपू दर्रा, होते हुए दारमा चौदास, व्यास एवम को भी जोड़ता है। बुर्जी कोंग दर्रे से टोला बुरफू मिलम दुन्ग होते हुए टोपी ढूंगा, उटाधूरा, किंगरि मिंगरी, से तिब्बत एवम नीति माणा का भी बर्फ से लबालब व्यापारिक रास्ते थे।


जिसमे व्यापारी अपने लाओ लस्कर के साथ निर्भीक होकर चलते थे वर्तमांन में यहाँ पर रालम घाटी के स्थानीय आप्रवासियो के खेत एव्ं मकान है जिसमे ये लोग प्रति वर्ष गर्मियों मे अपने मवेशिओं एवम परिवार के साथ यहाँ आकर अपने खेतों में कृषि कार्य एवम स्थानीय वन उपजों को इकठ्ठा करते है। प्रति वर्ष छः माह इस गाँव मे रहते है। लेकिन राशन कार्ड से मिलने वाला समान इनको पातु से ही अपने घोडा, याक, खचर्, एवम जोबू आदि से ही लाना पड़ता है। जबकि यह समान इनके पास पहूच ने की व्यवस्था हो। इस इलाके के बुगियालो हजारो भेड़ों के झुंड दिखाई देते है इसके वाद दल के सदस्य डा. महेंद्र सिंह मिराल रालम ग्लेशियर पहूच कर ग्लेशियर की मॉनिटरिंग की गयी यह ग्लेशियर भी तेजी से पीछे की और खिसक रहा है।


रालम गाँव से खन्योर् होता हुआ बुर्जी कांग (ब्रिज गंगा) दर्रे को को पार करता हुआ भरमोट पड़ाव से रिलकोट गाँव पहूचा। यहाँ से बुगडियार पड़ाव से लीलम गाँव। यहाँ से मुंसियारी तक जीप से पहूचा। कुल मिलाकर यात्रा दो घाटियों रालम और जोहार के मिलम घटियों से गुजरी। इनमे रालम घाटी अत्यंत प्राकृतिक सौंदर्य एवम जैव विविधता से धनी है घाटी मे दोनो तरफ रालम नदी के दोनो तरफ छोटी छोटी सरिताएं एम झरने अत्यंत मनमोहक है। अभी भी प्राचीन काल के व्यपार के मार्ग के निशान और यात्री पड़ाव के निशान अभी भी मौजूद है। ये ट्रेल अपने आप मे आज भी अत्यंत आकर्षक है लेकिन इस इलाके मे पर्यटकों की आवाजाही नही के बराबर है। जबकि इस घाटी का विकास होने की अवश्यकता है।

मार्ग के विभिन्न स्थानों पर यात्रियों के आराम करने के शेड एवम विश्राम स्थल बनाये जाय। क्योकि पातू से रालम तक (36 किलोमीटर) कोइ आवास नही है और पातू से रालम गाँव के पैदल मार्ग को लोक निर्माण विभाग को दिया जाए जो टूटे मार्ग को ठीक करे एवम मार्ग मे आगे जाने के लिए बोर्ड मे दूरी एवम नक्शे बना कर यात्रियों की यात्रा को आसान किया जा सकता है। इस मार्ग को पर्यटन विभाग अपने अपने मानचित्र मे भी शामिल करे। सूर्य ऊर्जा द्वारा गाँव को रात्रि रोशनी की व्यवस्था होनी आवश्यक है। रालम् से बुर्जी कांग (15112 फीट) दर्रे को पार करने वाले साहसिक अभियानों मे तेजी लानी होगी। जो यहाँ के युवाओं के लिए लाभप्रद होगी। रालम ग्लेशियर के खिसकने की दर का वर्तमान मे विश्लेषण किया जा रहा है.