November 21, 2024



कभी – 1 मई को गुलाबराय (रुद्रप्रयाग) में मेला होता था

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अरुण कुकसाल


गुलाबराय आने को है और हिमाली सड़क किनारे स्थित आम के पेड़ के नीचे की एक छोटी सी घेरबाड़ नीतू को दिखाना चाहती है जहां पर जिम कार्बेट ने रुद्रप्रयाग के आदमखोर बाघ को मारा था। ‘‘अब तो गुलाबराय जाने को है और वो जगह क्यों दिखाई नहीं दे रही है?’’ हिमाली मेरी तरफ मुखातिब है। ‘‘लगता है सड़क के चौड़ीकरण से वह घेरबाड़ टूट गई है। वैसे भी बदलते समय के साथ वही चीजें और स्मृतियां रह पाती हैं जो वर्तमान संदर्भ में भी प्रासंगिक और उपयोगी हो। जिम कार्बेट और आदमखोर बाघ का मारा जाना आज गुलाबराय के लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं। इसलिए उस जगह की उपस्थिति स्वतः ही वीरान हो गई हैं’’ मैं कहता हूं।

मैं बताता हूं कि ‘‘उस आदमखोर बाघ ने सन् 1918-26 (आठ साल) के दौरान रुद्रप्रयाग क्षेत्र के 125 से अधिक लोगों मारा था। और, आखिरकार 1 मई 1926 की रात को जिम काॅर्बेट की बंदूक से निकली गोली ने उस बाघ का अंत किया था। तब गांव-गांव से सैकड़ों की तादाद में आये लोगों ने रुद्रप्रयाग आकर जिम कार्बेट की जय-जयकार की थी। जिम कार्बेट शिकारी के साथ एक बेहतरीन लेखक भी थे। उन्होने इस घटना के संस्मरणों पर ‘रुद्रप्रयाग का आदमखोर बाघ’ पुस्तक लिखी। बीसवीं शताब्दी के उत्तराखंड के जनजीवन के बारे में जिस संजीदगी से उन्होने लिखा है, ऐसा बहुत कम देखने-पढ़ने को मिलता है। उनकी लिखी ‘माइ इंडिया’ बेहतरीन किताब है। तुम सबको यह किताब पढ़नी चाहिए। पर तुम लोग पढ़ते कहां हो, केवल देखते हो और वो भी मोबाइल।


गाड़ी में बैठे अन्य तीनों यात्रीगण अब मुस्कराहट के साथ इधर-उधर देख रहे हैं। मुझे वह किस्सा भी याद आ रहा है कि जब सन् 1942 में मेरठ के मिलैट्री अस्पताल में जिम कार्बेट के सामने द्वितीय विश्व युद्ध में बुरी तरह घायल रुद्रप्रयाग क्षेत्र के किसी गांव का सैनिक उस वक्त अति खुशी से जोर-जोर से रो पड़ा जब उसे मालूम चला कि वह कारबेट साब (जेम्स एडवर्ड काॅर्बेट याने जिम काॅर्बेट का आमजन में यही नाम था) से सचमुच मिल रहा है। बचपन में आदमखोर बाघ के मारे जाने की जो अपार प्रसन्नता अपने मां-पिता और गांव के लोगों में देखी थी, वह उसे हू-ब-हू याद थी। उस सैनिक को इस बात की खुशी हो रही थी कि वह अपने गांव जाकर बतायेगा कि उसने जिम कार्बट को देखा, उसे छुआ और उससे बात की। ये उसके लिए अपार गर्व की बात थी। जिम कार्बेट की लोकप्रियता का आलम यह था कि वर्षों तक गुलाबराय में 1 मई को आदमखोर बाघ के मराने की याद में मेला मनाया जाता था। जिसमें दूर-दूर के ग्रामीण शामिल होते थे। आज गुलाबराय में भवनों-दुकानों की भरमार है परन्तु वो धरोहर गायब है जिसमें जिम कार्बेट के साहस की खुशबू दशकों तक जीवंत रूप में महकती थी।


विशेष – ‘संभावना प्रकाशन’ से प्रकाशित यात्रा-पुस्तक- ‘चले साथ पहाड़’ का एक अंश-यात्रा-पुस्तक ‘चले साथ पहाड़’ अमेजाॅन पर उपलब्ध है।