November 21, 2024



पहाड़ी अपनी क्षमता पहचानें

Spread the love

महावीर सिंह जगवान 


दिनांक 15/10/2017 को ऋषिकेश से गाँव वापसी के लिये 3:30 दोपहर से 5 बजे तक चन्द्र भागा पुल पर गाड़ी की प्रतीक्षा मे खड़ा था


चारों और चकाचौंध, गाड़ियों की, दुकानों की और सड़ाँध मारती गंदगी जो सीधे गंगा की पावनता को तार तार कर रही है, श्रृषिकेश अब बहुत बड़ा शहर बन गया है, आद्यात्मिक नगरी और गंगा मैय्या की आकर्षणता ने इसे राष्ट्रीय ही नहीं अन्तर्राष्ट्रीय परिदृष्य मे एक अलग आकर्षक प्रकृति को अधिक नजदीक से देखने की अमिट और दिब्य स्धानों मे प्रसिद्धि दिलाई है। यह शहर गढवाल हिमालय का बड़ा और सबसे नजदीकी बाजार है इस नगरी मे न तो फुटफाथ हैं न ही सार्वजनिक पेयजल की ब्यवस्था और सबसे गंदे पेशाबघर भी यहीं देखने को मिलते हैं, कूड़े के ढेर और नालों का सीधे नदी मे प्रवाह। भले ही यहाँ कूड़ा प्रबन्धन और सीवर लाइने विछी हों। इस शहर मे पूरे भारत के लोग बसते हैं यह दुर्लभ और विरला संयोग है। यहाँ की सब्जी मण्डी मे पहाड़ी करेले के साथ आलू ही दिखता है, हाँ कुछ ब्यापारी पहाड़ी फूल गोभी को भी बेच रहे हैं। लगभग दो से ढाई सौ होल सेल सब्जी विक्रेता हैं जिनमे निन्यानब्बे फीसदी उत्तर भारतीय बन्धु हैं। भले ही एशिया यूरोप अमेरिका के साथ अफ्रीका मे हिमालयी उत्तराखण्डी कामगार के साथ स्व के प्रतिस्ठानो के साथ मिलते हों। हिमालय की वादियों से मैदान उतरना और फिर घर वापसी का सिलसिला 1995 से है लेकिन कभी भी ऐसा दिन नही होता जब प्रतीक्षा और असहजता न झेलनी पड़े।


एक कार जिस पर टैक्सी नम्बर यूके 13 से शुरू होता है आती देखी और जोर से चिल्लाया रूद्रप्रयाग, संयोग से कार रूक गई, ड्राइवर ने मुझे बैग पीछे रखने और आगे बैठने का इशारा किया और मै सुकून से बैठ गया। गंगा मैय्या को धन्यवाद देकर यह आस बलवती हो गयी मै रात दस बजे तक पहुँच जाऊँगा। हल्की निगाहों से पीछे देखा तो दो सज्जन थे जिनकी शर्ट पर एस बी आई के लोगो के साथ नेम प्लेट थी। और सुकून से बैठ गया। अचानक ड्राइवर पीछे बैठे महोदय से उलझ पड़ा, आपको बड़ी तकलीफ हो गई यदि मुझे सौ दो सौ मिल जायेंगे क्या इन्हें उतार दूँ। बड़े मानमनोबल से दोनो को शान्त किया, और कार आगे बढने लगी। अब इनकी बहस से स्पष्ट हो गया पीछे बैठे दोनो महोदय एस बी आई के शाखा प्रबन्धक हैं जो दून से बैठक से लौट रहे हैं और उनमे से एक महोदय कह रहा है बैंक की गाड़ी है और मर्जी ड्राइवर की चल रही है। इनमे से एक अधिकारी दिल्ली और दूसरा अधिकारी विहार से है इनकी औसतन पाँच छ: साल की सेवा पहाड़ों पर हो गई है और ये महोदय दो से तीन ब्रान्चों मे रह चुके हैं। इनका संवाद तीन चार घण्टे तक चला जिसमे पहाड़ और पहाड़ियों की कमी पर चर्चा कर रहे थे, ड्राइवर इनकी बातों से अत्यअधिक गुस्से मे था बार बार शान्त होने की कोशिष करता हुआ।

हम दोनो पहाड़ी आगे और एक सज्जन विहार से और दूसरे बड़बोले सज्जन दिल्ली से, जीवन की इतनी यात्राऔं मे पहली बार असहजता के साथ अवाक स्तब्ध था मे। वो महोदय खिल खिलाकर एक एक कमियों को उधेड़ रहे थे जैसे ही मै उन्हे जबाब देता वो अनसुना कर आगे बढ जाते। जो भी वह कह रहे थे वह सच्चाइयों के बहुत नजदीक थी, खान पान पर भी जोरदार तमाचा था, आपसी भाई चारे को भी तार तार करती उनके बातें, वित्तीय प्रबन्धन और सब्सिडियों के मकड़जाल से लेकर एन पी ए होने वाले खातों के लिये रसूखदारों की सिफारिसें, अकर्मण्यता और शराब की खुराक को लेकर जितने वेफिक्री हम मे है यह इतनी कहीं नहीं यहाँ तक विश्लेषण निकाल दिया ये लोग चालाक और मतलवी है इसी लिये बारी बारी पर सत्ताऔं को बदलते हैं कभी भाजपा तो कभी काँग्रेश और अपनी पीड़ा भी ब्यक्त कर रहे थे हम पढे लिखे वैल एजुकेटड लोग इन पहाड़ो मे डर डर कर नौकरी करते हैं ये लोग तो अब सब यहाँ से भाग रहे हैं। अस्पताल है तो डाक्टर नहीं, सड़क है तो क्वालिटी नहीं, नदी है तो पीने का स्वच्छ जल नहीं, हाॅटल मोटल हैं तो शाकाहारी भोजन नहीं, जो भी पद पर रहता है अपने मुँह से कहता मै फलाने पद पर हूँ। जो भी योजना एक बार बनती उसी पर कई बार खर्च। प्रधानो के पास चालीस एटीएम मनरेगा के यह कह रहे थे सौ मे एक सौ एक फीसदी सच था। इसलिये सारी रात जब भी नींद टूटती उनकी बाँते अधिक गहराई से सोचने को विवस करती। छोटे से अन्तराल मे देश के जिन भी राज्यों को नजदीकी से देखने का मौका मिला वहाँ भी कमियाँ थी लेकिन सायद इतनी न हो।


दीवाली का पावन पर्व आ रहा है सभी अपने घरो को ठीक सफाई कर रंगाई पुताई कर रहे हैं, काश इस दीपावली पर हम सब मिलकर समाज के उन अवगुणो को भी साफ करने की छोटी छोटी चींटी सदृश पहल करें जिसकी परिणति यह देवभूमि अपने वाशिन्दों पर गौरव महसूस करे। यह की बुराइयाँ जड़ से खत्म हों ताकि वो अपने जो बार बार शर्मिन्दा होते हैं उन्हे भी अपनी मातृ भूमि के प्रति इमानदारी से अपनी बात रखने का साहस हो। इस दीवाली पर अपनो के साथ संवाद और मधुर ब्यवहार बढायें, अपने पकवानों की श्रृँखला को इतने शसक्त रूप मे परोंसे पूरे गाँव मे खुशबू और यदि बाहर तो अनजानो को भी अपनी संस्कृति से रूबरू करवायें। साल भर आने वाले पर्वों मे दीपावली का बड़ा और अलग आकर्षण है उदार मन से इस पर्व को उनके साथ भी साझा करें जो आपके अपने हैं और अभाव मे हैं हो सके आपकी छोटी पहल से उनके चेहरे पर भी मुस्कान विखर जाय और आप दीपावली का अंतस से आनन्द ले सकें। 

कोई कुछ भी कहे इन हिमालयी ढलानो और घाटियों पर रचे बसे लोंगो ने निरन्तर नये नये कीर्तिमान और विशिष्ट स्थानो तक पहुँचकर समय समय पर जन्मभूमि को सम्मान दिया है और दिला रहे हैं। सफलता के शीर्ष पर भी हमारे अपने हैं और असहज वेदनाऔं से घिरे भी हमारे अपने हैं। इस खाई को पाटने के लिये हम सहयोगात्मक रूप से समान विषय पर, समान विचारधारा के साथ जमीनी रूप से सँवरने की पहल को स्वरूप देना होगा। हिमालय की मनमोहक वादियों आकर्षण और विवधता के रूप मे जितनी विशालता को समेटे हुये है निसन्देह यहाँ के युवा और वयस्क उतनी ही विलक्षणताऔं को समेटे हुये निरन्तर विभिन्न सर्वोच्च पदों और गरिमाऔं के साथ अनगिनत विधाऔं मे अग्रणी सम्मानित और सम्मपन्न। अब जो बड़ी जिम्मेदारी का दौर आया है हमे संवाद और सामुहिकता को बढावा देना होगा। यही संवाद और सामुहिकता की भावना से हम हर मर्ज का इलाज कर तय समय मे बड़े लक्ष्य की बढने की कोशिष कर सकते हैं।




परिवर्तन और शसक्तीकरण के लिये स्वच्छ वातावरण की जरूरत होती है, जिस प्रकार हमारे युवाऔं के हौसले बुलन्द हैं, प्रवासी सँवारने की पहल कर रहे हैं और हमारे समाज मे अधिशंख्य जागरूक उत्तराखण्डी इस माटी और इन वादियों को शसक्त और आर्थिक सम्मपन्न बनाने के लिये चिन्तन और पहल कर रहा है हमे सबको मिलकर सभी रचनाधर्मियों के लिये अनुकूलता और साहस देने वाला वातावरण बनाना चाहिये ताकि इनके हौसलों की उड़ान को देखकर अधिक युवा, अधिक पिछड़े, अधिक जरूरत मन्द हिम्मत और साहस बटोर सकें। अभाव भी दोष का कारण हो सकता है आयें इस वैचारिक, कर्मरूपेण, संवाद, रचनाधर्मिता, सहयोग, सेवा के साथ सभी अभाव के कारणो का समापन करने की पहल कर दीपावली के प्रकाश और चमक देने पहल करें। दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।