November 22, 2024



फूलों की घाटी, हेमकुण्ड-लोकपाल

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रमाकान्त बेंजवाल


30 मई, 2022 से हम (बीना बेंजवाल, श्री जे० पी० बेंजवाल, श्री यशवीर सिंह नेगी और मैं) हेमकुण्ड-लोकपाल एवं फूलों की घाटी की यात्रा पर थे। 31 मई को हम घांघरिया से हेमकुण्ड-लोकपाल गए। हेमकुंड-लोकपाल जाने के लिए जोशीमठ से 18 कि०मी० गोविंद घाट जाना पड़ता है। गोविन्द घाट में अपनी कार पार्क कर सकते हैं। यहाँ पर तीन दिन का पार्किंग का शुल्क ₹600 है। गोविन्द घाट से 4 कि०मी० पुलना तक मोटर मार्ग बन गया है। यहाँ पार्किंग की सुविधा नहीं है। सभी यात्री लोकल ट्रेकर्स से पुलना तक जाते हैं जिसका किराया ₹50 है। पुलना से 10 कि०मी० हल्की चढ़ाई का रास्ता तय करने के बाद हम घांघरिया पहुंचे। गोविन्द घाट से घांघरिया तक हेली सेवा भी है जिसका किराया ₹ 3000 के आसपास है। कोई घोड़े में जाना चाहे तो समिति वाले ₹ 1900 लेते हैं। पैदल का मजा ही अलग है। हेमकुंड-लोकपाल और फूलों की घाटी का पड़ाव घांघरिया ही है। तीन रात यहीं रहना पड़ता है। घांघरिया से 6 कि०मी० खड़ी चढ़ाई के बाद हेमकुंड-लोकपाल पहुँचते हैं।

हेमकुंड-लोकपाल


हिममंडित सात शिखरों के बीच 4329 मी० ऊँचाई पर स्थित हेमकुंड पवित्र एवं सुंदर सरोवर है। यहाँ पर सिक्खों का पवित्र स्थल हेमकुंड तथा हिंदुओं की आस्था से जुड़ा लक्ष्मण मंदिर लोकपाल है। यहाँ के संबंध में अनेक जनश्रुतियाँ प्रचलित हैं। माना जाता है कि लक्ष्मण ने भगवान राम की आज्ञा का उल्लंघन किया था। इस अपराध के प्रायश्चित स्वरूप उन्होंने इस सरोवर के किनारे तपस्या की थी। तभी से यहाँ का नाम लोकपाल (लक्ष्मण) पड़ा। दूसरी जनश्रुति यह है कि सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने पूर्वजन्म में यहाँ तपस्या की थी। गुरु गोविन्द सिंह के ‘विचित्र नाटक’ में वर्णित है-


अब मैं अपनी कथा बखानों, तप साधत जिहि विधि इह आनो।

हेमकुंड परबत है जहाँ, सप्त शृंग सोभित हैं तहाँ।


सिक्खों के पवित्र स्थल हेमकुंड के रूप में ढूंढ़ने का श्रेय हवलदार सोहन सिंह को है। सन् 1930 में सोहन सिंह को कहीं से पता लगा कि सप्त शृंगों से घिरा सरोवर पांडुकेश्वर नामक स्थान से दुर्गम पहाड़ियों से होते हुए यहाँ पर है। वह स्थानीय लोगों के साथ यहाँ तक पहुँचा तथा सर्वप्रथम सिक्खों के पवित्र स्थल के रूप में इस सरोवर के दर्शन किए। यहाँ पर लक्ष्मण का एक छोटा-सा मंदिर पहले से था। माना जाता है कि लक्ष्मण ने यहाँ तप किया तथा गुरु गोविंद सिंह ने भी पूर्व जन्म में यहीं पर तप किया था। यदि पूर्वजन्म होता तो निश्चय ही गुरु गोविंद सिंह लक्ष्मण के अवतार रहे होंगे। यही कारण है कि यहाँ सिक्खों का पवित्र स्थल हेमकुंड साहिब है तो हिंदुओं की आस्था का प्रतीक लोकपाल भी। एक ही आस्था के दो रूपों में प्रत्येक सिक्ख व हिंदू गुरुद्वारे में भी जाता है तो लक्ष्मण मंदिर में भी दर्शन करता है। लगभग 1 कि०मी० क्षेत्र पर फैला हेमकुंड सरोवर सात बर्फीली पहाड़ियों से घिरा अत्यंत मनमोहक लगता है। सरोवर के किनारे बने गुरुद्वारा तथा लक्ष्मण मंदिर नैसर्गिक सौंदर्य के बीच अध्यात्म भाव जगाते हैं। पहाड़ी ढलानों पर रंग-बिरंगे फूलों तथा ब्रह्म कमलों की शोभा देख यात्री ठगा-सा रह जाता है।

पवित्र सरोवर में स्नान के बाद परिक्रमा कर यात्री अमृत छकते हैं। यहाँ पर सिक्ख समुदाय द्वारा एक-एक गिलास चाय तथा हल्का प्रसाद प्रत्येक यात्री को मुफ्त दिया जाता है। हेमकुंड-लोकपाल में गुरुद्वारा प्रबंध समिति के ही दर्जनभर लोग रहते हैं। सभी यात्री रात्रि विश्राम के लिए पुनः वापस घांघरिया आते हैं। घांघरिया में बड़ा गुरुद्वारा है । अधिकांश यात्री घांघरिया में ही रहते हैं। खाना भी लंगर में खा सकते हैं। गुरुद्वारा के अलावा यहां गढ़वाल मण्डल विकास निगम के पर्यटक आवास गृह, वन विभाग का गेस्ट हाउस, स्थानीय होटल तथा प्राइवेट टैंट कालोनी भी हैं। यहाँ पर ठंड काफी होती है। जगह-जगह रास्ते में हिमखंडों के ऊपर से चलना पड़ता है। स्वेटर व गर्म कपड़े अवश्य साथ ले जाने चाहिए। जो यात्री पैदल चलने में असमर्थ हो, वह घोड़े या हेली सेवा से यहाँ की यात्रा कर सकता है।




अधिकांश लोग पैदल ही यात्रा करते हैं। जून मध्य में ही यहाँ के कपाट खुलते हैं। इस बार 22 मई को यहाँ के कपाट खुल गये थे। अगस्त-सितम्बर माह यहाँ की यात्रा के लिए सबसे उचित हैं। नवम्बर से मई तक यह क्षेत्र बर्फ से ढका रहता है। यहाँ साफ-सफाई की शानदार व्यवस्था थी। पहले लगा कि सरकार द्वारा यहाँ अच्छी व्यवस्था की गई है। भ्यूंडार-पुलना के जानेमाने फोटोग्राफर श्री चन्द्र शेखर चौहान से मुलाकात हुई। उन्होंने कहा कि हमारा ‘ईको विकास समिति, भ्यूंडार’ के नाम से एक एनजीओ है। हम ही यहाँ सफाई का काम देखते हैं। हम प्रत्येक घोड़े-खच्चर से प्रति सवारी ₹ 100 शुल्क लेते हैं। इसी से हमने 42 सफाई कर्मचारी तथा 18 अन्य प्रबंधन के कर्मचारी नियत वेतन पर रखे हैं। श्री चौहान समिति के अध्यक्ष हैं। इनके दादा जी स्व० नंदा सिंह चौहान जी वर्षों तक हेमकुण्ड के पहले ग्रंथी रहे हैं।

फूलों की घाटी

घांघरिया से एक रास्ता हेमकुण्ड-लोकपाल और दूसरा फूलों की घाटी को जाता है। 1 जून, 2022 को ही फूलों की घाटी पर्यटकों के लिए खुली। हम इसी दिन का प्लान पहले से बनाकर गये थे। डीएफओ श्री नंदा बल्लभ जोशी से मुलाकात हुई. साथ में फोटो खिंचवाया। अखबार में भी छप गया। हम आगे बढ़े फूलों की घाटी की ओर।

यूँ तो गढ़वाल में दर्जनों फूलों की घाटियाँ हैं लेकिन सन् 1931 में फ्रैंक स्माइथ ने कामेट पर्वत से उतरते हुए जिस फूलों की घाटी को देखा तथा इस पर एक पुस्तक ‘वैली ऑफ फ्लावर्स’ लिखी। आज वही फूलों की घाटी विश्व भर के पर्यटकों का आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। इससे पूर्व आसपास रहने वाले स्थानीय लोगों का विश्वास था कि प्रकृति का यह रुपहला नजारा आछरियों (स्वर्ग की परियों) का निवास स्थान है। लोगों का विश्वास था कि आछरियाँ अपनी अलौकिक शक्तियों से मनुष्य का हरण कर लेती हैं। फिर भी आसपास के क्षेत्रें के निवासियों की भेड़-बकरियाँ चुगान के लिए वर्षों से यहाँ आया-जाया करती थीं। वर्ष 2005 में फूलों की घाटी को ‘ विश्व विरासत’ घोषित किया गया। वन विभाग द्वारा यहाँ ₹150 प्रवेश शुल्क लिया जाता है।

घांघरिया से 4 कि०मी० दूर असंख्य फूलों से सज्जित लगभग 4 कि०मी० क्षेत्र पर फैली घाटी ‘वैली ऑफ फ्लावर्स’ के नाम से जानी जाती है। 3500 मी० से 4500 मी० की ऊँचाई पर फैली इस फूलों की घाटी में मुख्य रूप से अगस्त-सितम्बर में ही पर्यटक आते हैं। यहाँ फूलों की अनगिनत किस्मों के अलावा जड़ी-बूटियाँ बहुतायत में मिलती हैं। वनस्पति शास्त्रियों के लिए यह क्षेत्र वनस्पति तीर्थ कहा जा सकता है। फ्रैंक स्माइथ के साथ दून स्कूल के प्राध्यापक रिचर्ड होल्सवर्थ भी कामेट पर्वत पर सफल अभियान के बाद स्माइथ से आगे इस पुष्प घाटी से उतरे थे। होल्सवर्थ आगे बढ़ गए लेकिन स्माइथ को यहाँ का अप्रतिम सौंदर्य लुभा गया। संसाधनों की उनके पास कोई कमी नहीं थी, जिसके चलते लगभग एक माह तक वे यहीं रहे। उन्होंने घाटी में उगने वाले फूलों की हजारों किस्में देखीं। स्माइथ की जिज्ञासा यहाँ उगने वाले पुष्पों में बढ़ती गई। सन् 1937 में वे दोबारा इस घाटी में आए और बरसात का मौसम पूरा यहीं बिताया। वे 300 से अधिक पुष्प बीजों की प्रजातियाँ यहाँ से एडनबरा ले गए। एडनबरा के बोटनिकल गार्डन में उन्होंने परीक्षण के तौर पर इन बीजों को बोया। अपने अध्ययन व अवलोकन के बाद ही स्माइथ ने ‘वैली ऑफ फ्लावर्स’ नामक पुस्तक लिखी। इसी सिलसिले में ही एडनबरा से सन् 1939 में जौन मारग्रेट लीग इस पुष्प घाटी में आई। कुछ दिन यहाँ ठहरने के पश्चात् वह किसी चट्टान से फिसलकर चिरनिद्रा में सो गई। लीग की याद में यहाँ एक कब्र भी बनी है।

फूलों की घाटी का क्षेत्र लगभग 4 कि०मी० टिपरा ग्लेशियर तक फैला है। अधिकांश लोग 1 कि०मी० क्षेत्र पर ही घूमकर वापस आ जाते हैं। यहाँ ग्लेशियरों से निकलते हिमखंड, जलधाराएँ, रंग-बिरंगे फूलों तथा बीच में बहती पुष्पवती नदी का दृश्य प्रकृति द्वारा बनाई गई अनमोल चित्रकारी का अनोखा रूप लगता है। कहीं-कहीं पर बुग्याल, भोजपत्र के जंगल व ब्रह्म कमलों के दृश्य विशेष आकर्षित करते हैं। सुबह 5 बजे घांघरिया से चलकर 9 बजे तक फूलों की घाटी पहुँचा जा सकता है। लगभग 6 घंटे फूलों की घाटी में घूमकर 3 बजे वापस घांघरिया के लिए प्रस्थान करना चाहिए। बेमौसम तथा उतावली में फूलों की घाटी का आनंद नहीं उठाया जा सकता है। यहाँ रात्रि विश्राम की कोई सुविधा नहीं है। पर्यटक रात्रि ठहरने के लिए वापस घांघरिया आते हैं। घांघरिया फूलों की घाटी तथा हेमकुंड-लोकपाल का रात्रि पड़ाव है।

लेखक लोकभाषा विशेषग्य हैं.