गांव के हालचाल
नंदकिशोर हटवाल
ये हमारे गांव की इकलौती और अंतिम बैल की जोड़ी है। एक का नाम है रिख्वा दूसरे का नाम है झल्या। इनके मालिक हैं श्री तुलसीराम जी। उम्र 80 साल। ये एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्होंने 4 खेत धान बोए है। हमारे गांव की अधिकांश जमीन खाली पड़ी है। झल्या और रिख्वा की उम्र 14-15 साल के आसपास है। लगभग प्रौड़ावस्था। ये चार-छै साल और जीवित रहेंगे और फिर अंतिम हो जाएंगे। इसी के साथ हमारे गांव के 4 धान के खेत भी अंतिम हो जाएंगे। झंगोरा और कोंणी के अंत हुए दशकों बीत गए। हमारे गांव में बीस-पच्चीस साल तक के युवा इनकी बालियों से अपरिचित है। दालों की किस्में, सब्जियों के प्रकार, केले का क्यलाण भी नहीं जानते। रिश्ते-नाते, गढ़वाली भाषा के ताकतबर और खूबसूरत शब्द, बगड्वाल-पंण्डों के गीत-नृत्य, कथा, किस्से कहानियां, बालगीत, खेलगीत, लोरियां कब कहां लापता हुई समझना मुश्किल है।
लेकिन हर अंत बुरा नहीं होता और न हर अंत भला। कुछ ‘अंत’ भयावह और दुखद होते हैं तो कुछ सुखद भी। कुछ अंत नुकसानदेह तो कुछ लाभप्रद। कुछ अंत भावानात्मक रूप से तकलीफदेह तो होते हैं पर समय के साथ गति बनाने के लिए जरूरी हो जाते हैं। कुछ अंत वस्तुतः अंत नहीं परिवर्तन होते हैं। कुछ अंत के साथ प्रारम्भ भी जुड़ा होता है, शुरूवात होती है। यह ‘अंत और प्रारम्भ’ मानव विकास और परिवर्तन की सतत् प्रक्रिया का हिस्सा भी होते हैं। इसी प्रकार के ‘अंत और प्रारम्भ’ के बीच खड़ा है हमारा गांव।
मोहन सिंह मिनी टैक्टर लाया है। इसे हम कृषि में तकनीकि और वैज्ञानिक चेतना के प्रारम्भ के रूप में भी देख सकते हैं। मोहन की गोशाला उन्नत नस्ल की गाय बछियों और बाड़े-सग्वाड़ों शाक-सब्जियों की नई उत्पादक किस्मों से आवाद हैं। मोहन सकारात्मक और नयी सोच के साथ व्यवसाय और नकदी फसलों के क्षेत्र में हाथ आजमाने को उत्साही हैं। गांव के बाड़े-सग्वाड़े, छुट-पुट दाल-वाल के खेत मोहन के मिनी टैक्टर से आबाद हो रहे हैं। मथुरा प्रसाद शास्त्री जी सामाजिक कार्यों के साथ कृषि बागवानी और फूलों के भी शौकीन हैं। उनके सग्वाड़े कई प्रकार की सब्जियों से भरे रहते हैं। आम, लीची, कीवी, आड़ू, संतरे, माल्टे, केले उनकी बगिया में हैं। भाई जगदीश प्रसाद जी भी सामाजिक गतिविधियों में संलग्न रहने के साथ पोली हाउस के माध्यम से सब्जी उत्पादन कर रहे हैं।