November 22, 2024



उत्तराखंड – सवाल बरक़रार

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महावीर सिंह जगवान 


मानव के दोनो कानो के मध्य स्थित डेढ किलो के मस्तिष्क से ही हर सवालों के समाधान की प्रबल सम्भावनायें होती हैं। 


अभाव मे भोजन कपड़ा और छत की आँकाक्षा के साथ मस्तिष्क संकुचित और अधिक सुसुप्त रहता है। उत्तराखण्ड राज्य के संदर्भ मे बौद्धिक सम्पदा राष्ट्रीय परिदृष्य मे श्रेष्ठ पंक्ति मे है यह गौरव की बात है। पलायन से एक्सपोजर प्रतिस्पर्धा और संघर्ष की परिणति ने इन्हें अधिक शसक्त बनाया। आज से आठ दस दशक पहले शिक्षा सूचना और अध्ययन के साथ आजीविका की विकटता ने पलायन के आकर्षण को अधिक चमक दी है। विगत तीन चार दशकों मे भोजन वस्त्र और छत की सम्मपन्नता के साथ शिक्षा के आकर्षण ने शसक्त सूचकांक को प्राप्त किया यह गौरव और सम्मान की सफल यात्रा है। इसी सफल वैचारिक यात्रा की परिणति उत्तराखण्ड राज्य बना। उदारता और सम्मान की भावना के साथ साथ दूरदृष्टि और ताकर्किता के अभाव ने राज्य सृजन के समय नींव के पत्थरों की शुरूआत ही गड़बड़ हो गई।


राज्य मे कोई भी ऐसा शसक्त राजनैतिक और वैचारिक मंच शसक्त नही था जिसकी कमजोरी का फायदा उन लोंगो ने उठाया जो राज्य बनने की मंशा से विल्कुल अंजान और अपरिपक्व थे। आम हिमालयी जन मानस मे बड़ी आस और बड़ा विश्वास था अब राज्य बन गया अब भले हम कुछ सालो तक असहजता का सामना करेंगे लेकिन यह राज्य पाँच दस साल बाद जब भी स्थिर और शसक्त होगा इसके सर्वांगीण विकास का फायदा अन्तिम छोर के ब्यक्ति तक पहुँच जायेगा। दूसरी ओर नये राज्य की बागडोर ऐसे विद्वत नेताऔं के पास थी वह सभी अपनी अकड़ और मुख्यमंत्री की कुर्सी की दीवानगी मे ही सत्ता के पहले कीमती समय को ऐसे गवाँ बैठे मानो इन्होंने सदा रहना है आज नही तो कल जनता के बारे मे देखा जायेगा। और जब आम चुनाव हुये उत्तराखण्ड की जनता ने अपना जनादेश ही दूसरे दल को देकर स्पष्ट कर दिया तुम नींव का पत्थर रखने मे कतई गम्भीर नहीं। जनादेश पाकर इस दल मे इतना घमासान हो गया कि इतने भारी भरकम ब्यक्तित्व को जबाबदेही दी गई जिसका आन्दोलन के समय एक बयान था “राज्य मेरी लाँश पर चढकर बनेगा”और संसद मे उत्तराखण्ड के विधेयक पर चर्चा मे “मेरी नैनीताल संसदीय क्षेत्र का पूर्ण मैदानी हिस्सा उत्तराखण्ड मे मिलाया जाय” इतनी बड़ी दूरदृष्टि का ब्यक्ति आते ही राज्य की अस्थाई राजधानी ब्यूरोक्रेट्स से लेकर चपरासी तक और मीडिया घरानो के प्रमुखों से लेकर हाॅकर तक, सांसद विधायकों से लेकर प्रधान तक खुद मुख्यमंत्री से लेकर नेता प्रतिपक्ष और औद्योगिक घरानो के लिये यह राज्य जन्नत बन गया।

दून मे महँगे ब्राण्ड की सराब और चिकन के दाम दुगने हो गये। राज्य सृजन का शुरूआती दौर रूपयों की भरमार पानी की तरह सरकारी खजाने का मुँह खुला था। मैदानी जनपदों मे औद्योगिक क्रान्ति ,पर्वतीय जनपदों मे कागजी और फोटोग्राफी विकास की चकचौंध मे खोया राज्य मानो यह सदाबहार उजाला समय के साथ और खिलेगा। एक ही यौजना मे कई मदो से रूपये के बहाव ने भले ही योजना का दम निकाल दिया हो लेकिन योजना के क्रियान्वयन मे शामिल टोली नायक से लेकर स्टोर कीपर तक को इतनी गुन्जाइश का आदमी जरूर बना दिया जो वह अस्थाई राजधानी दून मे पाँच विस्वा जमीन खरीद पाया। तराई हरिद्वार दून के उद्योग आज पचास फीसदी बंद हैं बीस फीसदी मे केवल पैकेजिंग ही होती है उत्पाद बाहर से आते हैं बाकी भी हाँफ रहे हैं, मनरेगा की मजदूरी के बराबर दिहाड़ी नही मिलती है बारह घण्टे की।सौ रूपये मे एक एकड़ जमीन मिली है उद्योंगों को अब उद्योग भले बन्द हो लेकिन उनकी जमीने करोड़ों की हैं। चमचमाते सत्ता भी गुब्बारे की तरह फुस्स हो गई।


जनता ने सत्ता की बागडोर राज्य बनाने वालों को दी बड़े मंथन से सर्वगुण सम्मपन्न ब्यक्तित्व को राज्य की बागडोर दी गई सख्त मिजाज और कड़क ब्यवहार की परिणति ने चमचमाती सत्ता मे मुँह पर लगे भ्रष्टाचार रूपी खून के स्वाद वालों को इतना असहज कर दिया कि सरकार अपनी मंशा को स्पष्ट रूप से जमीन पर रख पाती तभी तक साहित्य और कविता के प्रहरी का शंख बज गया और नई आस को भी विराम लग गया। सत्ता के शीर्ष पर बैठे कविता प्रेमी ने सदा ऐसी कवितायें गायी जिसकी तान जनता कभी नही समझ पाई खुद सत्ता के गलियारों मे कड़क साहेब की वापसी की तैयारी सुनिश्चित की गई।लेकिन समय तो निकल चुका था और संवाद पहुँचाते पहुँचाते विकास का समय भी निकल गया।

जनता ने फिर जनादेश दिया ऐसे शख्स को बागडोर मिली जो सायं सात बजे बाद वाली पुरानी आदत ही नहीं बदल पाया। गफलत और बार बार चण्डाल चौकड़ी के सम्मुख समर्पण के साथ केदार त्रासदी के अकुशल प्रबन्धन ने एक खाटी को मौका दिया जिसने सदा गाड गदेरे की सरकार का वादा किया लेकिन सारी ताकत सत्ता प्रबन्धन और कुटुम्ब के साथ अगली दुश्मन मुक्त पारी के लिये खर्च कर दी। जनता तो बेचारी बन गई इधर नहीं तो उधर और उधर नही तो अटल ने बनाया मोदी सँवारेंगे की ओर जनादेश दे दिया। सत्ता एक कुशल संघठन सेवी और अतिसरल ब्यक्तित्व को मिली, राज्य और भारत के इतिहास मे यह सरकार काँग्रेश मुक्ति और काँग्रेशी युक्ति की अनूठी पहल है। अच्छा किया बार बार बदलने के बजाय क्यों न दोनो दलो के सिकन्दरों को मिलाकर अजेय परमानेन्ट सरकार बनाने की बड़ी पहल की गई। सरकार को अभी कम समय हुआ है असल मे पहला काम है संवाद का जिसमे दो साल लग जायेंगे।




राज्य हिमालयी राज्य की परिकल्पना को नेस्तानाबूद कर चुका है। गलत शुरूआत अदूरदर्शी संविधान और कागजी विकास दम तोड़ गया या रहा है पहली बार स्पष्ट रूप से दिखता है राज्य अब अधिक दिनों तक अपना बोझ नही सम्भाल पायेगी अब पूर्ण रूप से केन्द्र पर आश्रित रहकर केन्द्र शाषित की ओर बढने की शुरूआत हो रही है राज्य के बड़े संस्थान, मेडिकल काॅलेज, उद्योग और औद्योगिक नीति, शिक्षा, कृषि, जल विद्युत परियोजनाऔं का सपना सब पर संकट मण्डरा रहे है। 

अब समय आ रहा है उत्तराखण्ड के लोगों को इमानदारी से अपने मस्तिष्क पर बल डालना होगा क्योंकि सत्ता के गलियारों मे अहंकार और स्वहिताय की गूँज है। सरकारों के पास शुरूआत से कोई रोल माॅडल नही है नही ऐसा कोई ब्ल्यू प्रिन्ट जिसपर भविष्य की सम्भावनायें हैं। एक भी इमारत इनकी बनाई बुलन्दी को नहीं छू रही है बल्कि अल्पावस्था मे दम तोड़ रही है या दम तोड़ चुकी है। वर्ल्ड बैंक के कर्जे की किस्तों की शुरूआत हो गई लेकिन जिस उद्देश्य से कर्ज लिया वह प्रोजेक्ट शुरू ही नहीं हुआ। भारत की परियोजनायें समय पर सटीक जानकारी के अभाव मे निरस्त हो रही हैं। विधायकों की सम्मपन्नता और भारत सरकार के अधिशंख्य मंत्रियों की चहकदमी प्रधानमंत्री के कई दौरों के वावजूद हाँफती सरकार आम जन के मर्ज के इलाज पर लाचार हो तो सभी को एकजुट एकमुट होना ही होगा।

फोटो – जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’