पहाड़ के साथ धोखा
इन्द्रेश मैखुरी
यह पहाड़ के साथ धोखा नहीं तो क्या है!
अंततः कई दिन की हाँ-ना के बाद गैरसैंण में तय विधानसभा सत्र के स्थान में बदलाव का ऐलान करते हुए, इस सत्र को देहरादून में होने का फरमान सुना दिया गया है. पहले सात जून से गैरसैंण में प्रस्तावित विधानसभा का सत्र अब 14 जून से देहरादून में आयोजित किया जाएगा. गैरसैंण में सत्र की घोषणा के कुछ दिनों बाद ही इसको लेकर ना-नकुर भी शुरू हो गयी थी. सरकार के स्तर से ही कहा जाने लगा कि 10 जून को राज्यसभा का चुनाव होना है, जिसके लिए भारत निर्वाचन आयोग ने देहरादून स्थित विधानसभा को अधिसूचित कर दिया है.
विधानसभा का सत्र इसलिए गैरसैंण नहीं हो सकता क्यूंकि 10 जून को होने वाले राज्यसभा चुनाव के लिए देहरादून स्थित विधानसभा का कक्ष अधिसूचित कर दिया गया है, यह तर्क बड़ा विचित्र है. तो क्या गैरसैंण में भराड़ीसैंण स्थित जो विधानसभा भवन है, वह राज्यसभा चुनाव के लिए अधिसूचित नहीं हो सकता है ? क्या देहरादून की विधानसभा ज्यादा ऊंचे दर्जे की विधानसभा है और भराड़ीसैंण में जो विधानसभा है, वो कुछ कम दर्जे की विधानसभा है ? या फिर भराड़ीसैंण सत्ताधीशों का सालाना पिकनिक स्पॉट ही है और वहां जो विधानसभा भवन है, उसे विधानसभा भवन का दर्जा ही हासिल नहीं है, जहां राज्यसभा चुनाव कराए जा सकें ? प्रश्न यह भी है कि भाजपा द्वारा ही घोषित उस ग्रीष्मकालीन राजधानी का क्या हुआ, जिसकी न केवल तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विधानसभा में घोषणा की थी, बल्कि राज्यपाल ने उसकी अधिसूचना भी जारी की थी ?
विधानसभा सत्र गैरसैंण न कराने को लेकर यात्रा सीजन से लेकर कई अन्य बहाने में बनाए जा रहे हैं. प्रश्न यह है कि जब सरकार ने विधानसभा सत्र की घोषणा की थी, तब उसे नहीं मालूम था कि उस समय यात्रा सीजन होगा ? जब देहरादून में विधानसभा का सत्र होता है तो पूरे उत्तराखंड से प्रशासन और पुलिस का अमला वहां नहीं बुलाया जाता, वहां देहरादून जिले के पुलिस और प्रशासनिक अमले से काम चल जाता है. तो फिर गैरसैंण में सत्र करते समय, तेरह जिलों से प्रशासनिक मशीनरी के बड़े हिस्से को वहां आने का फरमान क्यूं सुना दिया जाता है. 70 विधायक और मुख्यमंत्री समेत 12 मंत्रियों के महज दो या तीन दिन के विधानसभा सत्र के लिए राज्य भर के सैकड़ों कार्मिकों की जरूरत क्यूं पड़ती है, गैरसैंण में? यह पहली दफा नहीं है, जब गैरसैंण में विधानसभा का सत्र घोषित करके उसे वहां नहीं किया जा रहा है. एक बार तो अत्याधिक ठंड का हवाला देकर वहां सत्र नहीं किया गया !
विधानसभा सत्र की जब घोषणा होती है तो क्या उसे कराए जाने लायक तमाम परिस्थितियों का मूल्यांकन कराये बगैर सिर्फ अखबार की सुर्खियां बनाने के लिए उसकी घोषणा कर दी जाती है ? देशभर में कोई दूसरा राज्य बता दीजिये, जहां विधानसभा सत्र की घोषणा पहले होती है और बाद में यह चर्चा होती है कि सत्र कराने में तो बहुत दिक्कतें आने वाली हैं, इसलिए सत्र नहीं कराया जा सकता ! बजट सत्र जैसे अत्याधिक गंभीर सत्र की यह हालत है कि पूरी मशीनरी बीते दो महीने से यह नहीं तय कर पायी कि उसे कराना कहाँ है ! जिनके हाथों में पूरे राज्य की बेहतरी की योजनाएँ बनाने का जिम्मा है, उनको इतना शऊर नहीं है कि दो-तीन दिन के विधानसभा सत्र की योजना ठीक से बना सकें ! यह तो वे जानते हैं कि ज़मीनों में, प्रॉपर्टी में पैसा कहाँ लगाना है, उसके लिए किस जमीन के माफिया से दांत-कटी रोटी रखनी है ! लेकिन दो दिन के विधानसभा सत्र की योजना बनाते समय उनके हाथ कांपने लगते हैं ! पहाड़ चढ़ने के नाम से उनका सिर चकराने लगता है, हलक सूखने लगता है ! जब दो दिन के विधानसभा सत्र की योजना ठीक से न बना सकने वाले, पूरे राज्य की योजना बनाते हैं तो राज्य का वही हश्र होता है, जो उत्तराखंड का हुआ है और हो रहा है !